rakshita singh

मजहब है मुख़्तलिफ ये बता कर चले गये..

रोते रहे खुद, मुझको हँसा कर चले गये- काफ़िर से अपना दिल वो लगाकर चले गये। पूछा जो उनसे घर का पता मैंने दोस्तो- हौश अपना कूं-ए-यार बता कर चले गये। तारीक में वो शम्मा जला कर चले गये- मैं रूठी और वो मुझको मना कर चले गये। ग़ाफ़िल थी जिनके इश्क को लेकर मैं […]

Continue Reading
rakshita singh

जीवित हो गयीं हूँ मैं, तुम्हारे स्पर्श से…

मैं संग चल दी उनके, मेरा मन यहीं रह गया… उन्होंने दिखाये होंगे हजारों ख्वाब, पर इन आँखों में रौशनी कहाँ थी !! कितने ही गीत सुनाये होंगे उन्होंने, पर इन कानों के पट तो बंद हो चुके थे !! उनके सवालों का, जवाब भी ना दे पायी थी मैं…. क्योंकि इन होठों पे, तुम्हारा […]

Continue Reading
rakshita singh

रक्षिता सिंह की इस कविता का आनंद अंत में आएगा, दिमाग चकरा जाएगा

इक आवारा तितली सी मैं उड़ती फिरती थी सड़कों पे… दौड़ा करती थी राहों पे इक चंचल हिरनी के जैसे … इक कदम यहाँ इक कदम वहाँ बेपरवाह घूमा करती थी… कर उछल कूद ऊँचे वृक्षों के पत्ते चूमा करती थी… चलते चलते यूँ ही लब पर जो गीत मधुर आ जाता था… बदरंग हवाओं […]

Continue Reading
rakshita singh ghazal

इश्क का समंदर है रक्षिता सिंह की ये गजल, आप भी गुनगुनाइए

जरा ज़ुल्फें हटाओ चाँद का दीदार मैं कर लूँ ! वस्ल की रात है तुमसे जरा सा प्यार मैं कर लूँ !! बड़ी शोखी लिए बैठा हूँ यूँ तो अपने दामन में ! इजाजत हो अगर तो इनको हदके पार मैं करलूँ!! मुआलिज है तू दर्दे दिल का ये अग़यार कहते हैं! हरीमे यार में […]

Continue Reading