dr bhanu pratap singh

हिंदी पत्रकारिता दिवसः ताज प्रेस क्लब, पत्रकार परिषद और डॉ. भानु प्रताप सिंह, रोचक कथानक

लेख

डॉ. भानु प्रताप सिंह
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30 मई को हिंदी (पहले मैं हिन्दी लिखता था, लेकिन केन्द्रीय हिंदी संस्थान का कहना है कि हिंदी शुद्ध है) पत्रकारिता दिवस होता है। पत्रकार हूँ तो पत्रकारिता दिवस पर मन में हिलोर उठना स्वाभाविक है। मैंने प्रातःकाल स्नान के दौरान बालों में शैम्पू किया। दो बार शेविंग की। चटख लाल रंग की बुशर्ट निकाली। उस पर हल्के कलर का ट्राउजर। प्रिय पुत्र रजत प्रताप सिंह के स्पोर्ट्स शूज पहने। आप सोचेंगे कि हिंदी पत्रकारिता दिवस पर यह सब क्यों? मुझे लगता है कि जब पत्रकार होली, दीपावली, रक्षाबंधन, भैया दूज पर तैयार हो सकते हैं तो पत्रकारिता दिवस पर क्यों नहीं? वर्ष में एक ही दिन तो होता है जब हम अपने मन की बात साथियों से कह सकते हैं। ठीक से सँवरकर ताज प्रेस क्लब की ओर रवान हुआ। वहां पूर्वाह्न 11 बजे से राष्ट्रीय संगोष्ठी थी। मैं घर से ठीक 10 बजे निकला था। स्कूटी से 20 मिनट में ही पहुंच गया। वैसे तो समय आधा घंटा का लगता लेकिन उत्साह ने गति बढ़ा दी।

जैसा कि होता है ताज प्रेस क्लब में कार्यक्रम की तैयारियां चल रही थीं। इस कार्यक्रम की धुरी अध्यक्ष सुनयन शर्मा जी और महासचिव केपी सिंह जी युद्धस्तर पर लगे हुए थे। 11 बज गए। पत्रकार समय पर नहीं आए। मैं चाहता था कि कार्यक्रम ठीक 11 बजे शुरू हो जाना चाहिए। 11 बजते ही मुझे चिंता होने लगी। मैंने पूछा तो सुनयन शर्मा जी ने बताया कि ‘कुलपति प्रो. आशु रानी तो तैयार हैं, मैंने उन्हें रोक दिया है। जब यहां कोई आया नहीं है तो अभी बुलाकर क्या करें। दिल्ली से श्री अजय उपाध्याय जी आ चुके हैं। होटल में फ्रेश होने के बाद आ रहे हैं। साढ़े ग्यारह बजे से लोग आने शुरू हुए।’

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बाएं से डॉ. भानु प्रताप सिंह, केपी सिंह, विधायक पुरुषोत्तम खंडेलवाल, असलम सलीमी, सुनयन शर्मा, कुलपति प्रो.आशु रानी, डॉ. सिराज कुरैशी।

अतिथियों में सबसे पहले विधायक पुरुषोत्तम खंडेलवाल जी टपके। इससे पूर्व मैंने उन्हें फोन किया तो बोले कि मैं तो लखनऊ में हूँ। मुझे ताव आ गया और कहा कि लखनऊ में हो तो हमें समय क्यों दिया? यह सुनकर विधायक जी ने कहा कि आप कहते हो तो आ जाता हूँ। प्रत्युत्पन्नमति (ठीक समय पर बुद्धि का काम कर जाना) जाग्रत हो गई। मैं समझ गया कि छेड़ रहे हैं। कुछ ही देर में वे प्रकट हो गए। कुछ देर बार श्री अजय उपाध्याय जी आ गए।

