what is will

यहां पढ़िए Will वसीयत के बारे में संपूर्ण जानकारी

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL

Lucknow (Capital of Uttar Pradesh, India) मौत के बाद अपनी जायदाद के इस्तेमाल का हक किसी को सौंपने का फैसला अपने जीते जी लेना वसीयत कहलाता है। वसीयत करने वाला वसीयत में यह बताता है कि उसकी मौत के बाद उसकी जायदाद का कितना हिस्सा किसे मिलेगा।

वसीयत का महत्व

वसीयत बनाने के महत्व को नकारा नहीं जा सकता है। उचित रुप से तैयार की गई, विधिवत रुप से वैध वसीयत ही एक मात्र उपाय है जिससे आप की मृत्यु के उपरांत आपकी जमापूंजी तथा धारित वस्तुएं ऐसे लोगों को मिलती है तथा उन उद्देश्यों के लिए जाती हैं जिनकी आप को चाहत थी। लोगों को अपनी व्यक्तिगत इच्छाएं बता देना ही पर्याप्त नहीं है। यदि आप बिना वसीयत बनाए अर्थात निर्वसीयत मर जाते हैं तो कानून अंतिम रुप से यह फैसला करेगा कि किसे क्या मिलेगा। इसलिए, वसीयत बनाना वित्तीय प्लानिंग का एक अहम हिस्सा है। वसीयत स्वयं द्वारा अर्जित आस्तियों तथा सम्पत्तियों पर लागू होती है। संयुक्त परिवार तथा हिन्दू अविभाजित परिवार सम्पत्ति की वसीयत नहीं की जा सकती है, यहां तक की कर्ता सम्पत्ति में अपने हिस्से को छोड़कर ऐसा नहीं कर सकता है।

यदि आप वसीयत नहीं बनाते हैं तो क्या हो सकता है?

यदि आप निर्वसीयत मर जाते हैं तथा आपका कोई परिवार अथवा रिश्तेदार नहीं है, तो आपकी समस्त जमा पूंजी और धारित वस्तुएं राज्य को सौंप दी जाती हैं। यदि आपके वारिस हैं तो आपकी आस्तियों को निर्वसीयत संबंधित कानून के अनुसार उनमें बांट दिया जाता है। आपके वारिसों को आपकी सम्पदा का बंटवारा करने के लिए न्यायालय में आवेदन देना होगा। ऐसा करने के लिए आमतौर पर उन्हें कानूनी सहायता लेनी पड़ेगी। यह मंहगा हो सकता है तथा इस पर आने वाले व्यय को आपकी सम्पदा में से दिया जाएगा। जब तक हर पहलू को सुलझाया जा रहा है तब तक उसमें देरी लग सकती है और बैंक खातों के लेनदेन पर रोक लगाई जा सकती है। आम भाषा में कहा जाए तो, बिना वसीयत के आप अपने पीछे उस समय बहुत अधिक संशय तथा तनाव छोड़ जाएंगे जब आपके प्रिय जन बहुत अधिक भावनात्मक दबाव के दौर से गुजर रहे होंगे और जिस दौरान न्यायालय द्वारा हिस्से और अधिकारों का निर्णयन किया जा रहा है होगा, तो इसके साथ उच्च कानूनी खर्चे भी उठाने पड़ते हैं।

दो महत्वपूर्ण बातें

निर्वसीयतता संबंधी कानून जटिल है। लेकिन, दो महत्वपूर्ण बातें हैं जो आपको जान लेनी चाहिए:

यदि आप निर्वसीयत मर जाते हैं, तो आपकी पत्नी तथा अन्य रिश्तेदार जैसे मां आदि उत्तराधिकार के लागू कानून के अनुसार आपकी सम्पदा में से हिस्से के हकदार होंगे।

