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राधास्वामी गुरु दादाजी महाराज के अनमोल बचन -65: सुरत की शक्ति धारण करने वाले ये भी कर सकते हैं

PRESS RELEASE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radha Soami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur former Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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सुरत का प्रेम तो विशिष्ट है जो सिर्फ उनसे हो सकता है जिनका शब्द खुला हुआ है लेकिन सुरत और मन के मेल से भी प्रेम हो सकता है, वह किया जा सकता है। जो प्रयास कर रहे हैं वह भी सब भाई -भाई हो सकते हैं, बहन-भाई हो सकते हैं। जरा अपने अंतर में उन कमजोरियों को दूर करने की कोशिश कीजिए। बाहर का दिखावा मालिक नहीं चाहता। जो सुरतवंत होता है उसके अंदर सुरत की शक्ति होती है, जिसके अंदर शब्द की शक्ति होती है उसका मन उस पर सवार नहीं हो सकता। बुद्धि-विवेक दिखाने के लिए बहुत से प्लेटफार्म है, वहां पर दिखाई भी जाती है लेकिन सत्संग में झुक कर चलना है। प्रीत-प्रतीत कुल मालिक राधास्वामी दयाल के चरनों में इतनी गहरी और मजबूत करनी चाहिए कि हम निंदकों से भी बचें, कपटियों से भी बचें। बहुत बचाव करना है और यह आसान नहीं है-

बहुत कठिन है डगर पनघट की

लेकिन देखो जब कोई होशियार संगी यानी सच्चे गुरु मिल जाते हैं तो कठिन से कठिन डगर को सहज और सरल बना देते हैं। तो घबराइए नहीं। वह सब दया और मेहर करेंगे। सबके कसूरों को माफ करेंगे लेकिन उनको ऊपर के तौर पर नहीं बल्कि अंतर से अंतर के तौर पर मानना होगा। जो यह कर लेगा उसका जन्म सफल हो जाएगा।

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एक चीज हर जगह घुसी है और वह है कपट। बाहर से कुछ और अंदर से कुछ और। बड़ी मुश्किल है एक खोजी के लिए, एक दर्दी के लिए सच और झूठ को पहचानना और फिर झूठ को छोड़कर सच का साथ करना। यह इतना आसान नहीं है। इसके लिए उन्होंने कह दिया कि यह मेहर और दया उस पर होगी जो सच्चा खोजी है, जिसका सच्चा इरादा अपना उद्धार कराने का है, जो दुनिया से आजिज है, जो यहां के सुख को भी दुख रूप देखता है, उसको जरूर मालिक प्रेरणा भी देते हैं, ठीक जगह पर भी पहुंचा देते हैं। इसके लिए अपने व्यवहार में शालीनता, सद्व्यवहार लाना चाहिए, यह पहली बात है। दूसरी बात यह है कि जब उन्होंने कहा कि सुमिरन, ध्यान और भजन करना होगा तो हमें करना चाहिए। अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण भी रखना पड़ेगा। तीसरी बात, जो काग है वह हंस नहीं हो सकता। कहने का मतलब यह है कि हर तरह के जीव जो सच्चे उद्धार के गाहक हैं, वह चाहे किसी भी जाति के हों. किसी भी वर्ण के हों, उन सबके लिए सत्संग का घाट बनाया गया है। घाट का मतलब क्या है- जहां मैले कपड़े साफ होते हैं, कर्म साफ होते हैं, स्वच्छ किया जाता है। सत्संग में आपको शुद्ध किया जाता है, उससे भी आपको पवित्र किया जाता है। आपको परमार्थी बनाया जाता है।