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दादाजी महाराज ने बताया कि मालिक को क्या पसंद और क्या नापसंद है

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राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य और अधिष्ठाता दादाजी महाराज ने कहा- राधास्वामी दयाल ने जाति-पांत का खंडन किया है।

हजूरी भवन, पीपलमंडी, आगरा राधास्वामी मत का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं, जो आगरा विश्वविद्यालय के दो बार कुलपति रहे हैं। हजूरी भवन में हर वक्त राधास्वामी नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 20 अक्टूबर, 1999 को ग्राम दातागढ़, जयपुर (राजस्थान) में सतसंग के दौरान उन्होंने बताया कि और जब तक भक्ति नहीं की जाएगी, तब तक मालिक की प्राप्ति नहीं हो सकती।

जितने भी मत इस दुनिया में जारी हुए हैं, उनके पेशवाओं ने सिद्धांतों और आदर्शों को रखने में कोई कमी नहीं की लेकिन उन सिद्धांतों और आदर्शों को अपनी जिन्दगी में उतार देना दूसरी बात होती है। जो भक्ति राधास्वामी दयाल ने सिखाई, वह व्यावहारिक भक्ति है जिसकी कमाई औरत, मर्द, बूढ़ा, जवान और लड़का सब कर सकते हैं। बड़ी जाति का भी कर सकता है और छोटी जाति का भी कर सकत है। अगर किसी चीज का खंडन राधास्वामी दयाल ने किया है तो वह जाति-पांत का किया है। स्वामी जी महराज फरमाते हैं कि ब्राह्मण और क्षत्रिय अपना कर्म भूल बैठे हैं, इसके अलावा अन्य जातियों के अंदर प्रेम और भक्ति बरकरार है। जिसके अंदर प्रेम और भक्ति बरकरार होगी, उसी को मालिक खींचेगा, बुलाएगा और उसके बुलावे पर खुद आ जाएगा।

भक्ति के आदर्शों को बनाए रखना निहायत जरूरी है और सिर्फ उसकी व्याख्या ही नहीं, व्यवहार जरूरी है। जो आपको खींचेगा, वह आपको प्यारा लगेगा, जो बचन सुनाकर आपके संशय भरम दूर करेगा वह आपको बड़ा आकर्षक लगेगा। खिंचाव खुद-ब-खुद पैदा होता है। किसी दूसरे के कहने से खिंचाव न आ सकता है और न कम हो सकता है। इसलिए मैं उन सबको सलाह देना चाहता हूं कि  अपने विचारों और आदर्शों को अपने तक सीमित रखिए, हमारे प्रेमियों को बरगलाने की कोशिश मत कीजिए। हजूर महाराज के प्रेम और भक्ति में कदम रखने वाले प्रेमियों को आप लोग बीच में किसी भी प्रकार के तर्क-वितर्क से, किसी भी प्रकार के झूठे वाचक ज्ञान से मत भरमाइए क्योंकि वह सीधे-सादे जीव हैं, इनकी रक्षा, लाज और अभ्यास कराने के लिए खुद मालिक आया है।

जो अपने आपको चतुर और ज्ञानी समझते हैं, मालिक उनसे कभी राजी नहीं होते। हजूर महाराज ने कहा है कि मालिक को क्या पसंद है- दीनता और दासानुदासता। आप ठानना और अपनी मान-बड़ाई करना मालिक को पसंद नहीं है। अगर हम मालिक के घर के हैं तो हमको भी दीनता अपनानी होगी और अपनानी ही नहीं, उसी व्यवहार को एक आदर्श रूप में रखना पड़ेगा कि जिसको देखकर अन्य भी उससे सीख लें और फिर उसी ढंग से चलने लगें।

(अमृत बचन राधास्वामी तीसरा भाग, आध्यात्मिक परिभ्रमण विशेषांक से साभार)