डूबे इस कदर शवाब ए इश्क में सुबह होने का गुमान न था
वक्त को समेटना इतना आसां न था, फारिग होने की फुर्सत ही न थी। डूबे इस कदर शबाब ए इश्क में सुबह होने का गुमान न था। गमों की यारी खुशियों की अदावत अदला-बदली का गर हुनर पास होता। क़जा बेशक है तू मगर ज़िक्र ए जिंदगी में क़ायम है इबादत की जगह। सदियों की […]
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