Dadaji maharaj agra

राधास्वामी मत के गुरु दादाजी महाराज ने बताया हमेशा स्थाई रिश्ता कायम रखने का फार्मूला

NATIONAL REGIONAL RELIGION/ CULTURE

हूजरी भवन, पीपल मंडी, आगरा राधास्वामी (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं जो आगरा विश्वविद्यालय (Agra university) के दो बार कुलपति (Vice chancellor of Agra university)  रहे हैं। हजूरी भवन (Hazuri Bhawan, Peepal Mandi, Agra) में हर वक्त राधास्वामी (Radha Soami)  नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत (RadhaSomai faith) के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 27 मार्च, 2000 को सारस मोटल परिसर, रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज (Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने कहा- अपने आपको कुल मालिक राधास्वामी दयाल के सामने समर्पित करना है।


वियोग क्या है

हजूरी प्रेम में वियोग की कोई गुंजाइश नही हैं, संयोग की गुंजाइश है। यह संयोग हमको अब भी गुरु रूप में मिल रहा है। वियोग उस स्थिति या दशा को कहते हैं जिसके अंदर तड़प रहती है और तड़प के साथ खींचातानी रहती है। जब तक यह खींचातानी है तब तक निर्मलता नहीं आ सकती और उसको जिसको आप माता, पिता, स्वामी अथवा प्रीतम कहें या मानें, उससे नहीं मिल सकते हैं।

आज के विज्ञान ने क्या दिया

हर व्यक्ति जो सोच शक्ति रखता है उसको यह समझना चाहिए कि आखिर आज के विज्ञान ने उसे  दिया क्या है। यह सब सुख सुविधाएं जानलेवा हैं। जरा सा बिजली का करेंट लग जाए तो आदमी तड़पकर समाप्त हो जाता है। क्या इलेक्ट्रोमैगनेटिक वेब तथा इतनी बढ़ी हुई न्युक्लियर पावर आपको शांति दे सकती है। आप कह लीजिए कि आपने समृद्धि पा ली है, आपने बहुत कुछ सीखा है लेकिन मेरे ख्याल से तो आप और अधिक अज्ञानी हो गए हैं। साधारण जिन्दगी का तौर-तरीका जिसमें हमने अपना बचपन गुजारा बहुत सरल और सुखद था। तनाव रहित समाज था। तनाव रहित परिवार होते थे।

कुछ भी ठहराऊ नहीं

आज संकल्प-विकल्प में जो काम करना चहिए उससे दूरी और जो नहीं करना चाहिए उससे नजदीकी पैदा हो रही है यानी मालिक के नाम का सुमिरन कोई नहीं करता और मालिक को याद भी कोई नहीं करता। कोई अपने जीव कल्याण की नहीं सोचता। अगर आप किसी जगह जाते भी हैं तो जहां पर कि इनका इष्ट है तो ज्यादातर वहां पर तमन्ना अपने इष्ट देव से यही रहती है कि कुछ ऐसा कर दीजिए कि संतान हो जाए, धन बढ़ जाए, पद और मकान मिल जाए। अपने इष्ट से इसके अलावा कोई क्या मांगता है। अगर किसी को कुछ मिल  भी जाए तो वह ठहराऊ नहीं होता है।

क्या करना है

लोग बड़े-बड़े मकान बनाते हैं, उस मकान में जाकर शांति से साल-छह महीने भी नहीं रह पाते हैं। आप बहुत ज्यादा लम्बे चौड़े सपने बनाइए, वह भी पूरे नहीं हो पाते हैं। यह ऐसे ही होता है जैसे रेगिस्तान में जाइए, वहां रेत से कोई मकान तैयार कीजिए, एक आंधी का झोंका आया और सब गायब। इसी प्रकार अपनी जिस बुद्धि पर आप घमंड करते हैं, वह तो कुबुद्धि है और उस कुबुद्धि के साथ जो खेल खेलते हैं, वह खेल नहीं, उलटी कबड्डी है, जिसमें हर दफा आप मात खाते हैं अर्थात यहां कुछ स्थाई नहीं है। इसी के लिए राधास्वामी मत है जो हजूर महाराज ने चलाया और कहा कि इसी जिन्दगी में एक ऐसा रिश्ता स्थापित हो सकता है जो हमेशा स्थाई रहेगा। इसके लिए क्या करना है- अपने आपको कुल मालिक राधास्वामी दयाल के सामने समर्पित करना है।