अनेक लोगों का यह मानना है कि उनकी मृत्यु पर सब कुछ अपने आप ही उसके पति या पत्नी के नाम हो जाएगा। ऐसा अनिवार्य रूप से नहीं होता है तथा सम्पत्ति को सभी कानूनी वारिसों में बांटा जाता है। कभी-कभी आपके प्रियजनों के लिए महत्व रखने वाली सम्पत्तियों तथा वस्तुओं को बेचना भी पड़ सकता है।

कुछ मामलों में, जीवित पति/पत्नी के पारिवारिक घर को इसलिए बेचना पड़ता है ताकि बच्चों, मां तथा परिवार के अन्य सदस्यों को उनका हिस्सा दिया जा सके। यदि आपके कोई कानूनी वारिस नहीं हैं तो आपकी मृत्यु के बाद आपकी सम्पत्ति आदि को देश को सौंप दिया जाता है। तथा इससे भी बुरी स्थिति यह हो सकती है कि आपकी मृत्यु के बाद बिना किसी दिशा निर्देश (वसीयत) के आपकी सम्पत्ति पर कुछ अवांछनीय और अज्ञात व्यक्ति द्वारा कब्जा कर लिया जाए।

क्यों जरूरी है

अगर किसी ने वसीयत नहीं कराई है और उसकी मौत हो जाए तो जायदाद के बंटवारे को लेकर पारिवारिक झगड़ा होने का डर रहता है। वसीयत न करवाने से प्रॉपटी पर किसी अनजान आदमी के कब्जा करने का अंदेशा रहता है। अगर बेटियों को भी हक देना चाहते हैं तो वसीयत से ऐसा करना पक्का हो जाता है।

किस-किस चीज की वसीयत

खुद की कमाई हुई चल संपत्ति जैसे कैश, घरेलू सामान, गहने, बैंक में जमा रकम, पीएफ, शेयर्स, किसी कंपनी की हिस्सेदारी। खुद की कमाई हुई अचल संपत्ति जैसे जमीन, मकान, दुकान, खेत आदि। पुरखों से मिली कोई भी चल या अचल संपत्ति जो आपके नाम है।

कब करवाएं

रिटायरमंट के फौरन बाद ही वसीयत करा देना अच्छा होता है। वसीयत करवाने का सबसे अच्छा वक्त है 60 साल की उम्र। अगर कोई शख्स कम उम्र में किसी गंभीर बीमारी से पीडित़ है तो वसीयत पहले भी कराई जा सकती है।

वसीयत का आम तरीका

वसीयत का कोई तय फॉर्म नहीं होता। यह सादे कागज पर भी लिख सकते हैं। अपने हाथ से लिखी वसीयत ज्यादा अच्छी रहती है। जायदाद जिसके नाम कर रहे हैं, उसके बारे में साफतौर से लिखें। उसका नाम, पिता का नाम, पता और उसके साथ अपना रिश्ता जरूर बताएं। अपनी पूरी जायदाद की ही वसीयत करनी चाहिए। जिस जायदाद की वसीयत नहीं की जाएगी, उस पर मौत के बाद झगड़ा होने का खतरा रहेगा। अगर पार्टनर के साथ जॉइंट प्रॉपटी है, तो केवल उस जायदाद की ही वसीयत की जा सकती है, जो वसीयत करने वाले के नाम है। पार्टनर की जायदाद की वसीयत का अधिकार पार्टनर को ही है। अगर दोनों बराबर के हिस्सेदार हैं तो एक पार्टनर सिर्फ 50 फीसदी हिस्से की ही वसीयत कर सकता है।

वसीयत किसी भी भाषा में कर सकते हैं।

स्टांप ड्यूटी अनिवार्य नहीं है।

वसीयत में कभी भी और कितनी भी बार बदलाव कर सकते हैं।

कोशिश करें कि वसीयत छोटी हो और एक पेज में आ जाए। इससे बार-बार विटनस की जरूरत नहीं पड़ेगी। एक से ज्यादा पेज में आए तो हर पेज पर दोनों गवाहों के दस्तखत करवाएं।

