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राधास्वामी गुरु Dadaji Maharaj के अनमोल बचन -41: हजूर महाराज के दरबार में प्रेम ही प्रेम

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radha Soami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur former Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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हजूर महाराज के दरबार में प्रेम ही प्रेम है और कोई उससे बच नहीं सकता। जो आएगा वह रंगा जाएगा। कहा है कि रंग ही रंग बरसाओ। रंग से मतलब क्या है-  एक रंग वो जिससे आपको रंगा जाएगा और कौन सा रंग है- वो प्रेम का रंग है। उनका दिया हुआ प्रेम दीखता नहीं है, अंतर में सिर्फ अनुभव किया जा सकता है। मालिक को न तो आपकी करनी का बदला लेना है, न मालिक आपसे नाखुश होता है, न मालिक आपको दुख देना चाहता है, मालिक आपके कष्टों को दूर करना चाहता है, उन कष्टों को जो कि आपके द्वारा किए गए कर्मों की वजह से बने हैं। सबसे ज्यादा वो क्या करता है- वो सुरत की सम्हाल करता है। उस समय न तो बीमार के तन की फिक्र, व मन की फिक्र, उन्हें तो सुरत की सम्हाल की फिक्र रहती है और जब सुरत की सम्हाल हो गई, सुरत में शक्ति आ गई तो मन कहां जाएगा और तन कहां जाएगा। फिर जैसी उनकी मौज होती है, काम पूरा होना है और काम पूरा होगा। संत सतगुरु जरूर जीव को मालिक के चरनों में पहुंचाएंगे।

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एक सत्संगी को हमेशा क्षमा चाहिए। दूसरे के औगुनों की ओर से दृष्टि ना डालकर अगर किसी से गलत काम बन जाए तो उसको माफ कर देना चाहिए, दिल से माफ कर देना चाहिए। फिर वह अपने आप अपनी गलती की आग में झुलसेगा, भुनेगा और यही उसके लिए काफी है। मालिक के पास तो मन है नहीं, वह तो सिर्फ सुरत का ही श्रृंगार कर सकते हैं, शब्द से भर सकते हैं, झोली भर सकते हैं प्रेम से, इसलिए हर फेरा जो गुरु दरबार का है, उससे कुछ लेकर जाते हैं। आप प्रेम लेकर जाते हैं और बहुत कुछ छोड़ कर जाते हैं। जितनी मजा भी चीजें हैं वह छोड़ दी जाती हैं. जो रोज यहां पर जलाकर खाक की जाती हैं। इतना बड़ा काम रोज होता है और आपकी आंखों से नहीं दिखता है। इतनी ज्वाला जलती है न जाने किस-किस के कितने-कितने कर्म कटते हैं। किसी न किसी तरीके से अमृत दिया जाता है। इसलिए यहां पर दुख हो या तकलीफ हो उसमें बहुत परेशान होने की जरूरत नहीं है। मालिक आप ठीक समय पर मौजूद हो जाएगा और रक्षा करेगा, बचाएगा। तुमसे बढ़कर कोई हितकारी हो नहीं सकता। आप दस नहीं, दस हजार नातेदारों- रिश्तेदारों को खड़ा कर दीजिए, वह सिवाय आपको नुकसान करने के कोई फायदा नहीं करा सकते, लेकिन मालिक का फर्ज है कि वह किसी भी तरीके से, किसी के जरिए भी आपको दवा दिलवा दें, बिना दवा के दया करते हैं, वैसे ही आपकी संकट की घड़ी को डाल दें। देखिए कुछ क्षण का होता है मुसीबत का चक्कर, उस समय यदि होश रहे और आप मालिक को याद कर लें तो मालिक आपके पास इस रफ्तार आएंगे कि जैसी रफ्तार का आज तक न कोई जहाज बना है, न कोई रॉकेट, न कोई मिसाइल और न बन सकता है, उनकी दया की तेजी का अनुमान नहीं लगाया जा सकता।