dadaji maharaj

जब हरियाणा के भोंडसी पहुंचे राधास्वामी मत के गुरु दादाजी महाराज, पढ़िए क्या हुआ

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हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) राधास्वामी मत का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत  (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य (Radhasoami guru Dadaji maharaj) और अधिष्ठाता दादाजी महाराज ( प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर हैं)  जो आगरा विश्वविद्यालय (Agra university Dr Bhimrov ambedkar university agra) के दो बार कुलपति (Vice chancellor of Agra university)  रहे हैं। हजूरी भवन ( Hazuri Bhawan, Peepal Mandi, Agra) में हर वक्त राधास्वामी  (Radha Soami)  नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत (RadhaSomai faith) के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 10 अप्रैल 2000 को सनात धर्मशाला परिसर, रजमन, अम्बाला छावनी (पंजाब, भारत) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज )Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने कहा – आप जिस तरह से अभी पाठ कर रहे थे उसमें प्रेम झलक रहा था और यह आभास करा रहा था कि आप की कुल मालिक राधास्वामी दयाल के चरनों में कितनी प्रीत लगी हुई है

अपना प्यार मिला कर मैं आपको देता हू

पंजाब और हरियाणा के दौरे में वहां के सतसंगियों ने मुझे जो ढेर सारा प्यार दिया उसे समेटकर और सहेज कर लाया हूं। उसमें अपना प्यार मिला कर मैं आपको देता हूँ। आप जिस तरह से अभी पाठ कर रहे थे उसमें प्रेम झलक रहा था और यह आभास करा रहा था कि आप की कुल मालिक राधास्वामी दयाल के चरनों में कितनी प्रीत लगी हुई है, आप कितना यकीन या भरोसा कुल मालिक राधास्वामी दयाल और संत सतगुरु का करते हैं।

मैं मर मर के तुझ पर जिया चाहता हू

यह शब्द जो आप पढ़ रहे थे उसे आज से कोई 14 साल पहले मैंने लखनऊ में बनाया था

पिया मैं तुझे बस तुझे चाहता हूँ,

रजा में मैं तेरी रहा चाहता हूँ।।

जियूं भी तो कैसे बता मुझको प्यारे ,

मैं मर मर के तुझ पर जिया चाहता हूँ।।

फिरा मारा मारा मैं दुनिया में अब तक,

पिया तेरे चरणों की छां चाहता हूँ।।

दरअसल उस समय मुझको अपने गुरु की बेहद याद सता रही थी क्योंकि बिना गुरु के इंसान बेसहारा होता है।

रिश्ता स्थाई नहीं होता

यह ख्याल कि दुनिया में जिस तरह माता-पिता, भाई-बहन, संतान और जितने रिश्तेदार हैं वह देखने में तो ठीक है लेकिन यह रिश्ता स्थाई नहीं होता। सब जानते हैं कि एक दिन यह रिश्ता टूटता है। यहां के लोग अपने स्वार्थ सिद्धि और मनोकामना को पूरा कराने के लिए एक सच्चे मालिक के बंदे का शोषण करते हैं। हर एक को उससे अपेक्षा होती हैंऔर वही व्यक्ति इन लोगों द्वारा सबसे ज्यादा उपेक्षित या तिरस्कृत होता है। उसमें सबसे बड़ी कमबख्त परिवार के मुखिया पर आई हुई है। ना सांस लेते बनता है, जीते बनता है और न मरते बनता है। हर घर में यही हो रहा है। यह किसी एक घर की बात नहीं है।

आधुनिकता कारण टूटन

कहने का मतलब यह है कि एक प्रेमी को, सच्चे सत्संगी और एक अभ्यासी को चैन से जीने नहीं दिया जाता और अनेक तरह की समस्याएं उसके सामने खड़ी कर दी जाती हैं। हर एक को अपना अपना दर्द प्यारा होता है। दूसरे के दर्द की चिंता नहीं होती। आज से साठ साल पहले ऐसी स्थिति नहीं थी। उस समय हर व्यक्ति परिवार के प्रति अपने दायित्व को समझता था लेकिन अधिकार नहीं मांगा करता था। परिवार में से कोई एक कमाता था और 10-12 पलते थे। आज यह टूटन आ गई है और इसका कारण आधुनिकता है।

सामाजिक दुर्दशा

जितना-जितना विज्ञान बढ़ता जा रहा है और सुख-सुविधा बढ़ती जा रही है उतनी ही मानसिक अशांति हो गई है। इंसान थोड़े में संतुष्ट है और न बहुत में। अगर बहुत सा दे दो तो और अधिक चाहता है। अगर नहीं है तो मर जाता है। ना खुद जीना चाहता है और न दूसरे को जीने देना चाहता है। इसी का नाम सामाजिक दुर्दशा है और आज भारतवर्ष का समाज इस दुर्दशा का शिकार हो रहा है