राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य और अधिष्ठाता दादाजी महाराज ने कहा – हमारा भी एक चन्द्रमा है और वह चन्द्र मूल चन्द्रमा है जो दसवें द्वार यानी सुन्न में हमेशा खिला रहता है जहां धुंध का नामोनिशान नहीं है।
हजूरी भवन, पीपलमंडी, आगरा राधास्वामी मत (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं, जो आगरा विश्वविद्यालय ) Agra University)के दो बार कुलपति रहे हैं। हजूरी भवन (Hazuri Bhawan) में हर वक्त राधास्वामी नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 24 अक्टूबर, 1999 को दादाजी महाराज भवन परिसर, सेन्ट एंसल्स स्कूल के पास, सुभाषनगर, भीलवाड़ा (राजस्थान) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज (Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने बताया कि हमारे मत में मानव की पूजा नहीं होती बल्कि निजधार की पूजा होती है।
हमारे मत में मानव की पूजा नहीं होती बल्कि निजधार की पूजा होती है जो उस देह स्वरूप में आकर अवतरित होती है, जीव के कल्याण के लिए, बचन सुनाकर, धुन सुनाकर सत्तपुरुष राधास्वामी के चरनों में मिलाने के लिए।
सावन-भादों की घनघोर वर्षा के बाद जब वातारण साफ हो जाता है तो जो चन्द्रमा खिलवता है, उसमें कोई धुंध नहीं रहती यानी साफ दिखाई देता है। उसी पूर्ण चन्द्र के सौन्दर्य को लोग निहारते हैं। चन्द्रमा से जो मधुर और स्वच्छ किरणें निकलती है, वह सारे वातारण को शुद्ध करती हैं और आपकी जो आंतरिक चाह या वृत्ति निहारने या आत्मसात करने की है, उसको जगाती हैं। इसीलिए शरद पूर्णिमा की भारी महिमा है। हमारा भी एक चन्द्रमा है और वह चन्द्र मूल चन्द्रमा है जो दसवें द्वार यानी सुन्न में हमेशा खिला रहता है जहां धुंध का नामोनिशान नहीं है।
आप लोग तमोगुण और त्रियतापों की तपन से इस कदर विचलित, परेशान और दुखी हो रहे हैं कि आपको उस मूल चन्द्रमा की सुध जाती रही है। जिस तरह से वर्षा ऋतु के बाद सारी धुंध साफ हो जाती है और चन्द्रमा स्पष्ट दिखाई देता है, उसी प्रकार यदि आपको पूरे गुरु मिल जाएं तो साक्षात उस सूर्य के, उस चन्द्रमा के विद्यमान स्वरूप हैं, तब आपकी धुंध हट जाएगी और अंतर में उस मूल चन्द्रमा का दर्शन मिलेगा, शीतलता आएगी, त्रियतापों की तपन कम होगी और आपके अंदर अद्भुत शक्ति यहां के दुख-सुख को सहने की जाग्रत होगी और आपको जो गांठें हैं, जिनकी वजह से यह सब कुछ आप भोगते हैं, वह ढीली पड़ती जाएंगी। (क्रमशः)
(अमृतबचन राधास्वामी तीसरा भाग, आध्यात्मिक परिभ्रमण विशेषांक से साभार)
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