fire in garbage

यह आग सरकारी है, उठने वाला धुआं ईकोफ्रंडली!

Crime NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL
Mathura, Uttar Pradesh, India.जब आग सरकारी हो तो तो सेटेलाइट भी उसे नहीं पकड़ पाता। इस आग से उठने वाला धुआं ईको फ्रेंडली हो जाता है। पराली जलाने पर किसान को जेल होगी लेकिन हजारों टन कूड़ा जलाने पर नहीं, नियम कुछ भी कहते हों लेकिन हकीकत यही है। कम से कम कान्हा की नगरी में तो यही सब हो रहा है। जनप्रतिनिधि इसे देख कर भी चुप हैं तो अधिकारी सब जानकर भी अनजान बने हुए हैं।

समूचे उत्तर भारत में वायु प्रदूषण पर हंगामा बरपा हुआ है। पराली जलाने वालों किसानों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जा रही है। किसानों पर जुर्माना ठोका जा रहा है। पराली जलाने की सैटेलाइट से निगरानी की जा रही है। जनपद में अब तक खेत में पराली और कूड़ा करकट जालाने की 350 से अधिक घटनाएं दर्ज कर ली गई हैं। करीब तीन लाख रूपये जुर्माना ठोका गया है। किसानों की गिरफ्तारियां भी हुई हैं।

कृषि उपनिदेशक धुरेंद्र कुमार खुद इस बात को कह रहे हैं कि इस बार पराली जलाने की घटनाएं कम हुई हैं। किसान खरपतवार में आग लगा रहे हैं। इमेज सेटेलाइट पकड रहा है। वर्ष 2019 में प्रदेश भर में इस तरह की घटनाओं में मथुरा जनपद पहले स्थान पर रहा था। इस बार में बडी संख्या में किसान लपेटे में आये हैं।  

सरकारी मशीनरी द्वारा दिखाया ऐसा जा रहा है कि वह प्रदूषण की स्थिति को लेकर बेहद चिंतित हैं। वहीं इस कवायद का दूसरा पहलू बेहद डरावना है। सरकारी मशीनरी अपने किये धरे पर आंखें मूंदे हुए है। पराली चलाने पर किसान पर तो चाबुक चलाया जा रहा है लेकिन महानगर में प्रतिदिन सौ टन से अधिक निकलने वाले कूडे को खुद यही मशीनरी वर्षों से सिर्फ जलाकर नष्ट कर रही है। यमुनापार में कोल्हू गांव पर बने नगर निगम के डलाबघर से धुआं के गुबार उठने कभी बंद नहीं होते। यहां प्रदूषण हमेशा ही खतरनाक स्तर पर रहता है। डलाबघर बनने के बाद क्षेत्र का विकास ही अवरूद्ध हो गया है। लोग मकान बेच कर जा रहे हैं। यहां कोई बसना नहीं चाहता। गंदगी और बदबू ने यहां रह रहे लोगों का जीना हराम कर दिया है। जब हवा का रूख बस्ती की ओर हो जाता है तो लोगो घरों से निकल कर इधर उधर चले जाते हैं। यह कूड़ा जलाने की प्रक्रिया लम्बे समय से जारी है। सांसद हेमा मालिनी भी यहां दौरा कर चुकी हैं। उर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा भी आ चुके हैं लेकिन इन धूआं के उठाते बादलों को देख कर भी सब चुप्पी साधे रहते हैं।  

नगर पालिका से नगर निगम बनने के बाद अफसरों ने नगला कोल्हू के समीप बने खत्ताघर में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट लगाने के लिए प्राइवेट कंपनी से करार किया था। यहां कंपनी को कचरे से खाद बनानी है। कचरों के टीलों से उठता धुआं हवा के साथ आबादी की ओर उड़ रहा है। यहीं सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी बना है। इसमें से आ रही बदबू के कारण आसपास बसी कॉलोनियों के लोगों का जीना दूभर हो गया है। कंपोस्ट को तैयार करने का प्लांट काफी पुराना है। ये 2011 में लगा था। बीच में बंद रहने के कारण मशीन में खराबी आ गई है। मशीन को दुरुस्त करने का काम अंतिम चरण में हैं। खाद तैयार करने के लिए नमूना दिल्ली लैब भेजा गया है, जिसकी रिपोर्ट अभी नहीं मिली है। प्लांट पर करीब 110-120 टन तक का कूड़ा रोजाना आ रहा है।

यह समस्या पुरानी है। एनजीटी की अनुश्रवण समिति ने अगस्त 2019 में कूडे का निस्तारण समयबद्ध तरीके से नहीं किये जाने पर 1.07 करोड रूपये के जुर्माने की संस्तुति की थी। नगर निगम कूड़ा एकत्रित तो कर रहा है लेकिन इसका निस्तारण नहीं कर पा रहा है। ठोस कूड़ा निस्तारण और बायो मेडिकल वेस्ट निस्तारण की स्थिति देखने के लिए एनजीटी की अनुश्रवण समिति आई थी।