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रविवार, 21 जून 2020 को लगेगा सूर्य ग्रहण , जानिए किस राशि वालों को रहना होगा सावधान

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रविवार, 21 जून को सूर्य ग्रहण सुबह 10 बजकर 13 मिनट से दोपहर 1 बजकर 49 मिनट तक रहेगा।सूर्य  ग्रहण लगने से 12 घंटे पहले सूतक लग जाता है। ऐसे में सूतक का समय 20 जून की रात 10 बजकर मिनट से शुरू हो जाएगा और ग्रहण की सामाप्ति पर खत्म होगा

इस बार सूर्य ग्रहण 2 नक्षत्रो में लगेगा। प्रारम्भ मृगशिरा नक्षत्र से और अंत आद्रा नक्षत्र में होगा। दोनो नक्षत्र स्वामी क्रमशः मंगल और राहु है दोनों क्रूर संज्ञक नक्षत्र होने के नाते पूरे विश्व मे हलचल मचाएंगे।

मेष, सिंह, कन्या और मकर राशि वालों पर ग्रहण अशुभ प्रभाव नहीं रहेगा। जबकि वृष, मिथुन, कर्क, तुला, वृश्चिक, धनु, कुंभ और मीन राशि वाले लोगों को सावधान रहना होगा। इसमें मिथुन राशि वालों को विशेष ध्यान रखना होगा। कंकण आकृति ग्रहण होने के साथ ही यह ग्रहण रविवार को होने से और भी प्रभावी हो गया है। इस सूर्य ग्रहण के दौरान स्नान, दान और मंत्र जाप करना विशेष फलदायी रहेगा।

ग्रहण में क्या करें, क्या न करें :-

सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर (12 घंटे) पूर्व भोजन कर ले। बूढ़े, बालक, रोगी और गर्भवती महिलाएँ डेढ़ प्रहर ( साढ़े चार घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं ।

ग्रहण के कुप्रभाव से खाने-पीने की वस्तुएँ दूषित न हों इसलिए सभी खाद्य पदार्थों एवं पीने के जल में तुलसी का पत्ता अथवा कुश डाल दें।

ग्रहण के बाद नया भोजन बना लेना चाहिए । सम्भव हो तो ग्रहण के पश्चात् घर में रखा सारा पानी बदल दें ग्रहण के समय पहने हुए एवं स्पर्श किए गए वस्त्र आदि अशुद्ध माने जाते हैं । अतः ग्रहण पूरा होते ही पहने हुए कपड़ों सहित स्नान कर लेना चाहिए।

ग्रहण से 30 मिनट पूर्व गंगाजल छिड़क के शुद्धिकरण कर लें।

ग्रहणकाल प्रारम्भ होने के पूर्व घर के ईशान कोण में गाय के घी का चार बातीवाला दीपक प्रज्वलित करें एवं घर के हर कमरे में कपूर का धूप कर दें।

ग्रहण के दौरान हँसी-मजाक, नाच-गाना, ठिठोली आदि न करें क्योंकि ग्रहणकाल उस देवता के लिए संकट का काल है, उस समय वह ग्रह पीड़ा में होते हैं । अतः उस समय भगवन्नाम-जप, कीर्तन, ओमकार का जप आदि करने से संबंधित ग्रहों एवं जातक दोनों के लिए हितावह है।

भगवान वेदव्यासजी ने परम हितकारी वचन कहे हैं “सामान्य दिन से चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (ध्यान, जप, दान आदि) एक लाख गुना और सूर्यग्रहण में दस लाख गुना फलदायी होता है । यदि गंगाजल पास में हो तो चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना और सूर्यग्रहण में दस करोड़ गुना फलदाई होता है।

ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम जप अवश्य करें, न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है। ग्रहणकाल में कुछ भी क्रिया न करते हुए केवल शांत चित्त से अपने गुरुमंत्र का जप करें एवं जिन्होंने गुरुमंत्र नहीं लिया है वे अपने इष्टदेव का मंत्र या भगवन्नाम का जप करें।

ग्रहण के स्पर्श के समय स्नान, मध्य के समय होम, देव पूजन तथा श्राद्ध तथा अंत में वस्त्रोंसहित स्नान करना चाहिए । स्त्रियाँ सिर धोये बिना भी स्नान कर सकती हैं।

