राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य और अधिष्ठाता दादाजी महाराज ने कहा – एक सच्चे भक्त को गुरु के प्रति किसी भी प्रकार की शंका किसी मामले में नहीं लानी चाहिए।
हजूरी भवन, पीपलमंडी, आगरा राधास्वामी मत (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं, जो आगरा विश्वविद्यालय ) Agra University)के दो बार कुलपति रहे हैं। हजूरी भवन (Hazuri Bhawan) में हर वक्त राधास्वामी नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 24 अक्टूबर, 1999 को दादाजी महाराज भवन परिसर, सेन्ट एंसल्स स्कूल के पास, सुभाषनगर, भीलवाड़ा (राजस्थान) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज (Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने बताया कि जब आप देखते हैं कि चार प्रेमी मिलकर पाठ करते हैं तो उसकी रंगत बदल जाती है। जहां गुरु या संत सतगुरु बैठे हों, तो उसमें उसका कितना प्रभाव बदल जाता होगा।
देखने में आता है कि सतसंग में आ जाते हैं, राधास्वामी मत को भी मानने लगते हैं लेकिन मन उछाल लेता है और तरह-तरह के शक-शुबहे पैदा होने लगते हैं दुनिया के बावत, मन के बावत और यहां तक कि गुरु के बावत। एक सच्चे भक्त को किसी भी प्रकार की शंका किसी मामले में नहीं लानी चाहिए। यह समझना चाहिए कि कोई काम वह जो कर रहे हैं, जो तुम्हारी बुद्धि में उल्टा भी नजर आवे, उसमें भी मालिक की कुछ मौज होगी।
ऐसा नहीं होता कि वह मौज पता न चले। हो सकता है कि कुछ समय बाद पता चले। लेकिन इस बीच में यदि तुम संकल्प विकल्प में घूम गए और शक-शुबहों के चक्कर में पड़ गए या संतों की निंदा करने लगे तो जानना चाहिए कि चाहे रिश्त में आप कितने ही नजदीक क्यों न हों उनके, संतों की निंदा करने से सुरत का घाटा और नीचे चले जाता है। इसलिए सोच समझकर जैसे कि स्वामीजी महाराज और हजूर महाराज के साथ व्यवहार किया जाता है, वैसा ही व्यवहार उनकी गद्दी पर बैठे हुए, जो गद्दीनशीन हैं, जिसमें आकर वह समाये हुए हैं, करना होगा।
तुम्हारी प्रीत और प्रतीत स्वामीजी महाराज और हजूर महाराज के चरनों में बँधवाने वाले तुम्हारे वक्त के गुरु हो सकते हैं। इसलिए राधास्वामी मत गुरु मत है। अगर कोई यह चाहे कि वह ग्रंथों से मत को समझ ले तो इसका खंडन स्वामीजी महाराज ने भी किया है और हजूर महाराज ने भी। तमाम वेदशास्त्र और जितनी भी आसमानी किताबें हैं, सबको क्यों नीचे ठहराया है, क्योंकि उन्होंने कहा है कि वह ज्ञान जो कुछ इसमें दिया हुआ है, वह अनुभवी के संग से प्राप्त होगा।
इसी प्रकार से जब हम पोथी का पाठ करते हैं तो पोथी का पाठ ऐसा पाठ नहीं है कि रामायाण का गीता का पाठ किया जाता है। इसमें अंतर का भेद और अनुभवी ज्ञान है और उस अनुभवी ज्ञान की प्राप्ति अनुभवी के संग से होगी। इसलिए जब आप देखते हैं कि चार प्रेमी मिलकर पाठ करते हैं तो उसकी रंगत बदल जाती है। जहां गुरु या संत सतगुरु बैठे हों, तो उसमें उसका कितना प्रभाव बदल जाता होगा। (क्रमशः)
(अमृत बचन राधास्वामी तीसरा भाग आध्यात्मिक परिभ्रमण विशेषांक से साभार)
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