अकबर ने 51 मोहरें भिजवाईं और उसके बेटे जहांगीर ने भीषण यातनाएं देकर शहीद किया
तप्त तवे पर बैठाया, शीश पर गर्म रेत डाली, रावी नदी में नहाने भेजा तो वहां अलोप हो गए
गुरु अर्जुन देव ने स्वर्ण मंदिर की नींव लाहौर के एक सूफी संत साईं मियां मीर से रखवाई
विशेष संवाददाता
Lahore (Pakistan) । सिखों के पांचवें गुरु श्री गुरु अर्जुन देव जी का 26 मई को बलिदान दिवस है। आज के दिन लाहौर में 30 मई 1606 ई. को भीषण गर्मी के दौरान ‘यासा व सियास्त’ कानून के तहत लोहे की गर्म तवी पर बिठाकर शहीद कर दिया गया। ‘यासा व सियास्त’ के अनुसार किसी व्यक्ति का रक्त धरती पर गिराए बिना उसे यातनाएं देकर शहीद कर दिया जाता है। अकबर ने मोहरें भेजकर खेद प्रकट किया था लेकिव उसके बेटे जहांगीर ने भीषण यातनाएं देकर शहीद कर दिया। गुरुजी को तप्त तवे पर बैठाया, शीश पर गर्म रेत डाली, रावी नदी में नहाने भेजा तो वहां अलोप हो गए। गुरु अर्जुन देव स्वर्ण मंदिर की नींव लाहौर के एक सूफी संत साईं मियां मीर जी से रखवाई थी। उन्होंने श्री गुरु ग्रंथ साहिब की संपादन भी किया। गुरु अर्जुन देव को शहीदों का सरताज कहा जाता है।
15 अप्रैल, 1563 को हुआ जन्म
श्री गुरु अर्जुन देव जी का प्रकाश श्री गुरु रामदास जी के गृह में माता भानी की कोख से वैशाख बदी 7 सम्वत 1620 मुताबिक 15 अप्रैल 1563 ई. को गोइंदवाल साहिब (जिला तरन तारन, पंजाब) में हुआ। पालन-पोषण गुरु अमरदास जैसे गुरु तथा बाबा बुड्ढा जी जैसे महापुरुषों की देख-रेख में हुआ। गुरु अर्जुन देव बचपन से ही बहुत शांत स्वभाव तथा पूजा भक्ति करने वाले थे। उनके बाल्यकाल में ही गुरु अमरदास जी ने भविष्यवाणी की थी कि यह बालक बहुत बाणी की रचना करेगा। गुरु जी ने कहा था ‘दोहता बाणी का बोहेथा’। अर्जुन देव ने गुरु अमरदास से गुरमुखी की शिक्षा हासिल की थी, जबकि गोइंदवाल साहिब जी की धर्मशाला से देवनागरी, पंडित बेणी से संस्कृत तथा अपने मामा मोहरी जी से गणित की शिक्षा प्राप्त की थी। इसके अलावा उन्होंने अपने मामा मोहन जी से “ध्यान लगाने” की विधि सीखी थी।
स्वर्ण मंदिर का मानचित्र खुद तैयार किया
1581 ईस्वी में सिखों के चौथे गुरु रामदास ने अर्जुन देव को अपने स्थान पर सिखों के पांचवें गुरु के रूप में नियुक्त किया। अर्जुन देव जी ने 1588 ईस्वी में गुरु रामदास द्वारा निर्मित अमृतसर तालाब के मध्य में हरमंदिर साहिब नामक गुरुद्वारे की नींव रखवाई थी, जिसे वर्तमान में स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस गुरुद्वारे की नींव लाहौर के एक सूफी संत साईं मियां मीर जी से रखवाई गई थी। लगभग 400 साल पुराने इस गुरुद्वारे का नक्शा खुद गुरू अर्जुन देव जी ने तैयार किया था।
श्री गुरु ग्रंथ साहिब में 2216 शब्द श्री गुरु अर्जुन देव के