बिना वजह बेटियों को नजरअंदाज न करें। याद रखें, कानून उन्हें बराबर का हक देता है।

फूलप्रूफ तरीका

अपनी सारी प्रॉपटी की लिस्ट बनाएं और फिर ठंडे दिमाग से सोचें कि किसे क्या देना है।

सादे कागज पर अपनी हैंडराइटिंग में लिखें या टाइप कराएं कि आप अपने पूरे होशो-हवास में यह घोषणा करते हैं कि आपके बाद आपकी जायदाद का कौन-सा हिस्सा किसे मिलना चाहिए।

दो ऐसे लोगों को गवाह बनाएं, जो आपकी हैंडराइटिंग या आपके दस्तखत पहचानते हों।

हर पेज पर गवाहों के और अपने दस्तखत करें और अंगूठे भी लगवाएं।

इस वसीयत को सब-रजिस्ट्रार ऑफिस जाकर रजिस्टर्ड कराएं और रजिस्ट्रार के रजिस्टर में इसकी एंट्री भी

करवाएं।

वसीयत करवाने की पूरी प्रक्रिया की वीडियो रेकॉर्डिंग कराना अच्छा रहता है। वैसे, कानूनन यह जरूरी नहीं है।

ऐसा हो तो क्या करें?

अगर वसीयत करने वाले से पहले किसी गवाह की मौत हो जाए तो वसीयत दोबारा बनवानी चाहिए। दोबारा वसीयत बनवाते समय पहली वसीयत को कैंसल करने का जिक्र जरूर करें। वसीयत अगर खो जाए तो भी दोबारा वसीयत करवाएं और बेहतर है कि उसमें थोड़ा फेरबदल करें, ताकि पहली वसीयत कैंसल मान ली जाए। अगर वसीयत करने वाले की मौत और गवाह की मौत एक साथ हो जाए तो वसीयत करने वाले की और गवाह की हैंडराइटिंग ही उसका सबूत है। ऐसे में किसी ऐसे शख्स की तलाश करनी चाहिए, जो तीनों की हैंडराइटिंग पहचानता हो या तीनों के दस्तखत पहचानता हो।

किसे बनाएं गवाह

गवाह उसे ही बनाएं जिस पर आपको पूरा भरोसा हो।

ऐसा शख्स गवाह नहीं बन सकता, जिसे वसीयत में कोई हिस्सा दिया जा रहा हो। प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से गवाह को वसीयत से कोई फायदा नहीं होना चाहिए। याद रहे, गवाह को अगर प्रॉपटी से हिस्सा मिल रहा है तो अदालत गवाही रद्द भी कर सकती है।

गवाह पूरे होशो-हवास में होना चाहिए। उसकी दिमागी हालत दुरुस्त होनी चाहिए।

दोनों गवाह तंदुरुस्त और वसीयत करने वाले की उम्र से कम उम्र के होने चाहिए।

दोनों गवाहों में से एक डॉक्टर और एक वकील हो तो इससे अच्छा कुछ नहीं। डॉक्टर की मौजूदगी साबित करती है कि वसीयत करने वाला उस समय होशो-हवास में था और उसकी दिमागी हालत दुरुस्त थी। वकील की मौजूदगी में यह साफ हो जाता है कि वसीयत करनेवाले ने कानूनी सलाह ली है।

यह भी जानें

भारतीय कानून के मुताबिक किसी भी धर्म और भाषा का व्यक्ति वसीयत करवा सकता है, लेकिन अगर वसीयत नहीं की गई है तो जायदाद के बंटवारे के लिए कोर्ट जाना होगा। कोर्ट इस बारे में फैसला करते वक्त उनके धर्म में मौजूद कानून को ध्यान में रखेगा। ऐसी स्थिति में हिंदू धर्म मानने वालों पर हिंदू लॉ लागू होता है, मुस्लिम धर्म मानने वालों पर शरीयत के मुताबिक लॉ लागू होता है। इसी तरह गैर-हिंदू और गैर-मुस्लिम लोगों का फैसला इंडियन सक्सेशन ऐक्ट के मुताबिक होता है।

