Swami Ji Maharaj dadaji maharaj

राधास्वामी गुरु दादाजी महाराज के अनमोल बचन -14: गुरु से ऐसे चिपट जाइए जैसे शहद के ऊपर मक्खी

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राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radhasoami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur foemer Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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पहले सरन लेनी होगी तब करनी होगी, और थोड़ी सी प्रीत और प्रतीत भाव आए तो काम बनेगा। नीरस अभ्यास अच्छा नहीं लगता क्योंकि यह जितने योगी योगेश्वर थे सब नीरस थे और इसीलिए वह माया के हाथ से धोखा खा गए। यहां पर सरस भक्ति बताई जाती है यानी प्रीत और प्रतीत यहां अपने गुरु से, राधास्वामी दयाल से, राधास्वामी दयाल के साथ प्रीत और प्रतीत कैसे दृढ़ होगी जब तक कि अपने गुरु से प्रीत और प्रतीत नहीं बढ़ेगी। क्योंकि वह प्रीत और प्रतीत ख्याली है और यह व्यावहारिक है. यहां पर व्यावहारिकता पर ज्यादा जोर दिया गया है। प्रैक्टिकल मत है, क्या करना है, कहीं ना कहीं तो दृढ़ विश्वास रखना है, वो यह है कि कुल मालिक राधास्वामी दयाल हैं और उनका नाम राधास्वामी सच्चा ध्वन्यात्मक नाम है। इन चीजों पर पूरा विश्वास दृढ़ता के साथ होना चाहिए, और वह कुल मालिक हैं, उनके धाम में हमको जाना है और बीच में कहीं नहीं रुकना, और उसके लिए हम को किसी न किसी अभ्यासी गुरु की अत्यंत आवश्यकता है। इसलिए ढूंढिए, खोजिए और जब मिल जाएं तो ऐसे चिपट जाइए जैसे शहद के ऊपर मक्खी से चिपटती है, बस फिर एक- दो- तीन और मालिक के धाम में चौथा। एक-दो-तीन करते रहिएगा और चौथे में मालिक के धाम में पहुंचा दिया जाएगा।

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राधास्वामी मत में किसी प्रकार के ढोंग को नहीं माना गया है। हम लोग सिर्फ एक बात देखते हैं कि उसको हमारे प्रीतम से कितनी प्रीत है। जो राधास्वामी दयाल के चरनों में प्रीत और प्रतीत रखता है वह हमारा संबंधी है, जो हजूर महाराज के चरणों में प्रीत और प्रतीत रखता है वह हमारा नजदीकी, जो हमारे गुरु से प्रीत करता है वह हमारा अपना भाई, अपना खास है, खासमखास है।

जो मेरे प्रीतम से प्रीत करे मोहिं प्यारा लागे रे

मैं किसी तरह से किसी किस्म की जात-पांत में विश्वास नहीं करता। मैं सिर्फ एक रिश्ते को मानता हूं प्यार के रिश्ते को और एक रिश्ता उससे भी महत्वपूर्ण है और वह है हजूर महाराज से रिश्ता, राधास्वामी दयाल से रिश्ता। जो अपना उद्धार करना चाहे उससे रिश्ता, चाहे वह किसी जाति का हो, हिन्दू हो, मुसलमान हो, ब्राह्मण हो, कोई भी हो, उनका सबका स्वागत है और सबको सत्संग में बराबरी का दर्जा है। लेकिन यहां पर यह जरूर देखा जाता है कि कितना आपका परमार्थ में लगाव है। जिनको परमार्थ में लगाव ज्यादा है वह ज्यादा नजदीक है, जिनका कम है वह थोड़ा दूर, जिनका बिल्कुल नहीं है कभी-कभार आकर बैठ गए तो बहुत दूर हैं लेकिन क्योंकि राधास्वामी नाम लेते हैं इसलिए कशिश तो उनको भी है, एक दिन वह भी तरेंगे और जो नातेदार और रिश्तेदार भी आकर सत्संग में बैठे हैं और जिनसे रिश्ता हुआ है, तो एक न एक दिन उनका भी उद्धार होगा, क्यों नहीं होगा। कहा है कि एक लड़की जो है वह अष्ट कुल का उद्धार करती है, चाहे वो लड़की कम आए लेकिन अपने परिवार में सबको मालिक के हवाले करती है। हालांकि आलोचना बहुत हुई है, बहुत आलोचना सही है लेकिन जब दुनिया परवाह नहीं करती तो हमको क्या परवाह है। आओ तो स्वागत है, नहीं आओ तो कोई रंजिश नहीं है, कोई दुराभाव नहीं है। हम तो सबके लिए सद्भाव रखते हैं। प्यार असीमित है। प्यार की कोई सीमा नहीं होती इसलिए अपनाना है और अगर कोई गलती करता है तो उसको एकांत में समझाना भी मुनासिब है लेकिन किसी का फसाना बनाना, उल्टी-सीधी बातें करना, गलत धारणाएं बनाना, चर्चाएं करना, यह सतसंगियों को शोभा नहीं देता।

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राधास्वामी दयाल ने अपना सत्संग सबके लिए खोला हुआ है। यहां किसी की जात-पांत नहीं देखी जाती है। इसलिए हर एक को सूचित किया जाता है कि जो कोई अपने जीव का सच्चा कल्याण चाहे, जो अपनी मुक्ति चाहे और इसी जन्म उद्धार चाहे, उद्धार के रास्ते पर चले तो एक- दो-तीन या चार जन्म में उसका उद्धार पूरा होने की गारंटी भी यहां दी जाती है। वह राधास्वामी मत में शौक से शामिल हो सकता है। यहां परहेज है तो खानपान का है, गोश्त, शराब, अंडा और मछली, जिस किसी भी जीव को सता कर आप खाते हैं आपको उसको खाने का कोई हक नहीं है।