जरा ज़ुल्फें हटाओ चाँद का दीदार मैं कर लूँ !
वस्ल की रात है तुमसे जरा सा प्यार मैं कर लूँ !!
बड़ी शोखी लिए बैठा हूँ यूँ तो अपने दामन में !
इजाजत हो अगर तो इनको हदके पार मैं करलूँ!!
मुआलिज है तू दर्दे दिल का ये अग़यार कहते हैं!
हरीमे यार में खुद को जरा बीमार मैं कर लूँ !!
यूँ ही बैठे रहें इकदूजे के आगोश में शबभर !
जमाना देख ना पाये कोई दीवार मैं कर लूँ !!
तुझे लेकर के बाहों में लब-ए-शीरीं को मैं चूमूँ !
कि होके बेगरज़ ये इक नहीं सौ बार मैं कर लूँ!!
दानिस्ता दिल जला के यूँ तेरा पर्दानशीं होना !
है तीर-ए-नीमकश इसको जिगर के पार मैं कर लूँ !!
रक्षिता सिंह (दीपू), उझानी, बदायूं
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