वसीयत पर अगर कोई उंगली नहीं उठाता है तो सब ठीक है, लेकिन अगर इस मामले में कोई कोर्ट का दरवाजा खटखटाता है तो कानून पूरे मामले की पड़ताल करेगा। आप अपनी जायदाद की वसीयत एक ट्रस्ट के नाम भी कर सकते हैं। फायदा यह है कि इसमें डेढ़ लाख रुपये तक की रिबेट टैक्स में मिल जाती है। ट्रस्ट बनाते वक्त यह साफ करना होता है कि कौन ट्रस्टी है और कौन वारिस।

ट्रस्ट के नाम वसीयत को कैंसल भी किया जा सकता है और बदला भी जा सकता है। ट्रस्ट के ट्रस्टी संपत्ति की देखभाल करेंगे और जो इनकम होगी, वह वारिसों को मिलेगी। याद रखें वारिस ट्रस्टी नहीं हो सकते। अगर कोई व्यक्ति मरते समय भी अपनी जायदाद की जुबानी घोषणा कर दे, तो भी आपसी सूझ-बूझ से जायदाद के हकदार बंटवारा कर सकते हैं। कानून को इसमें कोई ऐतराज नहीं होगा। कानून तब आड़े आता है जब किसी भी प्रकार की वसीयत पर विवाद हो।

आम गलतियां

लाइफ पार्टनर नजरंदाज

गलती : कई बार देखने में आया है कि पति अपनी वसीयत में जायदाद का बंटवारा अपने बच्चों के नाम कर देते हैं।

सलाह : ऐसा न करें, वरना पति के न होने की स्थिति में पत्नी को दिक्कतें झेलनी पड़ सकती हैं। पति और पत्नी, दोनों अपनी-अपनी जायदाद की वसीयत एक-दूसरे के नाम करवाएं।

जीते जी बंटवारा

गलती : कई लोग जीते जी जायदाद का बंटवारा कर देते हैं।

सलाह : ऐसा भूलकर भी न करें। बंटवारा व्यक्ति की मौत के बाद ही होना चाहिए।

रजिस्टर्ड वसीयत

गलती : कुछ लोग वसीयत रजिस्टर्ड नहीं करवाते। उन्हें लगता है कि रजिस्टर्ड करवाने का खर्च प्रॉपटी के हिसाब से लगेगा, जो काफी ज्यादा होगा।

सलाह : आपकी जायदाद की कीमत चाहे कितनी भी हो, वसीयत रजिस्टर्ड करवाने का कुल खर्च सिर्फ 23 रुपये आता है। इस रकम को रजिस्ट्रार ऑफिस में जमा करवाना पड़ता है।

पूरा ब्योरा

गलती : कुछ लोग अपनी जायदाद का पूरा ब्योरा रजिस्ट्रार ऑॅफिस में देने से कतराते हैं। जहां काले धन की गुंजाइश होती है, वहां ऐसा होना मुमकिन है।

सलाह : वसीयत में पूरी जायदाद का जिक्र करने में ही भलाई है। अधूरी जायदाद की वसीयत तब ही तक ठीक रहती है, जब तक उसे चैलिंज न किया जा, वरना बाकी जायदाद पर विवाद हो सकता है।

अवैध वसीयत

गलती : वसीयत करने वाला इस बात का जिक्र नहीं करता कि रजिस्टर्ड वसीयत के अलावा बाकी कोई भी वसीयत अवैध होगी।

सलाह : वसीयत रजिस्टर्ड करवाते समय उसमें यह जरूर लिखा जाए कि ‘मेरी कोई भी वसीयत जो रजिस्टर्ड न हो, वैलिड न मानी जाए।

वसीयत के बाद खरीदी गई चीजें

गलती : कुछ लोग वसीयत करने के बाद खरीदी गई चीजों का जिक्र अपनी वसीयत में नहीं करते।

