Dadaji maharaj

राधास्वामी मत के गुरु दादाजी से सुनिए हजूर महाराज की Philosophy of love

NATIONAL REGIONAL RELIGION/ CULTURE

हूजरी भवन, पीपल मंडी, आगरा राधास्वामी (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं जो आगरा विश्वविद्यालय (Agra university) के दो बार कुलपति (Vice chancellor of Agra university)  रहे हैं। हजूरी भवन (Hazuri Bhawan, Peepal Mandi, Agra) में हर वक्त राधास्वामी (Radha Soami)  नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत (RadhaSomai faith) के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 27 मार्च, 2000 को दादाजी महाराज सारस मोटल परिसर, रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज (Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने कहा- कुल मालिक के प्रति निर्मल एवं पवित्र प्रेम दीनता व नम्रता लाता है तथा सारी मानवता के लिए लाभकारी होता है।

वह प्रेम नहीं हो सकता

आधुनिक युग में परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज राधास्वामी दयाल ने जीवन का नवीनतम एवं अनोखा दर्शन दिया है, जिसको प्रेम दर्शन (फिलॉसफी ऑफ लव) कहते हैं। प्रेम, प्रेम सब कहते आए हैं, सभी ने प्रेम की महिमा की है और विभिन्न रूपों में इस प्रेम को दर्शाया गया है। वास्तविक तौर पर प्रेम क्या है, ऐसी अकाट्य परिभाषा कोई नहीं दे पाया है। साहित्यकारों और कवियों की परिभाषाओं में मतभेद रहे। किसी-किसी ने तो प्रेम को इतना मलीन दर्जे का कर दिया कि उसको काम वासना से जोड़ दिया। जिस प्रेम में मलीनता और कामुकता हो, वह प्रेम नहीं हो सकता।

निर्मल प्यार की महिमा

हजूर महाराज फरमाते हैं कि प्रेम कुल मालिक को प्राप्त करने का एकनिष्ठ, तीव्र और दृढ़ चाह है। ऐसी चाह सारी सांसारिक इच्छाओं से बढ़कर या भारी होनी चाहिए। इस तरह की चाह ही भाग्यशाली व्यक्ति को धीरे-धीरे ऊंचे से ऊंचे धाम में ले जाती है। बिना कुल मालिक के प्रति प्रेम के सब ज्ञान थोथा और असत्य है तथा अंधकार अथवा भौतिकता की ओर ले जाता है। प्रेम की पवित्र भावना सभी रुकाटवों या विघ्नों को दूर करती है और अंधविश्वासों और शक-शुबहों को समाप्त करती है। निर्मल प्यार दया का प्रकाश फैला देता है क्योंकि वह कुल मालिक से संबंध स्थापित करा देता है।

कुल मालिक के दरबार में प्रवेश प्राप्त करने का मार्ग

सत अनुराग यानी प्रेम दोतरफा या पारस्परिक होता है। इसीलिए कुलमालिक ऐसे भक्तों का विशेष ख्याल रखते है और उन्हें अपने आकर्षण के महानतम केन्द्र की ओर यानी अपनी ओर खींच लेते हैं। ऐसे लोग जिनके हृदय सांसारिक प्रेम की वासनाओं से भरे हैं, वे ऐसे केन्द्र से दूर हो जाते हैं और अंधकार व असत्य की ओर बढ़ने लगते हैं। स्वार्थी प्रेम अंहकार और अभिमान के बीज बोकर घृणा और ईर्ष्या को जन्म देता है। जबकि कुल मालिक के प्रति निर्मल एवं पवित्र प्रेम दीनता व नम्रता लाता है तथा सारी मानवता के लिए लाभकारी होता है। स्वार्थी प्रेम केवल भोग और विस्तार के लिए होता है। पवित्र प्रेम में कुल मालिक के ऊपर सर्वस्व न्योछावर करने की भावना रहती है, जिससे प्रेमी या भक्त कुल मालिक के दरबार में प्रवेश प्राप्त कर सकता है। (क्रमशः)