मैंने अध्यक्ष जी से कहा कि दीप प्रज्ज्वलन कराइए, 11 बजे का समय था, 12 बजे गए हैं। वे बोले कि कुलपति जी आने वाली हैं। ताज प्रेस क्लब का उपाध्यक्ष होने के नाते अध्यक्ष जी की बात मानना कर्तव्य है, लेकिन मन खीझ रहा था। मेरी बुरी आदत है समय अनुपालन की। जब मैं दैनिक जागरण, अमर उजाला और हिन्दुस्तान में रिपोर्टिंग किया करता था, तब भी समय का अनुपालन करता था। इस कारण आयोजक असहज हो जाया करते थे। मैं मंच पर आकर बार-बार आगुंतकों से क्षमा याचना कर रहा था। सामने आगरा के धुरंधर पत्रकार विनोद भारद्वाज, डॉ. गिरिजा शंकर शर्मा, आनंद शर्मा, डॉ. सुरेन्द्र सिंह, डॉ. सिराज कुरैशी, अनिल शुक्ला, बचन सिंह सिकरवार, डॉ. मधुमोद के रायजादा आदि बैठे हुए थे। इन सबसे मैं आज भी कुछ न कुछ सीखता रहता हूँ।

ajay upadhyay
बाएं से अरशद फरीदी, राजकुमार मीना, अजय उपाध्याय, पुरुषोत्तम खंडेलवाल, भूपेन्द्र कुमार, प्रो.आशु रानी, सुनयन शर्मा।

इसी बीच डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. आशु रानी आ गईं। उनके साथ मीडिया प्रभारी डॉ. पूजा सक्सेना भी थीं। तब तक घड़ी की सुई 12 पार कर चुकी थी। उन्होंने अवगत कराया कि राज्यपाल जी की वी.सी. (वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग) छोड़कर आई हैं। आधा घंटा में जाना है। यह और मुसीबत है। हमें पहले सम्मान करना था। सबको बोलना भी था। कार्यक्रम का संचालन महासचिव केपी सिंह जी को करना था। मैंने सबकुछ पहले से ही तैयार रखा था। स्थिति ऐसी बनी कि संचालन का दायित्व मुझे ही संभालना पड़ा। देरी के चक्कर में मैंने विषय प्रवर्तन न करके अपने समय का बलिदान किया। कुलपति यूं तो वैज्ञानिक हैं लेकिन उन्होंने संबोधन में साहित्यिक वृत्ति का भी परिचय दिया। वे बोलकर चली गईँ।

विधायक पुरुषोत्तम खंडेलवाल घड़ी दिखा रहे थे। मैंने कहा- विधायक जी, आज आपके सभी कार्यक्रम निरस्त किए जाते हैं…। राजनेताओं की व्यस्तता से मैं वाकिफ हूँ। इसलिए उन्हें उदबोधन के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने पत्रकारों की शान में खूब अच्छी बातें कहीं। श्मशान घाट के मुद्दे पर अमर उजाला की सराहना की। वे भी चले गए।

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हमने तीनों प्रमुख अखबारों के संपादकों सम्मान की घोषणा की थी लेकिन अमर उजाला के वरिष्ठ स्थानीय संपादक श्री भूपेन्द्र कुमार जी ही आए। हिन्दुस्तान से डॉ. मनोज पमार और दैनिक जागरण से अवधेश माहेश्वरी न आ सके। श्री भूपेन्द्र कुमार जी ने अत्यंत संक्षिप्त संबोधन में पत्रकारों के दर्द को यह कहकर उकेरा- पत्रकारों को मिलने वाले पैसों पर भी बात होनी चाहिए। पत्रकारों की आर्थिक हालात और ताज प्रेस क्लब आगरा के भवन को समान बताया। श्री अजय उपाध्याय ने वर्तमान और भविष्य की रूपरेखा प्रस्तुत की। कंटेट को रोचक बनाने की बात कही, जिसकी आज बहुत बड़ी कमी है। मैं आभारी हूँ श्री अरशद फरीदी का जो इतने विद्वान पत्रकार-संपादक को लेकर आगरा आए।

