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राधास्वामी मत के गुरु दादाजी महाराज बता रहे हैं कि सुरत यानी आत्मा का भंडार कहां है?

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राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य और अधिष्ठाता दादाजी महाराज ने कहा- राधास्वामी मत के अनुसार कोई व्यक्ति चले तो यह बूंद पहले लहर से और फिर लहर के साथ अपने भंडार में मिल सकती है।

हजूरी भवन, पीपलमंडी, आगरा राधास्वामी मत (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं, जो आगरा विश्वविद्यालय )  Agra University)के दो बार कुलपति रहे हैं। हजूरी भवन (Hazuri Bhawan) में हर वक्त राधास्वामी नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 23 अक्टूबर, 1999 को ग्राम भीमखंड, चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज (Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने बताया कि साम्यवाद सिद्धांत ऊपर से देखने में तो बहुत अच्छा लगता है लेकिन इसके प्रयोग सफल नहीं हुए।

इस देह की सारी कार्रवाई सुरत की शक्ति से होती है। शरीर के जिस भाग से सुरत की शक्ति ऊपर खिसक जाती है, वह भाग बेकार हो जाता है और अंत में जब सुरत ऊपर खिंचती है तो यह जीव बेकार हो जाता है। सब कहते हैं कि जीव मरता है, आत्मा नहीं मरती। यह ठीक भी कि पांचों तत्वों से शरीर बना है और पांच तत्वों मे ही विलीन हो जाता है। आखिर यह बात सही साबित हो गई कि इस शरीर के रूप में कुछ नहीं रखा है, जो है वह आत्मा या सुरत है। तो वह सुरत कहां है। अगर यह सुरत है और मरते वक्त शरीर से निकलती है तो इसका भी कहीं भंडार होगा।

फिर यह भी सवाल आता है कि आखिर उस भंडार से वह यहां आई तो क्यों आई और यहां आकर इस देह में क्यों फंस गई और अब इसको निकाला कैसे जाए। यह जो इतना महत्वपूर्ण प्रश्न है इसके बारे में सोच-विचार समाप्त हो गया है। हर जगह अशांति, विप्लव और भुखमरी फैली हुई है। ऐसी परिस्थिति में यह और भी जरूरी हो जाता है कि कम से कम इसी जिन्दगी में रहते हुए उस अमर तत्व के स्रोत को पहचान लें। आप ऐसी अंतरमुखी साधना अपने प्रयोग में लाएं जिनके द्वारा न केवल आप दुनिया से विलग हो सकें बल्कि इसके भंडार में भी जा सकें। इन सब प्रश्नों के जवाब राधास्वामी मत देता है।

राधास्वामी मत में बताया जाता है कि सुरत शब्द के भंडार से निकलती है, उसमें और मालिक में एकता है। उसी प्रेम के भंडार की एक बूंद तुम हो। तुमसे मतलब तुम्हारी देह से नहीं, उस सुरत से है जो तुम्हारी देह में बैठकर कार्रवाई कर रही है। लिहाजा यह मत बताता है कि कैसे उस बूंद को सिंध में मिलाया जाए। आप समझिए कि जब समुद्र का ज्वार-भाटा लहर बनकर आता है तो वह लहर उस बूंद को प्रेम के सागर में ले जा सकती है और अपना रूप दे सकती है। जो प्रेम और आनंद का भंडार है, अमर, अजर और हमेशा एक रस कायम है, वही कुल मालिक है और परम तत्व है। उस परमतत्व को परम पुरुष राधास्वामी कहते हैं। इस सुरत की निकरौसी वहीं से है और उसी की लहर को हम गुरु और जीव को बूंद कहते हैं। सारपूर्ण बात यह है कि अगर इस मत के अनुसार कोई व्यक्ति चले तो यह बूंद पहले लहर से और फिर लहर के साथ अपने भंडार में मिल सकती है।(क्रमशः)

(अमृत बचन राधास्वामी तीसरा भाग आध्यात्मिक परिभ्रमण विशेषांक से साभार)