सलाह : वसीयत में यह जरूर लिखें कि ‘यह वसीयत करने से लेकर मेरे मरने तक अगर मैं कोई और चीज खरीदूंगा, तो उसका कौन-सा हिस्सा किसे मिलेगा।’

परिवार को बताना

गलती : लोग वसीयत के बारे में पहले से ही अपने वारिसों को बता देते हैं।

सलाह : वसीयत के बारे में परिवार के लोगों को न बताएं। बता देने से जिसे कम मिलता है, वह नाराज हो सकता है। बहला-फुसला कर वसीयत बदलने पर भी जोर दिया जा सकता है।

दलालों के चक्कर

गलती : वसीयत रजिस्टर्ड करवाने के लिए लोग दलालों के चक्कर में फंस जाते हैं।

सलाह : वसीयत को रजिस्टर्ड करवाने के लिए किसी दलाल या वकील की जरूरत नहीं होती। सिर्फ 23 रूपये अदा करके सब-रजिस्ट्रार के ऑफिस में वसीयत रजिस्टर्ड करवा सकते हैं।

वसीयत कैसे लिखें

अपनी वसीयत का प्रारुप तैयार करें/लिखें – पिछले कदमों को पूरा करते हुए अपनी वसीयत की योजना बना लेने के बाद आप अपनी वसीयत को सरल, सुनिश्चित तथा स्पष्ट भाषा में लिख सकते हैं। भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 74 के अनुसार “ अनिश्चितता के कारण वसीयत अमान्य होती है। एक ऐसी वसीयत जिसमें सुनिश्चित रुप से आशय को अभिव्यक्त नहीं किया जाता है तो वह अनिश्चितता के कारण अमान्य होती है।”

यदि आपको संदेह हैं अथवा आपको सलाह की आवश्यकता है तो आप किसी योग्य पेशेवर, आमतौर पर वकील से त्रुटि रहित दस्तावेज तैयार करने के लिए सम्पर्क कर सकते हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि आपकी वसीयत कानून के अनुसार वैध तथा इसमें सभी आकस्मिकताओं को शामिल किया गया है, पेशेवर व्यक्ति की सहायता लेना। उचित रुप से प्रारुप तैयार करने पर आपको पेशेवर के साथ अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ेगी, जिससे उनकी फीस कम हो सकती है। यहां यह याद रखना जरुरी है कि किसी पेशेवर अथवा हेल्पएज इंडिया (HelpAge India) की वसीयत तैयार करने में सहायता प्राप्त करने की लागत उस कानूनी लागत से बहुत कम होगी जो, यदि आप बिना वसीयत किए मरते हैं तो, उस समय उठानी पड़ती है।

वसीयत पर हस्ताक्षर करें और इस पर साक्षी (साक्षियों) के हस्ताक्षर करवाएं – 18वर्ष से उपर के दो व्यक्ति आपकी वसीयत के साक्षी होने चाहिए। इन दोनों में से एक साक्षी को आपके प्रोबेट आवेदन पत्र पर हस्ताक्षर करने होंगे तथा इस बात की पुष्टि की आपने वसीयत पर हस्ताक्षर किए हैं, संभवत इस बात का सत्यापन संबंधित न्यायालय में करना होगा। इसलिए, आपके हस्ताक्षर तथा दो साक्षियों के हस्ताक्षर (आपके हस्ताक्षर का सत्यापन करने के लिए किए गए हस्ताक्षर कहा जाता है) एक ही सत्र में पूरे किए जाने चाहिए, तथा आप सभी एक ही समय तथा तारीख में एक ही कमरे में होने चाहिए।

प्रत्येक साक्षी के हस्ताक्षर के नीचे, उनका पूरा नाम, आयु, वर्तमान पता तथा पेशा स्पष्ट रुप से उल्लिखित होना चाहिए। ऐसा कोई व्यक्ति जिसे वसीयत से लाभ होगा अथवा उसका पति/पत्नी सत्यापन करने वाला साक्षी नहीं हो सकता है। यदि ऐसा होता है तो भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 67 के अनुसार आपकी वसीयत अन्य वसीयतदारों के लिए वैध होगी लेकिन आपकी वसीयत ऐसे संबंधित व्यक्ति/व्यक्तियों (सत्यापनकारी साक्षी को दिया गया उपहार अथवा प्रस्तावित लाभग्राही/लाभग्राहियों की सत्यापन करने वाला पति/पत्नी) के संदर्भ में मान्य नहीं होगी।

