baba yogendra

कला के लिए समर्पित संस्कार भारती के संस्थापक पद्मश्री संघ प्रचारक बाबा योगेन्द्र

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL

Agra, Uttar Pradesh, India. आज अभावों में पले ऐसे ही एक जीवट संघ प्रचारक बाबा योगेन्द्र की गाथा आप सबके लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ। प्रकृति के अनुरूप यदि काम मिल जाए तो व्यक्ति असाधारण कार्य कर दिखाता है। बाबा योगेन्द्र को भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बृज प्रांत कार्यालय माधव भवन, जयपुर हाउस, आगरा में उनका केन्द्र है। इतने साधारण हैं कि मिलने वाले अचरज करते हैं।

ऐसे हुई शुरुआत

1942 में लखनऊ में प्रथम वर्ष ‘संघ शिक्षा वर्ग’ का प्रशिक्षण करने के बाद 1945 में श्री योगेंद्र प्रचारक बने। गोरखपुर, प्रयाग, बरेली, बदायूँ, सीतापुर आदि स्थानों पर संघ कार्य किया; पर उनके मन में एक सुप्त कलाकार सदा मचलता रहा। देश-विभाजन को उन्होंने बहुत नजदीक से देखा था। संघ शिक्षा वर्ग में उन्होंने इस पर एक प्रदर्शनी बनाई। जिसने भी यह प्रदर्शनी देखी, वह अपनी आँखें पोंछने को मजबूर हो गया। फिर तो ऐसी प्रदर्शिनियों का सिलसिला चल पड़ा। शिवाजी, धर्म गंगा, जनता की पुकार, जलता कश्मीर, संकट में गोमाता, 1857 के स्वाधीनता संग्राम की अमर गाथा, विदेशी षड्यन्त्र, माँ की पुकार…आदि ने संवेदनशील मनों को झकझोर दिया। ‘भारत की विश्व को देन’ नामक प्रदर्शिनी को विदेशों में भी प्रशंसा मिली।

अन्तःकरण के शब्द को जब संघ नेतृत्व ने स्वर दिया

शीर्ष नेतृत्व ने योगेन्द्र जी की इस प्रतिभा को देखकर 1981 ई0 में ‘संस्कार भारती’ नामक संगठन का निर्माण कर उसका कार्यभार उन्हें सौंप दिया। योगेन्द्र जी के अथक परिश्रम से यह आज सामाजिक दायित्वबोध एवं राष्ट्रप्रेम से युक्त कला-साधकों  की अग्रणी संस्था बन गयी चुकी है।

संघर्षमय प्रारंभिक जीवन

7 जनवरी, 1924 को बस्ती, उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध वकील बाबू विजय बहादुर श्रीवास्तव के घर जन्मे योगेन्द्र जी के सिर से दो वर्ष की अवस्था में ही माँ का साया उठ गया। फिर उन्हें पड़ोस के एक परिवार में बेच दिया गया। इसके पीछे यह मान्यता थी कि इससे बच्चा दीर्घायु होगा। उस पड़ोसी माँ ने ही अगले दस साल तक उन्हें पाला। वकील साहब कांग्रेस और आर्यसमाज से जुड़े थे। जब मोहल्ले में संघ की शाखा लगने लगी, तो उन्होंने योगेन्द्र को भी वहाँ जाने के लिए कहा। छात्र जीवन में उनका सम्पर्क गोरखपुर में संघ के प्रचारक नानाजी देशमुख से हुआ। योगेन्द्र जी यद्यपि सायं शाखा में जाते थे; पर नानाजी प्रतिदिन प्रातः उन्हें जगाने आते थे, जिससे वे पढ़ सकें। एक बार तो तेज बुखार की स्थिति में नानाजी उन्हें कन्धे पर लादकर डेढ़ कि.मी. पैदल चलकर पडरौना गये और उनका इलाज कराया। इसका प्रभाव योगेन्द्र जी पर इतना पड़ा कि उन्होंने शिक्षा पूर्ण कर स्वयं को संघ कार्य के लिए ही समर्पित करने का निश्चय कर लिया।

कलाकारों के कलाकार योगेन्द्र बाबा

कला की साधना अत्यन्त कठिन है। वर्षों के अभ्यास एवं परिश्रम से कोई कला सिद्ध होती है; पर कलाकारों को बटोरना उससे भी अधिक कठिन है, क्योंकि हर कलाकार के अपने नखरे रहते हैं। ‘संस्कार भारती’ के संस्थापक श्री योगेन्द्र ऐसे ही कलाकार हैं, जिन्होंने हजारों कला साधकों को एक माला में पिरोने का कठिन काम कर दिखाया है। योगेन्द्र जी शुरू से ही बड़े कलाकारों के चक्कर में नहीं पड़े। उन्होंने नये लोगों को मंच दिया और धीरे-धीरे वे ही बड़े कलाकार बन गये। इस प्रकार उन्होंने कलाकारों की नयी सेना तैयार कर दी।

रुकना है मना, थकना है मना, मुँह आह करे तो धिक्कार

जो स्वयंसेवक संघ परिवार में 2014 के बाद शामिल हुए, कई बंधु यहाँ की प्रतिष्ठा देखकर आज लहलहाए नहीं समाते हैं। खासकर राजनैतिक आकषर्ण से आये लोग इसको कुछ पाने की सीढ़ी समझते हैं। वे भूल जाते हैं कि वर्षों की कठिन तपस्या और घोर परिश्रम के बूते आज यह स्थान संघ ने समाज में प्राप्त किया है। ऐसे अनगिनत लोगों ने अपना जीवन गलाकर मातृभूमि के लिए समर्पित किया है

आज ही  बाबा योगेंद्र जी 97 वर्ष की आयु पूरा करके 98वें में प्रवेश किये हैं। जो लोग भी बाबाजी को नजदीक से जानते हैं उनको पता है कि बाबा के जीवन में थकान नाम की कोई चिड़िया नहीं है। वे सदैव आनंदित रहते हैं। आज बाबाजी के जन्मदिवस पर ईश्वर से बस यही प्रार्थना  करता हूँ कि वे दीर्घायु रहकर इसी प्रकार कला के माध्यम से देशसेवा करते रहें।

प्रस्तुतिः नंदनंदन गर्ग, संस्कार भारती