Dadaji maharaj agra

दादाजी महाराज से सुनिए राधास्वामी मत में चन्द्रमा का रहस्य-2

NATIONAL REGIONAL RELIGION/ CULTURE

राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य और अधिष्ठाता दादाजी महाराज ने कहा जब सुरत अंतर में चढ़ती है तो पहले उसका छठे चक्र में एक चन्द्रमा से साबका पड़ता है जो पूर्णमासी का चन्द्रमा नहीं बल्कि दौज (द्वितीया) का चन्द्रमा होता है।

हजूरी भवन, पीपलमंडी, आगरा राधास्वामी मत (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं, जो आगरा विश्वविद्यालय )  Agra University)के दो बार कुलपति रहे हैं। हजूरी भवन (Hazuri Bhawan) में हर वक्त राधास्वामी नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 24 अक्टूबर, 1999 को दादाजी महाराज भवन परिसर, सेन्ट एंसल्स स्कूल के पास, सुभाषनगर, भीलवाड़ा (राजस्थान) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज (Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने बताया कि देह रूपी सतगुरु की बड़ी महिमा है। वह कभी चन्दा बनके चमकता है और कभी सूरज बनके खिलता है।

जब सुरत अंतर में चढ़ती है तो पहले उसका छठे चक्र में एक चन्द्रमा से साबका पड़ता है जो पूर्णमासी का चन्द्रमा नहीं बल्कि दौज (द्वितीया) का चन्द्रमा होता है। इसी को तोड़कर यानी भेदकर मोहम्मद साहब ने परदे के अंदर सहसदलकंवल के मालिक का दर्शन किया था। इसीलिए मुसलमानों में नए चांद की मुख्यता है। जो हिन्दू धर्म के मानने वाले रहे हैं, उनके लिए पूर्णमासी का महत्व है क्योंकि योगेश्वर-ज्ञानियों ने उस पूर्ण चन्द्रमा के दर्शन किए, इसलिए उन्होंने इसकी महिमा बताई।

संतों का पूर्ण चन्द्रमा बिलकुल अलहदा है। उसकी व्याख्या यह है कि जब मूल चन्द्रमा से आत्मसात होगा यानी जब यह सुरत पहले और दूसरे स्थान को तय करके मानसरोवर में स्नान करेगी तो उसका आदि कर्म- जिसके सबब से कि उसको इस संसार में, इस देह में यानी पिंड में आना पड़ा है और इतना दुख सहना पड़ा है, छूट जाएगा। जब विधाता कर्म यानी आदि कर्म का पसारा छूटेगा तब हम वास्तविक तौर पर उस चन्द्रमा को ऐसे देख पाएंगे कि जैसे आप खिले हुए चन्द्रमा को देहधारी गुरु के रूप में देखते हैं। इसलिए देह रूपी सतगुरु की बड़ी महिमा है। वह कभी चन्दा बनके चमकता है और कभी सूरज बनके खिलता है।

सुन री सखी रात प्यारे राधास्वामी।

मोहे सपने में अंगवा लगाये रहे री।। टेक।।

मोहनी छबी दिखा अंतर में

(मोहे) भांति-भांति में लुभाये रहे री।

ज्योति दिखावें, सूर दिखावें

(कभी) चन्दा बनके चमकाये रहे री।

समझना चाहिए कि जिस किसी को उस चन्द्रमा का दर्शन करना है, आत्मसात करना है और अपने विधाता कर्मों को काटना है, उसके लिए दो बातें जरूरी हैं। एक तो अपने वक्त गुरु का दर्शन करना और दूसरा उनके चरनों में प्रीत और प्रतीत की डोर ऐसी बांधना कि वह कभी कम न होने पावे। (क्रमशः)

(अमृतबचन राधास्वामी तीसरा भाग, आध्यात्मिक परिभ्रमण विशेषांक से साभार)