Dadaji maharaj agra

मालिक प्रेम का अथाह सागर है और उससे निकली हुई लहर ही गुरु हैः दादाजी महाराज

NATIONAL REGIONAL RELIGION/ CULTURE

हूजरी भवन, पीपल मंडी, आगरा राधास्वामी (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं जो आगरा विश्वविद्यालय (Agra university) के दो बार कुलपति (Vice chancellor of Agra university)  रहे हैं। हजूरी भवन (Hazuri Bhawan, Peepal Mandi, Agra) में हर वक्त राधास्वामी (Radha Soami)  नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत (RadhaSomai faith) के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 26 अक्टूबर, 1999 को दादाजी महाराज कोटरा, पुष्कर रोड, अजमेर (राजस्थान) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज (Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने कहा- जानना चाहिए कि कोई भी अध्यात्म साम्प्रदायिक तनाव या साम्प्रदायिक विषमता नहीं सिखाता है।

यह एक बहुत बड़ी चुनौती है

यह एक बहुत बड़ी चुनौती है कि धर्म के नाम पर भिन्न-भिन्न प्रकार का संप्रदायवाद पैदा हो गया है, जिसमें कोई अपने आप को हिन्दू, कोई मुसलमान और कोई ईसाई कहता है, जिसका नतीजा यह होता है कि कोई मस्जिद तोड़कर मंदिर बनाना चाहता है, कोई मंदिर तोड़ता है तो कोई गिरजाघर। धर्म तो यह नहीं सिखाता है। अतः सब दिशाहीन और अंधे हो रहे हैं। जानना चाहिए कि कोई भी अध्यात्म साम्प्रदायिक तनाव या साम्प्रदायिक विषमता नहीं सिखाता है।

क्या करता है गुरु

राधास्वामी मत में प्रेम का संदेश दिया जाता है, जिसमें हम गुरु को मानते हैं और जो गुरु को मानता है, उससे भी आप प्यार करते हैं। अगर मानव, मानव में प्रेम हो जाए तो श्रेष्ठ मानवता आ सकती है। यहां पर सदैव गुरु की आवश्यकता पर जोर दिया गया है ताकि वह आपके संदेह और शंकाएं दूर कर सके और आपको इन परिस्थतियों में सही रास्ता बता सके और न केवल परलोक सुधारने का बल्कि कैसे इस जीवन को एक निश्चित दिशा दी जा सकती और कैसे जिन्दगी जी जा सकती है, यह भी बता सके।

मालिक प्रेम का अथाह सागर

आजकल जो जिन्दगी इंसान जी रहे हैं, वह तो बंदर की जिन्दगी है। जिस प्रकार से बंदर नकल करता है, उसी प्रकार लोगों ने भी पश्चिम की नकल करना अपन फर्ज समझ लिया है। इसका नतीजा यह हुआ है कि ईर्ष्या, हिर्स, बैर, विरोध, वैमनस्य और मान बड़ाई की चाह ने विषैला वातारवरण पैदा कर दिया है। आप फिर से एक दूसरे के प्रति प्रेम करना सीख सकते हैं क्योंकि वह प्रेम बूंद हर एक में सुरत के रूप में मौजूद है लेकिन बूंद को इस समय समुद्र से आती हुई लहर की जरूरत है। मालिक प्रेम का अथाह सागर है और उससे निकली हुई लहर ही गुरु है। गुरु वही है जो अँधेरे में प्रकाश कर दे, दिशा दे यानी आज की परिस्थिति में आपको यह निश्चित बता सके कि ऐसा करने से लाभ हो सकता है और आध्यात्मिक जागृति हो सकती है। (क्रमशः)