वसीयत का पंजीकरण

रजिस्ट्रार अथवा उप-रजिस्ट्रार के यहां पर अपनी वसीयत का पंजीकरण करवाना वैकल्पिक होता है लेकिन ऐसा करना लाभदायक होता है। पंजीकरण करवाने से वसीयत प्रमाणिक हो जाती है। कभी कभी बैंकों तथा भिन्न भिन्न प्राधिकरणों में पजीकृत वसीयत की मांग की जाती है। आपको तथा आपकी वसीयत पर हस्ताक्षर करने वाले व्यक्तियों को वसीयत की दो मूल हस्ताक्षरित प्रतियों, दो फोटो तथा पहचान के साक्ष्य के साथ रजिस्ट्रार के कार्यालय में जाना होगा। बहुत कम शुल्क की अदायगी करने पर वसीयत का पंजीकरण करवाया जा सकता है तथा इसमें अधिक समय नहीं लगता है (सामान्यतय आधा दिन)।

वसीयत दस्तावेज को सुरक्षित रखना

अपनी वसीयत को सुरक्षित रखना महत्वपूर्ण है तथा आपके विश्वसनीय रिश्तेदार, मित्र,सुरक्षित रुप से रखने से पूर्व आप अपने तथा अपने वारिस के लिए आप उसकी फोटोकापी करवा सकते हैं।

अपनी सम्पदा का मूल्यांकन करें

आपकी मृत्यु के उपरांत आपकी सम्पदा का प्रशासन संभालने वाले निष्पादक को नियुक्त करें – जब भी आप वसीयत बनाते हैं, तो आप अपनी इच्छाओं के अनुसार अपनी सम्पदा का प्रशासन संभालने तथा उसकी वितरित करने के लिए एक या अधिको निष्पादकों की नियुक्त कर सकते हैं। यदि आप परिवार के किसी सदस्य अथवा मित्र को चुनना चाहते हैं तो आप को इस बात को सुनिश्चित करना चाहिए कि वह यह कोई छोटी आयु का ईमानदार तथा समर्थ व्यक्ति होना चाहिए तथा जो संभवत आप से अधिक समय तक जीवित रहेगा।

हम आपसे पुरजोर सिफारिश करते हैं कि आप ऐसा करने से पूर्व उनकी अनुमति प्राप्त करें क्योंकि निष्पादक बनने पर बहुत अधिक समय लगाना पड़ता है तथा अनेक व्यक्तियों को इसके अंतर्गत जारी कार्यों की पूरी जानकारी भी नहीं होती है। दूसरा विकल्प यह है कि आप एक पेशेवर निष्पादक को नियुक्त करें, जैसे वकील, लेखाकार अथवा बैंक अधिकारी। इसके लिए शुल्क का भुगतान करना होगा तथा इस शुल्क का भुगतान आपकी सम्पदा में से किया जाएगा। गैर पेशेवर निष्पादक (जैसे परिवार के सदस्य तथा मित्र) ।

अंतत आप किसी धर्मार्थ संस्था आदि को अपना निष्पादक नियुक्त कर सकते हैं। हैल्पएज इंडिया(HelpAge India) वयोवृद्ध व्यक्तियों में अकेलेपन, उपेक्षा तथा निर्धनता को दूर करने तथा एक अच्छी देखभाल तथा वृद्ध व्यक्तियों के लिए एक बेहतर व्यवहार के लिए प्रयासरत रहती है। इसलिए हैल्पएज इंडिया(HelpAge India) हमारे द्वारा यह सेवा शुल्क के आधार पर उपलब्ध कराई जा सकती है। वृद्ध व्यक्तियों की समस्या पर कार्रवाई करने वाली एक धर्मार्थ संस्था होने के नाते हम इस प्रकार के दायिव्त का निर्वाह करने में अधिक सक्षम तथा समर्थता रखते हैं और आपकी सम्पदा का प्रशासन अधिक सत्यनिष्ठा से संभालना सुनिश्चत करते हैं।

