dadaji maharaj

Radhasoami Guru दादा जी महाराज के अनमोल बचन -45: ध्यान में बैठने से पहले क्या करें

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radha Soami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur former Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

(45)

यह जो बचन की धार है उसमें सराबोर हो जाना चाहिए। जैसे कि गर्मियों के बाद जब बारिश आएगी तो उसमें नहाने में बहुत अच्छा मालूम होता है, इसी तरह से जब संत या साध बचन फरमाते हैं तो उसमें से धार निकलती है और उसमें नहाना चाहिए, तो उसमें वही आनंद आएगा जैसा कि पहली बरसात में आता है। दुनिया में तपिश है और सुख भी दुख रूप है। किसी तरह से यहां कोई आराम नजर नहीं आता है। बीमारी-हारी पीछा नहीं छोड़ती। कष्ट और क्लेश उठाने पड़ते हैं। कुछ अपने कर्मों की वजह से होते हैं तो कुछ उनकी वजह से होते हैं जिनके साथ हमारा मेल-मिलाप होता है या अपने बच्चों की वजह से होते हैं या अपने नातेदार और रिश्तेदारों और कुटुंब की वजह से होते हैं। यह कारखाना बहुत लंबा है इसका कोई ठिकाना नहीं है। जाने कितने लोगों से मिलना होता है, देखना होता है, उनकी नजर आपके ऊपर पड़ती है। एक बात याद रखनी चाहिए कि सबकी नजर में मेहर भरी नहीं होती, उसमें ईर्ष्या होती है, जो दुख पहुंचाती है। जो नजर-ए मेहर आलूदा है, वह मालिक की है या उनके प्रतिनिधि संत सतगुरु यानी उनके पुत्र संत सतगुरु की है। उनकी नजर और इन दुनियादारों की नजर में फर्क है लेकिन इस फर्क को समझते नहीं हैं। यही मूर्खता या अनसमझता है। मालिक या उसके प्रतिनिधि का मिलान दुनिया में और किसी से नहीं हो सकता। इसलिए कहा गया है कि आप सतसंग कीजिए, पहले राधास्वामी मत को समझिए, राधास्वामी दयाल की महिमा को जानिए, राधास्वामी को कुल मालिक मानिए, फिर उस प्रीत और प्रतीत को पहले बढ़ाइए और फिर सतसंग में उनके साथ थोड़ा बहुत प्रीत का रिश्ता रखिए। राधास्वामी दयाल तो कहते हैं कि यह तो दीन-गरीबी का मत है, दीनता लाओ। राधास्वामी दयाल के सामने हम सब दीन-अधीन हैं। उनके चरनों में आए हैं अपना उद्धार कराने के लिए। बहुत से लोग कहते हैं कि हम बैठते हैं लेकिन हमको अंतर में दर्शन नहीं होते तो जरा गहरे बैठिए। ऐसा नहीं हो सकता कि अंतर में उनका दर्शन ना हो। उसके लिए आपकी आंख खुली होनी चाहिए। आपका एक दिन भी सही अभ्यास बनेगा यानी मन और चित्त में और कोई दुनिया की गुनावन नहीं उठेगी, आप गुरु स्वरूप में लीन होंगे और उनको अगुवा करके आगे चलेंगे, आप चल नहीं कर सकते यह पक्की बात है, वही चलाएंगे, वो ही बढ़ाएंगे तो फिर उनको आगे रखने में क्या हर्ज है। ध्यान में बैठने से पहले उस स्वरूप को खूब ध्यान से देखिए जिस स्वरूप को आप देखते चले आ रहे हैं, उसी में थोड़ा ध्यान लग सकता है। प्यार होता है सजीव, इसलिए यह मत सजीव है। यहां पर इसीलिए वक्त गुरु की महिमा कही गई है। उनके संग से आपको लाभ होगा, नुकसान तो कुछ भी नहीं होगा।

(44)

मालिक को केवल निराकार या कोई है मालिक, ऐसा करके नहीं मारना चाहिए। मालिक को सदा अपने संग मानकर अंतर में उसको खोजना चाहिए। जितनी तड़प अंतर में बढ़ती जाएगी वह मालिक तुमको अंतर में भी मिलेगा और बाहर भी तुम्हारा संयोग ऐसा बनाएगा कि सत्संग से किसी वजह से भी नाता जुड़ जाएगा। एक दफा जो नाता जुड़ता है तो वह टूटता नहीं है। रिश्तेदारों में अभाव हो जाता है, तनाव हो जाते हैं, झगड़े और फसाद भी हो जाते हैं, दोस्तों की मोहब्बतों पर भी भरोसा नहीं होता, ज्यादातर तो मतलबी दोस्त हैं आजकल, अपना मतलब निकला और गायब हो गए, ऐसे जो प्रीत लगाते फिरते हो वह किसी काम की नहीं है। इसलिए क्यों न हम पहले समझ लें कि इनसे ज्यादा आशा रखना फिजूल है। जिस प्रकार से यह आपसे व्यवहार करते हैं उसी प्रकार से आप प्यार इनको कीजिए। अनुभव की बात जरूर सिखाइए, सच्ची बात जरूर सिखाइए, लेकिन यह पूरा भरोसा मत करिए कि यह समय पड़ने पर हर वक्त आपके साथ रहेंगे। राधास्वामी दयाल हर वक्त आपके संग रहेंगे। गुरु मिल जाएंगे तो उनका संग हमेशा साथ रहेगा। इसलिए क्यों न उनसे प्रीत और प्रतीत को बढ़ाया जाए, अपने रिश्ते बनाए जाएं और उन पर भरोसा करके देखा जाए। आजकल मजबूरियां हैं- एक तो काम ही मजबूरी है, बच्चे पालने की मजबूरी है, उनको पढ़ाने-लिखाने की मजबूरी है। उनसे स्कूल के समय से आप बँधे हुए हैं, यानी वह सब बंधन है तो फिर आपके पास मालिक को याद करने का समय कहां है, लेकिन समझना चाहिए कि राधास्वामी दयाल के चरनों की प्रीत जो है वह सबसे आवश्यक है। काम पर अगर हम देर से भी जाएंगे तो कोई न कोई इलाज मालिक कर देंगे और इसका भी उन्होंने बहुत खुलासा किया है, तरह-तरह से समझाया है लेकिन समझने वाला तो हो। अनुभव के आधार पर नवयुवकों को मैं सलाह देता हूँ कि उतना ही काम करो जितना तुम्हारी सेहत काम करे। सबसे जरूरी है कि सत्संग में लगिए, अनुभवी का संग कीजिए। जिसको आपसे ज्यादा अनुभव है उसका संग करना ठीक है, उससे आदान-प्रदान होता है और उसी की जरूरत है। प्रेमी से आदान-प्रदान होकर प्रेम ही तो जागेगा, प्रीत और प्रतीत ही तो बढ़ेगी। राधास्वामी दयाल को मानने वाले से मिलेंगे तो हमारी प्रीत राधास्वामी दयाल के चरनों में बढ़ेगी। जितनी प्रीत और प्रतीत उनके चरनों में बढ़ती जाएगी उसका फायदा इनको खुद ब खुद मिलता चला जाएगा। सम्हाल तो होगी, अब सम्हल जाएं तो बहुत बढ़िया है, नहीं सम्हलेंगे तो सम्हाले तो जाएंगे। इसलिए एक बात और निश्चित रूप से जान लीजिए कि जो मालिक के चरनों में लगा हुआ है उसको अपने बच्चों की ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि उनकी चिंता उनके खानदान के परम पुरुष पूरन धनी राधास्वामी दयाल को है।