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राधास्वामी मत में चार चीजों की मुख्यता, जानिए क्या

NATIONAL REGIONAL RELIGION/ CULTURE

राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य और अधिष्ठाता दादाजी महाराज ने कहा – हमारी अवधारणा है कि जीवों को दुखी देखकर, इन अवस्थाओं से गुजरते देखकर उसने स्वयं गुरु रूप धारण किया है

हजूरी भवन, पीपलमंडी, आगरा राधास्वामी मत (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं, जो आगरा विश्वविद्यालय )  Agra University)के दो बार कुलपति रहे हैं। हजूरी भवन (Hazuri Bhawan) में हर वक्त राधास्वामी नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 23 अक्टूबर, 1999 को ग्राम भीमखंड, चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज (Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने बताया कि राधास्वामी मत करनी का मत है।

राधास्वामी मत में चार चीजों की मुख्यता है। पहले तो उस लहर को ढूंढने की जिसको सतगुरु कहते हैं, दूसरे उनका संग करने की जिसको सतसंग कहते हैं, तीसरे उस नाम की जिसको सतनाम कहते हैं और चौथे उस प्रेम की जिसको सत अनुराग कहते हैं।

सतगुरु देहधारी रूप है लेकिन हम देहधारी गुरु के अंदर मालिक को देखते हैं क्योंकि हमारी अवधारणा है कि जीवों को दुखी देखकर, इन अवस्थाओं से गुजरते देखकर उसने स्वयं गुरु रूप धारण किया है और वह आप जैसे ही रूप में रहकर आपको सच्ची मुक्ति का साधन बता सकता है। जिस किसी ने इस जिन्दगी में सतगुरु को खोज लिया, मानो उसे मालिक मिल गया। यदि आपको पूरे गुरु मिल जाएं, जिनके अंदर शब्द गाज रहा है, जो मालिक की उस लहर के रूप में यहां आए हैं, उनके निज प्रतिनिधि हैं, निज मुसाहिब हैं या निज पुत्र हैं तो उनसे आपका संपर्क हो सकता है।

खोज करने की वृत्ति मनुष्य में है। बड़े-बड़े वैज्ञानिकों ने नई-नई चीजें खोज करके निकाल दी हैं। लेकिन उन्होंने जो खोज की है, वह सब भौतिक खोज है। आपसे मेरा अनुरोध है कि आप भौतिक खोज न करके आध्यात्मिक खोज कीजिए। बहुत से लोग मुक्ति की बात करते हैं। हमारे यहां ऋषि, मुनि, योगेश्वर, ज्ञानी आदि सबने मुक्ति की बात कही है और अनेक तरह के प्रयोग इस देश में हुए हैं। जिस धरती पर आप इस समय बैठे हुए हैं, यहां प्रेम और भक्ति है, क्योंकि संत और साध यहां पैदा हुए हैं। है तो मरुस्थली लेकिन बड़ी रसमय हो रही है।

यहां से कुछ दूरी पर मीराबाई का स्थान है, जिन्होंने प्रेम की अद्भुत सरिता बहा दी और किसी की चिन्ता नहीं की। उन्होंने तो सदेह गुरु ढूंढा। मीराबाई के सदेह गुरु रैदास दी थे, तभी तो यहां वह भक्ति है। इसीलिए आप लोगों को भी समय रहते हुए सदेह गुरु को ढूंढने की आवश्यकता है। उनके साथ बैठने से आपको स्वतः ही उनकी विलक्षण शक्ति का पता चल जाएगा और उनके द्वारा दिए हुए प्रवचनों से आपके संशय भरम दूर होंगे। अशांत हृदय को शांति मिलेगी। अगर वह आपको आकर्षित कर सकते हैं तो जमिए और फिर जो मार्ग वह बातवें उसके अनुसार करनी कीजिए। इसलिए राधास्वामी मत करनी का मत है।

(क्रमशः)

(अमृत बचन राधास्वामी तीसरा भाग आध्यात्मिक परिभ्रमण विशेषांक से साभार)