–राधास्वामी मत के गुरु दादाजी महाराज की पुस्तक ‘मेरे विचार खंड-2’ का लोकार्पण
-मेरे विचार प्रथम खंड की तरह दिव्तीय खंड में भी विविधता में एकता समाहितः संपादक मंडल
Agra, Uttar Pradesh, India. जाने-माने धर्मगुरु, आध्यात्मिक चेतना के प्रतीक, समाजसुधारक, राधास्वामी मत के अधिष्ठाता और आगरा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर (दादाजी महाराज) की नई पुस्तक ‘मेरे विचार खंड-2’ को लोकार्पण हुजूर भवन, पीपल मंडी, आगरा में किया गया। दादाजी महाराज ने पुस्तक लोकार्पित करते हुए कहा- यदि एक बंद कक्ष में बैठकर विचार प्रस्तुत किए जाएं तो भी उनका दूरगामी परिणाम होता है क्योंकि उनकी झंकृत धुन सम्पूर्ण वायुमंडल में प्रसारित हो जाती है।

इस मौके पर पुस्तक के संपादक मंडल के सदस्य डॉ. आरपी वर्मा (प्रधान संपादक) डॉ. सरन प्रसाद माथुर, डॉ. अतुल माथुर, इं. सुमिर माथुर और एडवोकेट ब्रजेन्द्र सिंह ने कहा कि मेरे विचार खंड-2 पुस्तक जानकारी का खजाना है। है। पुस्तक में राधास्वामी मत, सतसंगियों से अपेक्षाओं के साथ इतिहास के आध्यात्मिक और भौतिक पक्ष, पर्यटन विकास, विश्वदाय स्मारक, उत्खनन, राष्ट्रीय सेवा योजना, राष्ट्रीय कैडिट कोर, मानवाधिकार, शिक्षा, शिक्षार्थी एवं शिक्षक, भारतीय अर्थव्यवस्था, क्प्यूटर शिक्षा का महत्व, परमाणु परीक्षण एवं विश्व शांति, न्यायिक सक्रियता, वृद्धजनों की समस्याएं और निराकरण जैसे विषयों आलेख हैं। 10-15 साल पूर्व व्यक्त विचार आज भी प्रासंगिक हैं। मेरे विचार प्रथम खंड की तरह ही दिव्तीय खंड भी विविधता में एकता को समाहित किए हुए है।
डॉ. सरन प्रसाद माथुर ने बताया कि 27 जुलाई, 1930 को जन्मे प्रो. अगम प्रसाद माथुर राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य हैं। उनके देश-विदेश में करोड़ों अनुयायी हैं। उन्हें मध्यकालीन भक्ति परंपराओं का अद्भुत ज्ञान है। वे आगरा विवि के दो बार कुलपति रहे हैं, जो रिकॉर्ड है। गद्य और पद्य में उनकी रचनाओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि मिली है। प्रो. माथुर दर्जनों पुस्तकें लिख चुके हैं। वास्तव में वे धर्म, दर्शन, अध्यात्म, समाज और संस्कृति के पोषक और सुधारक हैं। वे भारतीय संस्कृति के संवाहक हैं। यही कारण है कि राधास्वामी मत का आदि केन्द्र हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा पिछले 150 वर्षों से श्रद्धा, भक्ति और सेवा का अपूर्व संगम बना हुआ है।
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