कार्यक्रम की समाप्ति के बाद भोजन होना था लेकिन हमारे पत्रकार साथी कहां रुकने वाले हैं। कार्यक्रम के बीच में ही भोजन करने लगे। इस कारण जब मुख्य वक्ता बोलने खड़े हुए तो कुर्सियां खाली थीं। भोजन लाजवाब रहा। कार्यक्रम बहुत शानदार रहा। पूरे कार्यक्रम के लिए एक रुपये का भी चंदा नहीं किया गया, लेकिन हमारे पत्रकार साथियों ने वॉट्सअप ग्रुप में शोर मचा दिया कि 5 लाख का चंदा हुआ है। जिस तरह महिला ही महिला की दुश्मन है, उसी तरह पत्रकार ही पत्रकार के दुश्मन हैं। पत्रकार स्वभावतः खुद्दार होते हैं। यह खुद्दारी आजकल सोशल मीडिया पर निकालते हैं क्योंकि अपने कार्यालय में चूं भी नहीं कर पाते हैं। पत्रकार बाहर तो शेर हो जाते हैं और कार्यालय में घुसते ही भीगी बिल्ली।

भोजन के बाद ही बारिश शुरू हो गई। मौसम तो खुशनुमा हो गया लेकिन मुझे चिन्ता थी खबर तैयार करने की। मोबाइल पर बोलकर लिखने की अपेक्षा मुझे लैपटॉप लिखने में सहजता है। फिर भी थोड़ी खबर मोबाइल पर तैयार की। बारिश बंद होते ही घर की तरफ भागा। जनसंदेश टाइम्स के संपादक नितेश शर्मा जी से समूह फोटो मांगा। अखबारों को खबर भेजी। कार्यक्रम में महापौर हेमलता दिवाकर कुशवाहा को आना था लेकिन वे दिल्ली में थीं और विलम्ब से निकल सकीं। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल जी और उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री श्री योगेन्द्र उपाध्याय जी ने एक दिन पहले ही असमर्थता जता थी क्योंकि पार्टी ने उनकी ड्यूटी अन्य जिलों में लगा दी थी। जिलाधिकारी नवनीत सिंह चहल ने अपने प्रतिनिधि के रूप में एडीएम प्रशासन अजय कुमार सिंह को भेजा।

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पत्रकार परिषद के कार्यक्रम में धुरंधर पत्रकारों के बीच डॉ. भानु प्रताप सिंह को भी मंच पर आसीन होने का सुअवसर मिला।

समाचार भेजने के तत्काल बाद मैं यूथ हॉस्टल की ओर रवाना हो गया। राजकुमार अग्रवाल जी आमंत्रित किया था, इसलिए जाना जरूरी थी। वहां पत्रकार परिषद उत्तर प्रदेश ने संगोष्ठी रखी थी। संगोष्ठी का विषय था-  समाज सुधार में पत्रकारों की भूमिका। वहां भी मंच पर धुरंधर पत्रकार विराजमान थे। मैं विलम्ब से पहुंचा था सो चुपचाप पीछे बैठ गया। संचालन कर रहे श्री सत्येन्द्र पाठक ने मुझे मंच पर आने का इशारा किया लेकिन सकुचा रहा था। जिला अध्यक्ष राजकुमार अग्रवाल की सहजता देखिए कि वे मंच से मेरे पास आए और हाथ पकड़कर मंच पर आसीन किया। माला पहनाकर स्वागत किया। कुछ देर बाद सभी को बंद बोतल में जल जीरा प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम में ताज प्रेस क्लब के अध्यक्ष सुनयन शर्मा का जन्मदिन पुष्पहार पहनाकर मनाया गया।