ऐसा करने का सबसे आसान तरीका यह है कि आप अपनी सभी सम्पत्तियों (जो आपकी हैं) तथा देयताओं (जो आपने अदा करनी हैं) जिन्हें आपने उनकी वर्तमान कीमतों पर चुकानी हैं, की एक सूची तैयार करें। तत्पश्चात् उन सभी सम्पत्तियों का योग करें जो आपके पास हैं तथा उनमें से सभी देयताओं को कम कर दें। इसके बाद आप यह निर्णय कर सकते हैं कि इसे कैसे बांटना हैं।

अन्य वित्तीय जानकारी

क्या आप किसी ऐसी योजना के सदस्य हैं जिसमें आपकी सेवानिवृति से पूर्व आपकी मृत्यु होने पर एक मुश्त पेंशन लाभ देय होते हैं? यदि ऐसा है तो, कृपया एक विस्तृत सूची तैयार करें। इस संबंध में जानकारी आप अपने नियोक्ता, अथवा अपनी पेंशन प्राधिकरण से प्राप्त की जा सकती है।

यदि आप किसी न्यास या सम्पदा के लाभग्राही हैं जिसके अंतर्गत आपको वर्तमान में कोई आय प्राप्त होती है तो इसे अलग से सूचीबद्ध करें।

यदि किसी अन्य व्यक्ति (पत्नी/पति/माता-पिता आदि) की मृत्यु से आपको कोई धन आदि की प्राप्ति होने की संभावना है तो कृपया इसका एक नोट तैयार करें।

ऐसे किन्हीं व्यक्तियों की सूची जो वित्तीय रुप से आप पर निर्भर हैं, जिसमें आपकी पूर्व पत्नी/पति, रिश्तेदार अथवा बच्चे/सौतेले-बच्चे निम्नलिखित प्रारुप में तैयार करें। आपको आश्रित बच्चों अथवा रिश्तेदारों के लिए अभिभावक की नियुक्ति भी करनी चाहिए तथा आप अपने वकील की सलाह से एक न्यास की स्थापना पर भी विचार कर सकते हैं।

याद रखने योग्य बात

कब अपनी वसीयत में परिवर्तन करें/उसे अद्यतन करें जब भी आपके जीवन में कोई प्रमुख घटना घटती है तो आपको अपनी वसीयत की समीक्षा करनी चाहिए तथा इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या इसे अद्यतन करने की आवश्यकता है। ऐसी परिस्थितियां जिसमें संभवत आपको अपनी वसीयत की समीक्षा करने की आवश्यकता पड़ सकती है उसमें आपके परिवार में जन्म अथवा तलाक होना, आपकी वित्तीय स्थितियों में परिवर्तन, अथवा आपकी वसीयत में उल्लिखित किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है आदि शामिल हैं। यदि आपकी शादी हो जाती है तो आपको अवश्य ही नई वसीयत बनानी चाहिए।

यदि आपका तलाक हो जाता है तो पूर्व पति या पत्नी के लिए निर्धारित किया गया कोई धन या सम्पत्ति अमान्य हो जाएगा तथा शेष वसीयत मान्य रहेगी। यदि आपका तलाक हो जाता है तो इस बात का परामर्श दिया जाता है कि आप अपनी वसीयत में परिवर्तन कर लें। आप अपनी वसीयत को जितनी बार चाहें उतनी बार बदल सकते हैं। लेकिन, आपको मूल दस्तावेज में कभी भी परिवर्तन नहीं करने चाहिए क्योंकि इससे यह अवैध हो जाता है। अपनी वसीयत में कोडीसिल शामिल करके आप परिवर्तन कर सकते हैं। इस अवश्य ही हस्ताक्षर किए जाने चाहिए हम सिफारिश करते हैं कि आप एक नई वसीयत बनाएं। किसी कोडीसिल अथवा नई वसीयत का प्रारूप तैयार करने से पूर्व किसी पेशेवर की सलाह लेना अधिक लाभदायक रहता है।

