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दादाजी महाराज ने बताया- हम कौन हैं, कहां से आए हैं, अंत में कहां जाएंगे?

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हजूरी भवन, पीपलमंडी, आगरा राधास्वामी मत का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं, जो आगरा विश्वविद्यालय के दो बार कुलपति रहे हैं। हजूरी भवन में हर वक्त राधास्वामी नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। 26  सितम्बर 1999 को हरियाणा भवन, विवेकानंद रोड, सेन्ट्रल कोलकाता (पश्चिम बंगाल) में हुआ सतसंग आज भी याद किया जाता है। 21 साल पहले दादाजी महाराज ने जीवन के गूढ़ रहस्यों के बारे में जानकारी दी।


 यह संसार अगिन भंडार।

 शीतल जल सतगुरु आधार।।

 आज जिधर देखो उधर तबाही मची हुई है। अन्याय, शोषण, दुख, तृष्णा और दुनिया के भोगों की चाह ने इस कदर जोर पकड़ लिया है कि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को अपना विरोधी या प्रतिद्वंद्वी मानता है। सच्ची हमदर्दी, अपनेपन और इंसानियत का दौर मानो खत्म हो गया है। जितनी विज्ञान ने प्रगति की है और जो नए आविष्कार होते जा रहे हैं, उनसे इंसान सुविधाभोगी  हो गया है। वह चाहता है कि विज्ञान में उसको जो सहूलियत में दी हैं वह सब उसको प्राप्त हो जाएं। जिनको प्राप्त हो जाती हैं वह अपने आपको संतुष्ट समझते हैं और जिनको नहीं प्राप्त होती वह उनको प्राप्त करने के लिए तरह- तरह के अनैतिक कार्य करते हैं। संतोष, गुंजाइश और सद्भाव देखते- देखते गायब हो गया है। हर आदमी इधर- उधर मारा -मारा फिरता है। बड़े- बड़े शहरों में बड़ी प्रगति हुई है लेकिन अगर हर व्यक्ति की जिंदगी को देखा जाए तो सुबह से रात तक सिवाय भाग- दौड़ के कोई दूसरी चीज नजर नहीं आती। यह भाग- दौड़ एक ही है क्योंकि जो कुछ इससे प्राप्त होता है, वह स्थाई नहीं रहता।

 विज्ञान के चमत्कारों ने आपको इंसानियत से दूर कर दिया है। समाज और परिवार टूट रहे हैं।  बड़ों का आदर समाप्त हो गया है।  जिस समाज में बड़ों का आदर  समाप्त हो जाएगा वह समाज कभी प्रगति नहीं कर सकता। अगर हम भारतवर्ष की सांस्कृतिक परंपराओं को देखें तो उनमें एक मूल तत्व नजर आता है और वह यह है कि लोगों के अंदर कुछ मान्यताएं या मूल्य  थे, जिनको हम लोग संभाले रहे। विज्ञान और पाश्चात्य सभ्यता के उन मूल्यों के ऊपर कुठाराघात किया जिसकी वजह से अशांति ही अशांति नजर आती है। यह विध्वंषकारी आतंकवाद  जो फैलाया गया है उसका मूल कारण अशांति और दूसरों के प्रति प्रेम का अभाव है। एक जानवर दूसरे  जानवर पर वार नहीं करता जब तक कि वह भूखा नहीं होता लेकिन आज राजनीतिक विद्वेष के कारण एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को समाप्त करने के लिए तैयार है तो ऐसी जिंदगी किस मतलब की जहां प्रेम और सद्भावना न हो बल्कि कटुता हो। नतीजा क्या है कि पूरे विश्व में अशांति है।

 आज चेतने और जागने का समय है। यह वह देश है जो हमेशा आध्यात्मिक नेतृत्व देता रहा है। यहां पर अनेक ऋषि,  मुनि, पैदा जिन्होंने अपने जप-तप से प्रयोग करके एक निचोड़ निकाला, जिसको हम भारतीय संस्कृति कहते हैं। आप लोगों ने अपने को उस भारतीय संस्कृति से बिल्कुल अलेहदा कर लिया है। कोई व्यक्ति किसी प्रकार की आस्था नहीं रखता। जिन स्थानों पर अवतारों की पूजा होती है वह केवल नाम मात्र की और दिखावा है। एक दिन कथा कराने या आफत आने पर सदाव्रत जारी कराने तथा परोपकारी काम करने से जीव का कल्याण नहीं होता। आप लोगों की वृत्ति दुनिया में इस कदर फैल गई है कि अब इसका समेटना मुश्किल है।

इसलिए जो यहां के दुख से छुटकारा चाहते हैं और जो यहां के सुख को भी दुख  देखते हैं, जो यह जानना चाहते हैं कि हम कौन हैं, कहां से आए हैं, और अंत में शरीर छोड़कर कहां जाएंगे, जो लोग वास्तविक तौर पर इस भौतिक चकाचौंध और धार्मिक पाखंडों से घबरा गए हैं, जो तरह-तरह की धार्मिक वृत्ति के लोगों, उनके विचारों, तांत्रिक विद्या और भविष्य वक्ताओं की झूठी भविष्यवाणियों से विमुख हो गए हैं और वास्तव में चाहते हैं कि उन्हें शांति मिले, सच्चा मार्ग हाथ आए, ऐसे लोगों के लिए   हल संतमत में है। आधुनिक काल में वही संत का मत राधास्वामी मत कहलाता है।

(अमृत बचन राधास्वामी तीसरा भाग से साभार)