ग्रहण वेध के प्रारम्भ में तिल या कुश मिश्रित जल का उपयोग भी अत्यावश्यक परिस्थिति में ही करना चाहिए।

ग्रहण के समय निद्रा लेने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है।बालक वृद्ध और रोगी को छूट है। गर्भवती महिला को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए।

ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरुरतमंदो को वस्त्र दान से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है।

ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोड़ने चाहिए । बाल तथा वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहिए व दंतधावन नहीं करना चाहिए । ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल-मूत्र का त्याग, मैथुन और भोजन ये सब कार्य वर्जित हैं।

ग्रहण के समय कोई भी शुभ या नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।

ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षों का किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है । (स्कंद पुराण)।

ग्रहण को देखने से आँखों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

ग्रहण के पश्चात् क्या करें ?

आसन, गोमुखी व मंदिर में बिछा हुआ कपड़ा भी धो दें । और दूषित ओरा के शुद्धिकरण हेतु गोमूत्र या गंगाजल का छिड़काव पूरे घर में कर सकें तो अच्छा है।

ग्रहण के बाद स्नान(गंगा स्नान उत्तम) करके खाद्य वस्तुओं में डाले गये कुश एवं तुलसी को निकाल देना चाहिए।

सूर्य या चन्द्र जिसका ग्रहण हो उसका शुद्ध बिम्ब देखकर भोजन करना चाहिए।

गर्भवती माताओं-बहनों के लिए ग्रहणकाल में विशेष ध्यान रखने योग्य आवश्यक बातें।👇🏻

गर्भिणी बालों पर लगी पिन या नकली गहने भी उतार दें ।

ग्रहणकाल में गले में तुलसी की माला या चोटी में कुश धारण कर लें।ग्रहण के समय गर्भवती चाकू, कैंची, पेन, पैन्सिल जैसी नुकीली चीजों का प्रयोग न करे क्योंकि इससे शिशु के होंठ कटने की सम्भावना होती है।

सूई का उपयोग अत्यंत हानिकारक है, इससे शिशु के हृदय में छिद्र हो जाता है । किसी भी लोहे की वस्तु, दरवाजे की कुंडी आदि को स्पर्श न करें, न खोले और न ही बंद करें । ग्रहणकाल में सिलाई, बुनाई, सब्जी काटना या घर से बाहर निकलना व यात्रा करना हानिकारक है।

ग्रहणकाल में पानी पीने से गर्भवती स्त्री के शरीर में पानी की कमी (डिहाइड्रेशन) हो जाती है, जिस कारण बालक की त्वचा सूख जाती है।

गर्भवती ग्रहणकाल में अपनी गोद में एक सूखा हुआ छोटा नारियल (श्रीफल) लेकर बैठे और ग्रहण पूर्ण होने पर उस नारियल को नदी अथवा अग्नि में समर्पित कर दे।

ग्रहण से पूर्व देशी गाय के गोबर व तुलसी-पत्तों का रस (रस न मिलने पर तुलसी-अर्क का उपयोग कर सकते हैं) का गोलाई से पेट पर लेप करें । देशी गाय का गोबर न उपलब्ध हो तो गेरूमिट्टी का लेप करें अथवा शुद्ध मिट्टी का ही लेप कर लें । इससे ग्रहणकाल के दुष्प्रभाव से गर्भ की रक्षा होती है।

ग्रहण काल में दान बहुत महत्व है,कोशिश करके दान अवश्य करे।

राशि अनुसार निम्न वस्तुओं का दान कर सकते है।

मेष और वृश्चिक -गुड़,और लाल मसूर  या सप्त धान्य (सात प्रकार के अनाज) का दान करें।

वृष और तुला-स्वेत वस्त्र एवं इसी रंग की मिठाई  दान करें।

मिथुन और कन्या-हरे रंग का कंबल, साबूत मूंग की दाल का दान करें।

कर्क – साबुत चावल दान करें।

सिंह – लाल मसूर गुड़ और ऊनी वस्त्र का दान करें।

धनु और मीन चने की दाल एवं पीले रंग का वस्त्र दान करें।

मकर और कुंभ – उड़द की दाल, काले रंग का कंबल,और सरसों का तेल दान करें।

(उपरोक्त वस्तुओं में जो आप दे सके उतना ही दान करे)

वरुण कुमार पालीवाल

ज्योतिषचार्य

9457667711