-पत्रकार डॉ. भानु प्रताप सिंह ने कहा- अकबर से पहले की है सीकरी, आगे खोज की जरूरत
Agra, Utatr pardesh, India. 1947 से सेवा में समर्पित रोटरी क्लब, ग्वालियर की वर्चुअली हुई साप्ताहिक सभा में ‘फतेहपुर सीकरी का रहस्य’ उजागर हुआ। आगरा के वरिष्ठ पत्रकार- संपादक, लेखक डॉ. भानु प्रताप सिंह ने अतिथि वक्ता के रूप में फतेहपुर सीकरी के बारे में रोचक जानकारी दी। उन्होंने हाल ही में निखिल पब्लिशर्स द्वारा प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘क्या है फतेहपुर सीकरी का रहस्य’ का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि फतेहपुर सीकरी तो अकबर से 500 साल पहले विकसित नगरी थी। 1010 ईसवी का शिलालेख मिलने से यह बात प्रमाणित हो गई है कि फतेहपुर सीकरी एक हजार साल पहले जैन धर्म का प्रमुख केन्द्र थी। उन्होंने ताजमहल में भी उत्खनन की मांग उठाई।
उत्खनन में मिली जैन मूर्तियां
डॉ. भानु प्रताप सिंह ने बताया कि 1999-2000 के बीच ‘अमर उजाला’ आगरा संस्करण में रिपोर्टर के रूप में फतेहपुर सीकरी पर काम शुरू किया। जो दिखाई दिया, उसका प्रकाशन किया गया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) आगरा मंडल के तत्कालीन अधीक्षण पुरातत्वविद डॉ. धर्मवीर शर्मा के साथ खोजबीन में यह पाया गया कि फतेहपुर सीकरी मुगल सम्राट अकबर से पहले समृद्ध नगरी थी। फिर बीर छबीली टीला पर हुए उत्खनन में खंडित जैन मूर्तियां मिलीं। 1010 ईसवी में स्थापित जैन सरस्वती की आदमकद प्रतिमा मिली, जो सदी की सबसे बड़ी खोज के रूप में प्रचारित की गई। जैन प्रतिमाओं को स्थापित करने के बारे में शिलालेख मिला। महाभारत काल में फतेहपुर सीकरी का उल्लेख सैकरिक्य के रूप में है, जिसका अर्थ है पानी से घिरा हुआ क्षेत्र। वास्तव में फतेहपुर सीकरी झील के किनारे बसी हुई थी, जिसका उल्लेख बाबर ने भी किया है।
एएमयू ने छिपाया उत्खनन का परिणाम
डॉ. भानु प्रताप सिंह ने बताया कि पुरातात्विक खेजों से यह स्पष्ट हो गया है कि फतेहपुर सीकरी में अनेक भवन अकबर से पहले के बने हुए हैं। अकबर ने अपनी सुविधानुसार इन्हें परिवर्तित किया। 1527 में राणा सांगा और बाबर के बीच हुए खानवा युद्ध के दौरान भी फतेहपुर सीकरी का उल्लेख मिलता है। 1983 में एएसआई और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) द्वारा किए गए उत्खनन में भी जैन मूर्तिया मिली थीं, लेकिन इसका उल्लेख लिखित रूप से नहीं किया गया। ये मूर्तियां सीकरी के स्टोर में पड़ी मिलीं तो रहस्य खुला। इस पर समग्र रूप से खोज की जरूरत है। सीकरी पर खोज के लिए भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर) को प्रस्ताव भेजा गया था, जो निरस्त कर दिया गया। इसका कारण यह है कि नई खोज से फतेहपुर सीकरी का इतिहास बदल जाता।
गलत इतिहास पढ़ाया जा रहा
एएसआई से अवकाश प्राप्त अधिकारी और सीकरी में उत्खनन कराने वाले डॉ. डीवी शर्मा ने कहा कि फतेहपुर सीकरी के बारे में वरिष्ठ पत्रकार डॉ. भानु प्रताप सिंह ने बहुत काम किया है। एएसआई ने जो उत्खनन कराया है, उससे स्थिति साफ हो गई है कि हमें गलत इतिहास पढ़ाया जा रहा है। उन्होंने अपनी पुस्तक में उत्खनन के बारे में विस्तार से लिखा है। कथित कुतुबमीनार आदि के संबंध में उन्होंने श्रोताओं की शंकाओं का समाधान भी किया। मांग रखी कि सीकरी पर खोज के लिए आर्थिक सहायता दी जाए। कार्यक्रम में आगरा के इतिहासकार राजकिशोर राजे भी जुड़े, लेकिन तकनीकी कारण से उनकी आवाज नहीं सुनी जा सकी।
सीकरी पर शोध के लिए मदद का आश्वासन
सभा का संचालन करते हुए रोटरी क्लब ग्वालियर के अध्यक्ष अरविन्द दूदावत ने कहा कि पहली बार फतेहपुर सीकरी के बारे में नई जानकारी मिली है। उन्होंने फतेहपुर सीकरी पर आगे कार्य जारी रखने के लिए मदद का भी आश्वासन दिया। क्लब के सचिव राममोहन त्रिपाठी ने अतिथि वक्ता डॉ. भानु प्रताप सिंह का परिचय कराया। पीडीजी रोटे. राधेश्याम राठी व क्लब एजी पारसमल पारख ने डॉ. भानु प्रताप सिंह को सम्मान पत्र भेंट किया। साप्ताहिक सभा का शुभारंभ प्रेरणा चतुर्वेदी ने दीप प्रज्ज्वलन कर किया
ताजमहल के कई कक्ष बंद
निवर्तमान अध्यक्ष मनीष चतुर्वेदी ने आभार जताते हुए ताजमहल के संबंध में पूछा कि क्या यह शिव मंदिर है। इस पर डीवी शर्मा ने कहा कि इस पऱ शोध की जरूरत है। डॉ. भानु प्रताप सिंह ने कहा कि ताजमहल के कक्षों में रहस्य बंद हैं। इन कक्षों को खोल दिया जाए तो ताजमहल का रहस्य भी सबके सामने आ जाएगा। इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है। उन्होंने सवाल किया – आखिर ताजमहल में उत्खनन क्यों नहीं किया जाता है? सभा में पीडीजी वीके गंगवाल, विनोद भाटिया, पारसमल, भूपेन्द्र जैन, राजेन्द्र अग्रवाल, आरएस राठी, बालकृष्ण, अश्वनी बंसल, मनोज नागोरी, भूमि पटेल, विकास पुरोहित, आगरा के प्रसिद्ध साहित्यकार संजय गुप्त, आगरा के डॉ. रामेश्वर चौधरी, क्लब रोटेरियन व रोट्रेक्टर उपस्थित रहे।
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