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दादाजी महाराज ने कोलकाता में बताई Radhasoami मत की विशेषता

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हजूरी भवन, पीपलमंडी, आगरा राधास्वामी मत का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं, जो आगरा विश्वविद्यालय के दो बार कुलपति रहे हैं। हजूरी भवन में हर वक्त राधास्वामी नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। 26  सितम्बर 1999 को हरियाणा भवन, विवेकानंद रोड, सेन्ट्रल कोलकाता (पश्चिम बंगाल) में हुआ सतसंग आज भी याद किया जाता है। 21 साल पहले दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत की विशेषता के बारे में जानकारी दी।

राधास्वामी मत को ग्रहण करने के बाद आपको गृहस्थी नहीं छोड़नी पड़ती, आपको अपना रोजगार नहीं छोड़ना पड़ता और आप अपने दुनिया के सब दायित्वों को पूरे तौर पर निभा सकते हैं। अगर परहेज है तो सिर्फ मांस, मछली, अंडे और मदिरा से है। राधास्वामी मत में उपदेश का वह तरीका बताया जाता है जिससे आप अपने आंतरिक रूप को यानी सुरत के रूप को इसी जिंदगी में रहते हुए देख सकते हैं, परख सकते हैं और जहां सुरतों का भंडार है, जो सुख का सागर है, जहां से सब की उत्पत्ति हुई है, जहां से सारा ब्रह्मांड पैदा किया गया है, वहां पहुंच सकते हैं। माया अपने जाल में फंसाती है, लेकिन उससे आप निकल सकते हैं और अपने आप को निकलते हुए देख सकते हैं। संताप की असहनीय स्थिति में जब आप का चित्र शांत हो जाता है और शांति चाहता है तब आपको आंतरिक शांति मिल सकती है, यदि आप सुख के उस भंडार का अनुभव आंतरिक अभ्यास से करने लग जाएं क्योंकि उससे एक ऐसी ऊर्जा प्राप्त होती है जो सुख में अधिक सुख और दुख में अधिक दुखी नहीं होने देती अर्थात हर प्रकार की परिस्थिति को झेल सकते हैं।

 आपकी सुरत  से मालिक का जो रिश्ता है वह गुप्त और मालिक का रूप है शब्द रूप। दुनिया में हर काम आवाज से  चलता है, बिना आवाज के नहीं। लेकिन आवाज- आवाज में फर्क है। आपको ऐसे सुरीले, मधुर, सलोनी और रसीले शब्दों को ग्रहण करना है जिनको सुनकर आप आनंदित हो जाएं। इंसान दुनिया की धुन में लीन हो गया है अंतर में उसको इस बात की फुर्सत नहीं है कि ऐसे रसीले, आनंदमई शब्दकोश में और स्वयं आनंदरूप हो जाए। उस आनंद रूप का आना आकर्षण को बढ़ाता है यानी उस मालिक के साकार दर्शन की चाह उठाता है। इसी आकर्षण को जो सबसे ज्यादा है हम लोग प्रेम कहते हैं। दुनिया में बहुत से लोग प्रेम की बात करते हैं लेकिन वह प्रेम नहीं  मोह है। जो छूट जाए वह प्रेम नहीं होता, वह मोह का बंधन होता है. जो चीज स्थाई रह जाए, वह प्रेम है। अगर कोई स्थाई रहता है तो वह सूरत का आकर्षण है और जो शब्द की ओर होता है।

 कुल मालिक ने जो अपना नाम घोषित किया है वह है राधास्वामी। राधा से मतलब प्रथम धार से है जो स्वामी यानी मालिक के धाम से आई और जगह-जगह पर ठेके लेती हुई, रचना करती हुई जहां पिंड के नाके पर बैठी है। अगर इधर से आप आधार को पकड़ेंगे, जिसके चरण यहां मौजूद हैं तो एक दिन उस धार से जरूर मिलेंगे। यह राधास्वामी नाम कोई वर्णनात्मक नाम नहीं है, यह ध्वन्यात्मक नाम है। जो कोई वास्तव में दुखी है और सुख के भंडार में जाना चाहता है तो उसको राधास्वामी नाम का उच्चारण करना चाहिए।

राधास्वामी कुल मालिक हैं। जिस परम तत्व की आती है वह सबसे बड़ा राधास्वामी है और वही सारी रचना का प्रेरक, रक्षक, कारक या कर्ता और अपने आप में समाया हुआ मालिक है। उस मालिक ने यहां पर देह रूप धारण किया और उसके मालिक को हम परम पुरुष पूरन धनी स्वामी जी महाराज राधास्वामी दयाल कहते हैं और दूसरे रूप यानी गुरमुख रूप में जो अवतरित राधास्वामी दयाल हैं, उनको हम परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज कहते हैं। हजूर महाराज को राधा का स्वरूप मानते हैं और स्वामी जी महाराज को स्वामी का। इसलिए स्वामी जी महाराज और हजूर महाराज की आराधना करने से उनको उस निराकार मालिक का साकार दर्शन प्राप्त होता है। राधास्वामी मत की यही विशेषता है।

 यदि किसी को मालिक का दर्शन करने की चाह है तो उसको इसी जिंदगी में दर्शन हो सकता है। हमारा राधास्वामी मत जब एक ओ राधास्वामी नाम को लखाता है तो दूसरी ओर गुरु भक्ति और सुरत-शब्द -योग पर जोर देता है। सबको जानना चाहिए कि राधास्वामी मत की दो मुख्य विशेषताएं हैं,  एक है  सुरत-शब्द-योग और दूसरी संत सतगुरु की खोज और उनकी भक्ति। खोज वही करता है जो सच्चा दर्दी है,  जो दुनिया से किसी कदर नाम होना चाहता है, वह संत सतगुरु को पहचान लेता है। जिस तरह से पपीहा स्वाति की बूंद की  रटन लगाता रहता है, किसी और चीज से उसकी प्यास नहीं बुझती है, जिस तरह से चकोर का चंद्रमा से रिश्ता है, जिस प्रकार सूरज निकलने के साथ ही कमल खिलता है, जिस प्रकार से चुंबक लोहे को खींचता है, जैसे जहां शहद हुआ मक्खियां वही सिमट जाती है और फिर छुड़ाए नहीं छूटती- इसी तरह का आकर्षण मालिक से सुरत का होता है।

इसकी विशेषता क्या है,  एक  विश्वास  कुल मालिक राधास्वामी दयाल में लाकर उनके नाम का सुमिरन करना और सुरत-शब्द-योग का रोजाना अभ्यास, एक घंटा सुबह एक घंटा शाम को करना। अगर आपको गुरु मिले और उनके वचनों से आप प्रभावित हो तो थोड़े दिन उनका संग कीजिए। उनके संग मात्र से यह मोह के बंधन कट जाएंगे और मालिक की तरफ जो आपका सच्चा आकर्षण है वह प्रकट हो जाएगा। वह तो टूटे हुए तिनके को जोड़ते हैं। तुम क्यों टूटते हो, क्यों दिखाते हो। आओ, इनका भी वह जोड़ देंगे और मालिक का दर्शन भी करा देंगे। इसलिए इसी जिंदगी में जो काम करना है, वह है अपने वक्त गुरु को ढूंढना।

(अमृत बचन राधास्वामी तीसरा भाग से साभार)