वसीयत बनाने अथवा उसे अद्यतन करने के पीछे कारण

यह एक समझदारी भरा तथा व्यावहारिक कदम है जिससे आप अपनी सम्पत्ति तथा धारित वस्तुओं के साथ क्या किया जाए, इस संबंध में एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हैं।

कानूनी रुप से वैध वसीयत के बिना, आप जिन्हें पीछे छोड़ कर जाते हैं उन्हें संदेह, देरी तथा कानूनी लागतों या दांव पेंचों का सामना कर पड़ सकता है।

उचित रुप से तैयार की गई वसीयत से दिमागी शांति मिलती है।

आपकी मृत्यु के उपरांत संभवत जरुरत पड़ने वाले महत्वपूर्ण दस्तावेजों की सूची बनाएं – इस बात की सलाह दी जाती है कि आप इस बात की सूची बनाएं कि महत्वपूर्ण मदें और दस्तावेज कहां पर हैं। इन सूचियों को सुरक्षित स्थान पर रखा जाना चाहिए, तथा आप इन्हें कहां रखा गया है उसकी जानकारी निष्पादक(निष्पादकों) तथा/या वारिसों को दें:

आपकी अंत्येष्टि संबंधी अनुदेशों की एक सूची (जिसकी आवश्यकता संभवत आपकी वसीयत को पढ़ने से पहले पड़ सकती है)

धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए दान देने संबंधी आपकी कोई अभिलाषाएं

उन व्यक्तियों की सूची जिन्हें आपकी मृत्यु तथा अंत्येष्टि की जानकारी दी जानी चाहिए

अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेज/मदें जैसे प्रमाणपत्र, पासपोर्ट, लाईसेन्स आदि, पालिसियां तथा विलेख आदि कहां पर रखे हुए हैं।

महत्वपूर्ण चाबियां आदि कहां पर रखी गई हैं।

उन संगठनों की सूची जिन्हें आपकी मृत्यु की जानकारी दी जानी चाहिए जैसे आपका बैंक/ बिल्डिंग की सोसाइटी, पेंशनदाता तथा आपको सेवाएं प्रदान करने वाली कम्पनियां (बिजली, गैस आदि)

ऐसी वस्तुओं की सूची जिन्हें आपकी मृत्यु के उपरांत उन्हें जारी करने वाले प्राधिकरणों को लौटाया जाना चाहिए/रद्द किया जाना चाहिए (अर्थात पासपोर्ट, ड्राईविंग लाईसेन्स, पैन कार्ड, पुस्तकालय कार्ड/पुस्तकें।

नष्ट की जाने वाली वस्तुएं (अर्थात कम्पनियों को आपकी मृत्यु की जानकारी देने के बाद क्रेडिट तथा डेबिट कार्ड)

बार बार पूछे जाने वाले प्रश्न

यदि आप अपनी वसीयत में किसी को कुछ देने के लिए निर्धारित करते हैं और उस व्यक्ति की आप से पहले मृत्यु हो जाती है तो क्या होता है? ऐसी स्थिति में, विनिर्दिष्ट धन या सम्पत्ति अथवा आप से पहले मरने वाले व्यक्ति के लिए आप के द्वारा निर्धारित कोई अवशेष धन या सम्पत्ति आदि को संबंधित कानून के अनुसार वितरित किया जाता है। लेकिन, यदि आप इन परिस्थितियों में वितरण को निर्धारित कर देते हैं तो आपकी इच्छा का पालन किया जाएगा।

(फेसबुक पेज Law the Profession कानूनी ज्ञान से साभार)