Agra, Uttar Pradesh, India. कुमायूं विश्वविद्यालय, नैनीताल के कुलपति प्रोफेसर डॉ. केएस राना को उत्तराखंड आवासीय विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा (Uttarakhand Residential University) का कुलपति बनाया गया है। यह विश्वविद्यायलय अल्मोड़ा यूनिवर्सिटी के नाम से लोकप्रिय है। वैसे कुमायूं विश्वविद्यालय का एक परिसर अल्मोड़ा में भी है। Uttarakhand Residential University का कार्यक्षेत्र लगभग पूरा पहाड़ और चीन की सीमा तक है।
डीलिट की मानद उपाधि
बता दें कि विश्व मानवाधिकार सुरक्षा आयोग World Human Rights Protection Commission New York, US (अमेरिका के न्यूयॉर्क में कार्यालय है) के एक्सपर्ट बोर्ड ने कुमायूं यूनिवर्सिटी, नैनीताल (उत्तराखंड) के कुलपति प्रोफेसर केएस राना (Dr ks rana VC kumaun university) का चयन पर्यावरण संरक्षण के लिए किये हुए कार्यों तथा प्रेज़ेंटेशन के आधार पर डीलिट की मानद उपाधि (Honorary D. Litt) के लिए किया है। डॉ. राना का आधिकारिक पता जयपुर (राजस्थान) का है, लेकिन वे मूल रूप से आगरा के हैं। आगरा में ही उन्होंने अध्ययन किया। आगरा कॉलेज में अध्यापन किया। पर्यावरण पर शोध कार्य किए और एक वैज्ञानिक के रूप में पूरी दुनिया में विख्यात हो गए।
15 पुस्तकों के लेखक
डॉ. राना की जर्मनी में डीएससी प्रकाशित हुई थी। पुन: तीन पुस्तक भी वहीं छपी। 318 लेख विभिन्न जर्नल पत्रिकाओं में 15 अन्य पुस्तक प्रकाशित हुईं। अब तक 4 विवि में पूर्ण निष्ठा ईमानदारी से कुलपति के रूप में प्रशासन चलाया है। सर्वाधिक प्रभावशाली कुलपति रूप में अप्रैल में मुंबई में अवार्ड मिला, जिसमें देश के कुल 8 अन्य कुलपति ही थे।
समुंदर से सीखा है मैंने जीने का सलीका
उन्होंने कहा कि यह सम्मान आगरा वालों को समर्पित है। मंज़िल दूर है लेकिन मन अधीर नहीं है। जीवन में अवसर आते जाते हैं किन्तु सभी का सहयोग लेकर मंज़िल तक पहुँचना अच्छा लगता है। जब भी जो भी जिम्मेदारी मिले उसको मन, वचन, कर्म से अंजाम तक पहुँचाना मेरा उसूल है-
समुंदर से सीखा है मैंने जीने का सलीका
धीरे से बहना, अपनी हद में रहना।
संपादक डॉ. भानु प्रताप सिंह की बात
आगरावासियों को गर्व है कि प्रोफेसर (डॉ.) केएस राना का संबंध आगरा से है। आगरा कॉलेज में अध्यापन के दौरान उन्होंने अपने विद्वता से हर किस को अचंभित कर दिया। पर्यावरण क्षेत्र में उनका योगदान अतुलनीय, उदाहरणीय और अनुपम है। यही कारण है कि चौधरी चरण सिंह के बाद चौ. अजित सिंह से जुड़े रहने के बाद भी मोदी सरकार ने उन्हें पर्यावरण मंत्रालपय की सबसे शक्तिशाली समिति में रखा। इस कारण आगरा के कई लोगों के सीने पर सांप लोट गया लेकिन कहते हैं कि काम बोलता है। कुछ लोग ईर्ष्या में अपनी रक्तचाप बढ़ाते रहे और वे शोध कार्यों में लगे रहे।
मोनाड यूनिवर्सिटी, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश), नालंदा विश्वविद्यालय पटना (बिहार), कुमायूं विश्वविद्यालय नैनीताल (उत्तराखंड) के कुलपति रहे हैं। उन्हें आज ही अल्मोड़ा विश्वविद्यालय (उत्तराखंड) का कुलपति बनाया गया है। यह नया विश्वविद्यालय सृजित किया गया है। डॉ. राना की जर्मनी में डीएससी प्रकाशित हुई थी। पुन: तीन पुस्तक भी वहीं छपी। 318 लेख विभिन्न जर्नल और पत्रिकाओं में 15 अन्य पुस्तक प्रकाशित हुईं। उन्हें भारत के सर्वाधिक प्रभावशाली कुलपति के रूप में मुंबई में सम्मानित किया जा चुका है। अब उन्हें मानवाधिकार सुरक्षा आयोग से डीलिट की मानद उपाधि से अलंकृत किया गया है। उनके लिए अवार्ड अब कोई मायने नहीं रखते हैं।
खुशी इस बात की है कि सफलता के सोपानों पर चढ़ने के बाद भी उन्हों आगरा और अपने पुराने मित्रों को विस्मृत नहीं किया है। कभी फोन करो तो वही अट्टहास, वह अल्हड़पन, वही माधुर्य। नाम लेकर लोगों के बारे में जानकारी करने का वही निराला अंदाज। आगरावासी आज भी उनकी प्राथमिकता सूची में शामिल हैं। उनकी यही बातें सिद्ध करती हैं वे हर अवॉर्ड के हकदार हैं। अब तो स्थिति ऐसी है कि अवॉर्ड प्रतीक्षारत हैं, आतुर हैं, व्याकुल हैं, विकल हैं प्रोफेसर केएस राना के मुकुट में शोभायमान होने के लिए।
मुझे गर्व है और मेरे आगरा को गर्व है डॉ. केएस राना की इन उपलब्धियों पर। उस दिन की प्रतीक्षा है जब आगरा को ताजमहल के साथ-साथ प्रोफेसर केएस राना के नाम से भी जाना जाएगा। देश-दुनिया के लोग कहेंगे- डॉ. केएस राना.. अच्छा.. आगरा वाले.. हां जी आगरा वाले डॉ. केएस राना। आगरा के मान-सम्मान में सकारात्मकता लाने के लिए, आगरा के स्वर्णिम इतिहास में एक और स्वर्णिम पन्ना जोड़ने के लिए आप भी डॉ. केएस राना को शुभकामनाएं दें।
कोरोना का तनाव भगाने के लिए वरिष्ठ पत्रकार डॉ. भानु प्रताप सिंह द्वारा लिखित उपन्यास ‘मेरे हसबैंड मुझको प्यार नहीं करते’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें –
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