dadaji maharaj

जब हजूर महाराज ने बंगाली रईस को मलीन से निर्मल किया, पढ़िए दादाजी की जुबानी

NATIONAL REGIONAL RELIGION/ CULTURE

राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य और अधिष्ठाता दादाजी महाराज ने कहा- और जब तक भक्ति नहीं की जाएगी, तब तक मालिक की प्राप्ति नहीं हो सकती।

हजूरी भवन, पीपलमंडी, आगरा राधास्वामी मत का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं, जो आगरा विश्वविद्यालय के दो बार कुलपति रहे हैं। हजूरी भवन में हर वक्त राधास्वामी नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 20 अक्टूबर, 1999 को ग्राम दातागढ़, जयपुर (राजस्थान) में सतसंग के दौरान उन्होंने बताया कि और जब तक भक्ति नहीं की जाएगी, तब तक मालिक की प्राप्ति नहीं हो सकती।

मत के मौलिक सिद्धांत यानी प्रेम के सिद्धांत को लोग भूल जाते हैं। वह प्रेम जो अंदर है, उसको सुखा देते हैं जिसका नतीजा यह होता है कि वह विचलित, अप्रसन्न व उदासीन होते हैं और दुनिया की बेरुखी देखकर बड़ा रंज महसूस करते हैं। यह प्रेम और भक्ति का मार्ग है और जब तक भक्ति नहीं की जाएगी, तब तक मालिक की प्राप्ति नहीं हो सकती। यह बात भी निश्चित नहीं हो सकती कि जीव की मुक्ति हुई तो कैसे हुई और किसने की। इस जिन्दगी में भी एक सुधरी हुई जिन्दगी इंसान जी नहीं सकता। इसलिए जो भक्ति की  युक्ति राधास्वामी दयाल ने दृढ़ता के साथ बताई है, उसको किसी भी प्रकार के तर्क और किसी भी प्रकार के विचारवाद में मत भुलाओ। आपको तो अपना प्रीतम अच्छा लगना चाहिए और दूसरा वह अच्छा लगना चाहिए जो हमारे प्रीतम से प्यार करे।

यह प्रेम का रिश्ता है। हजूर महाराज ने प्रेम बांटा कैसे- दृष्टि डालकर। दृष्टि डाली और लोग खिंचते चले आए। एक बार हजूर महाराज कालका मेल में फर्स्ट क्लास में सफर कर रहे थे। उसमें एक बंगाली रईस जमींदार आ गए और बातचीत शुरू हो गई। वह अपने तर्क-वितर्क देने लगे कि मालिक है कि नहीं, मालिक है तो कहां है? हजूर महाराज उनको समझाते रहे। उसके बाद हजूर महाराज ने दृष्टि डाली। एक दृष्टि डालकर निर्मलचंद को मलीन से निर्मल कर दिया और उनके खानदान को आज तक तार रहे हैं। कहने का मतलब यह है कि दृष्टि से काम होता है लेकिन दृष्टि का मुंतजिर रहना कठिन काम है।

बड़े भाग हैं राजस्थान के सतसंगियों के जिन्होंने एक मजबूती के साथ प्रीत और प्रतीत हजूर महाराज के चरनों में बांधी है। वो पीढ़ी दर पीढ़ी वैसी की वैसी आज भी दिखाई देती है, उसमें रत्तीभर भी कमी नहीं है। यह आप लोगों की सराहना है कि आप प्यार करते हैं और आपको मालूम है कि आपकी प्रीतम कौन है, कहां है, कैसा है और आप उसकी छवि को देखना चाहते हैं, बलि-बलि होना चाहते हैं, अपनी दृष्टि से नैन ताकना चाहते हैं और तरह-तरह से उस मालिक को रिझाना और मनाना चाहते हैं। यह बहुत बड़ी कैफियत है।