Agra, Uttar Pradesh, India. राधास्वामी मत की स्थापना 1861 में बसंत पंचमी के दिन हुई थी। आगरा की तंग पन्नी गली में हजूर महराज के आग्रह पर स्वामी जी महाराज ने राधास्वामी मत को प्रकट किया था। यही कारण है कि पन्नी गली में हजूर महाराज की साधना स्थली पर मत्था टेकना हर सत्संगी अपना कर्तव्य मानता है। राधास्वामी मत को आज 161 साल हो गए हैं। राधास्वामी मत को मानने करोड़ों लोग हैं। ये देश-विदेश में फैले हुए हैं। हजूरी भवन, पीपलमंडी, आगरा में आज भी आध्यात्मिक जागरण हो रहा है। यहीं पर द्वितीय आचार्य हजूर महाराज की समाध है। एक शोध का निष्कर्ष है कि हजूरी समाध पर की गई पच्चीकारी ताजमहल से भी सुंदर है। दयालबाग और स्वामी बाग भी राधास्वामी मत मानने वालों का केन्द्र बना हुआ है। स्वामी बाग में बना राधास्वामी मंदिर (दयालबाग मंदिर) की शान ही निराली है। आइए जानते हैं का राधास्वामी मत की स्थापना कैसे हुई।
क्यों हुई स्थापना
19 वीं शताब्दी के पुनर्जागरण के अभ्युदय से पूर्व साधारण जनता के मानस पटल पर मध्ययुगीन संतों के उपदेशों का प्रभाव समाप्त हो चुका था। धर्म, नैतिक शुचिता एवं आत्मशक्ति का स्रोत है, जैसी अवधारणा खंड-खंड हो चुकी थी। लोहे की कील पर चलना और झूलना जैसे मानव कष्टों के प्रति उदासीनता की वृत्ति अंधविश्वासों का ही परिचालन मात्र थी। प्रख्यात इतिहास जदुनाथ सरकार के शब्दों में – अठारहवीं शताब्दी में धर्म पाप और अज्ञान का अनुचर हो चुका था। इसी कारण समाज सुधार के उद्देश्य से राधास्वामी मत को प्रकट किया गया।
1866 में राधास्वामी सत्संग में परिवर्तित
स्पष्टता और सहजता के करण ही यह राधास्वामी मत भारतीय समाज में अभूतपूर्व ढंग से ग्राह्य हुआ। जन साधारण को इसमें शांति और परमतत्व से मिलने की आशा भरी करण दिखाई दी। इस प्रकार सन 1861 में हजूर महाराज की विनय पर स्वामी जी महाराज द्वारा स्थापित आम सत्संग हजूर महाराज को ही प्राप्त आंतरिक अनुभव के बाद वर्ष 1866 में राधास्वामी सत्संग में परिवर्तित हो गया।
प्रथम आचार्यः परम पुरुष पूरन धनी स्वामी जी महाराज
स्वामी जी महाराज का जन्म 25 अगस्त, 1818 को जन्माष्टमी के दिन पन्नी गली, आगरा में खत्री परिवार में हुआ था। पारिवारिक नाम था सेठ शिवदयाल सिंह। छह साल की आयु में ही योगाभ्यास शुरू कर दिया था। हिन्दी, उर्दू, फारसी, गुरुमुखी का ज्ञान था। उन्होंने अपने प्रिय शिष्य हजूर महाराज के आग्रह पर 1861 में बसंत पंचमी के दिन सतसंग की स्थापना की। पहला सतसंग मौज प्रकाश की धर्मशाला, माईथान, आगरा में हुआ। पन्नी गली स्थित आवास पर 17 साल तक सत्संग की अध्यक्षता की। 15 जून, 1878 को देह त्याग दी। उनकी समाध राधास्वामी बाग (स्वामी बाग), आगरा में है। उनके दर्शन के लिए प्रतिवर्ष लाखों लोग आते हैं।
द्वितीय आचार्यः परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज
राधास्वामी मत के दूसरे आचार्य राय सालिगराम बहादुर हजूर महाराज (Hazur maharaj) का जन्म 14 मार्च, 1829 को पीपल मंडी, आगरा में कायस्थ परिवार में हुआ था। आगरा कॉलेज में शिक्षा ग्रहण की। 1847 में हजूर महाराज ने पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत के पोस्ट मास्टर जनरल के कार्यालय में कार्य शुरू किया। 1861 में वे पोस्ट मास्टर जनरल बने। इस उच्च पद पर पहुंचने वाले पहले भारतीय थे। आम जनता के लिए एक पैसे का पोस्टकार्ड उन्होंने शुरू कराया, जो आज भी लोकप्रिय है। 1871 में रायबहादुर की पदवी से सम्मानित किया गया। 1858 में स्वामी जी महाराज से भेंट हुई। लगातार 20 साल तक उन्होंने गुरु की सेवा की। 1878 में निज धाम सिधारते समय स्वामी जी महाराज ने हजूर महाराज को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। हजूर महाराज ने 1885 में पीपल मंडी में सात चौक वाले भव्य मकान की स्थापना की। यही स्थान आज हजूरी भवन के नाम से जाना जाता है। यहां तब से आज तक राधास्वामी की गूंज हो रही है। हजूर महाराज की समाध इसी परिसर में है। 1898 में हजूर महाराज निजधाम सिधार गए। इसके बाद उनके अस्थिकलश यहीं स्थापित किए गए।
तृतीय आचार्यः लालाजी महाराज
हजूर महाराज के बाद हजूरी भवन में सत्संग का संचालन उनके पुत्र राज अजुध्या प्रसाद ने 1898 में संभाला। सत्संगी उन्हें लालाजी महाराज (Lalaji maharaj) कहते हैं। उनका जन्म 29 दिसम्बर, 1866 को हुआ था। कहा जाता है कि पूर्व जन्म में वे अयोध्या के संत थे। अय़ोध्या के संत उनके दर्शन के लिए आए थे। 26 नवम्बर, 1926 में उन्होंने देह त्याग दी। उनकी समाध हजूर महाराज की समाध के निकट है।
चतुर्थ आचार्यः कुंवर जी महाराज
लालाजी महाराज के ज्येष्ठ पुत्र कुंवर जी महाराज का जन्म 20 सितम्बर, 1885 को हजूरी भवन में हुआ था। पारिवारिक नाम गुरु प्रसाद था। उन्हें घुड़सवारी, शतरंज और टेनिस का शौक था। उनके दो पुत्र हुए- प्रेम प्रसाद और आनंद प्रसाद। कुंवर जी महाराज ने सत्संग की कमान 1929 से 1959 तक संभाली। 27 फरवरी, 1959 को वे भजन के दौरान ही अंतर्ध्यान हो गए।
वर्तमान आचार्यः दादाजी महाराज
राधास्वामी मत के चतुर्थ आचार्य कुंवर जी महाराज के पुत्र आनंद प्रसाद के चार पुत्र और चार पुत्रियां हुईं। ज्येष्ठ पुत्र के रूप में प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर (दादाजी महाराज Dadaji maharaj) का जन्म 27 फरवरी, 1930 को रात्रि 8.45 बजे हुआ। उनका जन्म हजूरी भवन के उसी कक्ष में हुआ, जहां उनके बाबा कुवंर जी महाराज और पिता आनंद प्रसाद का जन्म हुआ था। नाम रखा गया अगम। दूसरे पुत्र शब्द प्रसाद माथुर का जन्म 1932 में, तीसरे पुत्र स्वामी प्रसाद माथुर का जन्म 1935 में और चौथे पुत्र सरन प्रसाद का जन्म 1938 में हुआ। 15 अगस्त, 1947 को देश आजाद हुआ तो अगम के आग्रह पर हजूरी भवन में तिरंगा फहराया गया और मिष्ठान्न वितरण हुआ। बालक के रूप में प्रो. माथुर ने हुजूरी भवन को क्रांतिकारियों के छिपने का स्थल बना दिया था। 1952 से 1982 तक आगरा कॉलेज में सेवाएं दीं। आगरा विश्वविद्यालय के लगातार दो बार कुलपति रहे- 1982 से 1985 तक तथा 1988 ई. से 1991 तक। इससे पहले 1976 से 1979 तक बीपी जौहरी कुलपति रहे, लेकिन इस दौरान अप्रत्यक्ष रूप से प्रो. अगम प्रसाद माथुर ही कुलपति थे। इस बात को स्वयं बीपी जौहरी ने स्वीकारा है। 1959 से प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर राधास्वामी सत्संग की कमान संभाल रहे हैं।
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