हजूरी भवन, पीपलमंडी, आगरा राधास्वामी मत का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं, जो आगरा विश्वविद्यालय के दो बार कुलपति रहे हैं। हजूरी भवन में हर वक्त राधास्वामी नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। 26 सितम्बर 1999 को हरियाणा भवन, विवेकानंद रोड, सेन्ट्रल कोलकाता (पश्चिम बंगाल) में हुआ सतसंग आज भी याद किया जाता है। 21 साल पहले दादाजी महाराज ने गुरु की महिमा के बारे में जानकारी दी।
राधास्वामी मत गुरमत है और गुरु सारी रचना का आदि कर्ता है, वही राधास्वामी है, मालिक हैं और मालिक जब सतगुरु रूप धारण करता है तब वह जीवों का उद्धार करता है यानी ऐसे देह स्वरूप गुरु में मालिक की निज अंश, निज धार विराजमान होती है। इस देह में शब्द गाज़ता है और वह जब चाहे तब अपने देश में जा सकते हैं, उनका संपर्क सत्पुरुष से बना रहता है। वह मालिक के निजी पुत्र या निज प्रतिनिधि के रूप में सत्संग खड़ा करते हैं, उपदेश देते हैं, बचन फरमाते हैं, संशय और भ्रम दूर करते हैं, प्रीत- प्रतीत बढ़ाते हैं, दया दृष्टि डालते हैं और प्रेम की दात लुटाते हैं । ऐसा उद्धारकर्ता देव स्वरूप गुरु एक ही होता है, जिसे संत सतगुरु कहते हैं। वह माया रूपी अंधकार में चेतन रूपी प्रकाश करते हैं।
हजूर महाराज ने फरमाया है कि गुरु है जो अंधेरे में प्रकाश करता है और सुरत चेतन को मालिक की चरण आधार से जो शब्द की धार है, मिलाता है और सुरत शब्द योग के द्वारा स्थान-स्थान की धुन सुनाकर सत्तलोक और राधास्वामी धाम में पहुंचाता है। ऐसा गुरु दुर्लभ है और जिसे भाग से मिल जाए वही महा बड़भागी है और उसी का कारज एक दिन पूरा होगा। जिसको अपना उद्धार मंजूर हो तो ऐसे पूरे गुरु की खोज करनी चाहिए और जब मिल जाए तो तन, मन, धन वार देना चाहिए। जब मालिक स्वयं गुरु बनकर आवे तो उसके साथ प्रेम करना आवश्यक है। यदि आप थोड़ी सी आस्था, थोड़ी प्रतीत के साथ उनका थोड़ा सत्संग करके आकर्षित होते हैं तो आप फिर जमकर सत्संग किए जाइए और जो वह बता वे उस पर अमल करिए। प्रेम में कुछ सेवा तन, मन, धन की तो वह निष्फल नहीं जाएगी।
राधास्वामी मत के सभी अनुयायियों को मैं यह बताना चाहता हूं कि अगर बिना सोचे समझे, बिना संतों के दर्शन किए केवल टेक बांध ली है तो वह टेक सही और दुरुस्त नहीं है क्योंकि आंतरिक अनुभव महत्वपूर्ण है। देखिए, जब तक आंतरिक अनुभव नहीं होगा तब तक जो कुछ आप मानते हैं वह ठहराऊ नहीं रह सकता। जब आप पूरे गुरु के संग में बैठेंगे, उनके भजन सुनेंगे और उनके दर्शन करेंगे तो आपको आकर्षण पैदा होगा, आपकी जिज्ञासा बढ़ेगी, आपके प्रश्न बिना पूछे हल होंगे और आपसे आप प्रतीत आएगी और अनुभव जागेगा। इस संसार में सिर्फ अग्नि ज्वाला है, अगर कहीं शीतलता है तो वह गुरु के चरणों में है। इसलिए आज का तकाजा यही है कि बहुत जल्दी गुरु के चरण पकड़ लो, पार हो जाओगे।
(अमृत बचन राधास्वामी तीसरा भाग से साभार)
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