संपादन कला के गुणी गुरू अर्जुन देव ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का संपादन भाई गुरदास की सहायता से किया था। उन्होंने रागों के आधार पर श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में संकलित वाणियों का जो वर्गीकरण किया है, उसकी मिसाल मध्यकालीन धार्मिक ग्रंथों में दुर्लभ है। श्री गुरू ग्रंथ साहिब में कुल 5894 शब्द हैं जिनमें से 2216 शब्द श्री गुरु अर्जुन देव जी के हैं, जबकि अन्य शब्द भक्त कबीर, बाबा फरीद, संत नामदेव, संत रविदास, भक्त धन्ना जी, भक्त पीपा जी, भक्त सैन जी, भक्त भीखन जी, भक्त परमांनद जी, संत रामानंद जी के हैं। इसके अलावा सत्ता, बलवंड, बाबा सुंदर जी तथा भाई मरदाना व अन्य 11 भाटों की बाणी भी गुरुग्रंथ साहिब में दर्ज है।
अकबर ने जानी श्री गुरु ग्रंथ साहिब की महानता
श्री गुरु ग्रंथ साहिब के संकलन का कार्य 1603 ईस्वी में शुरू हुआ और 1604 ईस्वी में संपन्न हुआ। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का प्रथम प्रकाश पर्व श्री हरिमंदिर साहिब 1604 ईस्वी में आयोजित किया गया था, जिनके मुख्य ग्रंथी की जिम्मेदारी बाबा बुड्ढा को सौंपी गई थी। गुरू ग्रंथ साहिब के संपादन को लेकर कुछ असामाजिक तत्वों ने अकबर बादशाह के पास यह शिकायत की थी कि इस ग्रंथ में इस्लाम के खिलाफ लिखा गया है, लेकिन बाद में जब अकबर को गुरुवाणी की महानता का पता चला, तो उसने भाई गुरदास एवं बाबा बुढ्ढा के माध्यम से 51 मोहरें भेंट कर खेद प्रकट किया था।
रावी नदी में विलुप्त हो गए
अकबर की मौत के बाद जहांगीर दिल्ली का शासक बना। वह कट्टरपंथी था। गुरु अर्जुन देव के धार्मिक और सामाजिक कार्य उसे सुखद नहीं लगते थे। इतिहासकारों का यह भी मत है कि शहजादा खुसरो को शरण देने के कारण भी जहांगीर गुरु अर्जुन देव से नाराज था। 15 मई, 1606 ई. को बादशाह ने गुरु जी को परिवार सहित पकड़ने का हुक्म जारी किया। उनका परिवार मुरतजाखान के हवाले कर घरबार लूट लिया गया। अनेक कष्ट झेलते हुए गुरु जी शांत रहे। लाहौर में गर्म तवे पर बैठाया गया। गुरुजी के शीश पर गर्म रेत डाली गई। गुरु जी का शरीर बुरी तरह जल गया तो उन्हें रावी नदी में स्नान के लिए भेजा गया। डुबकी लगाते ही गुरुजी का शरीर अलोप हो गया। 30 मई, 1606 को गुरु जी शहीद हो गए। गुरु अर्जुन देव जी सिख धर्म के पहले शहीद थे। जिस स्थान पर गुरु अर्जुन देव जी का शरीर रावी नदी में विलुप्त हुआ था, वहां गुरुद्वारा डेरा साहिब (जो अब पाकिस्तान में है) का निर्माण किया गया है। श्री गुरु अर्जुन देव जी को उनकी विनम्रता के लिए याद किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में किसी को दुर्वचन नहीं कहा। गुरुजी ने प्रत्येक कष्ट को विनम्रता से झेलते हुए अरदास की-
तेरा कीआ मीठा लागे॥ हरि नामु पदारथ नानक मांगे॥
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