यह कार्यक्रम अत्यंत अनुशासित ढंग से हुआ। रत्ती भर भी शोर नहीं। आपस में कोई बातचीत नहीं। दो बार ग्रुप फोटो हुए पर शांति का राज रहा। आपको यह बताना कर्तव्य समझता हूँ कि पत्रकार परिषद ऐसी संस्था है जो आवश्यकता पड़ने पर पत्रकारों की आर्थिक मदद करती है। इसके अधिकांश सदस्य पत्रकारिता के साथ अन्य काम भी करते हैं। कुल मिलकर वे पत्रकारिता से होने वाली आय पर निर्भर नहीं हैं। इस कारण खुलकर बोलते हैं और खुलकर काम करते हैं। खेद की बात है कि लोकप्रिय समाचार पत्र और चैनलों के पत्रकार इन्हें पत्रकार नहीं मानते हैं। यहां तक कि सम्मानपूर्ण व्यवहार भी नहीं करते हैं। यह बात चुभने वाली है। वे भूल जाते हैं कि कुर्सी और संस्था किसी की सगी नहीं है। आप अपनी संस्था के लिए जान लगा दो लेकिन ऐसा वक्त जरूर आएगा जब आप दूध में से मक्खी की तरह निकाल फेंक दिए जाओगे। कार्यक्रम ठीक समय पर समाप्त हो गया। इसका एक कारण और था कि संचालक सत्येन्द्र पाठक खड़े होकर वक्ता को इशारा कर देते थे कि अब चुप भी हो जाओ।

पत्रकार परिषद
पत्रकार परिषद की संगोष्ठी के उद्घाटन में उपस्थित अतिथिगण

यहां भी भोजन का इंतजाम था। छोटे, भटूरे, चावल और रसगुल्ला। सलाद और मिर्च तो सब जगह होती ही है। भोजन के दौरान ही पत्रकार साथी केपी सिंह जी और बृजेश गौतम जी के बीच चेंट हो गई। असल में बृजेश गौतम जी ताज प्रेस क्लब के बारे में नकारात्मक बातें सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं। दोनों ही जोर-जोर से बोलने लगे। मैंने भी बृजेश गौतम जी को अपने परिचय दिया और आग्रह किया कि कुछ भी लिखने से पहले सत्यता परख लिया गया। उन्हें यह भी बताया कि आगे बढ़ना है तो इन सब चीजों को छोड़ना पड़ेगा। चेंट हो जाने से वे क्रोध में थे। उस दौरान शानदार खबरें कर रहे श्री सुनील साकेत और संपादक वीरेन्द्र चौधरी आदि भी थे। कई लोग दोनों की चेंट का मजा रहे थे। मुझे लगता है कि बृजेश गौतम चाहते हैं कि बहुत तेजी से काम हो, जो नहीं हो पा रहा है, इस कारण सदस्य होने के नाते आलोचना करके अपने धर्म का निर्वाह कर रहे हैं। मैंने भोजन समाप्त किया और उन्हें नमस्कार करके घर की ओर चल दिया।

तीसरा कार्यक्रम श्री विवेक जैन जी ने होटल में हुआ। मैं वहां गया नहीं इसलिए कुछ लिखना मूर्खता ही होगी। मैंने अपने वेबसाइट पर उनका समाचार लगाया है, चूंकि गया नहीं था सो जैसा भेजा, वैसा ही चस्पा कर दिया।

हिंदी पत्रकारिता दिवस पर पत्रकारों का अभिनंदन

हिंदी पत्रकारिता दिवस से पूर्व आगरा में एक और पत्रकार संगठन का उदय हुआ है। पहले से ही एक दर्जन पत्रकार संगठन चल रहे हैं। आशा करता हूँ कि सभी पत्रकार संगठन पत्रकार हित के लिए काम करेंगे। मुझे लगता है कि कितने ही संगठन बन जाएं लेकिन ताज प्रेस क्लब की जो महत्ता है, वह कम नहीं हो सकती है, क्योंकि यही पत्रकारों का एकमात्र ऐसा संगठन है, जिसके पदाधिकारी निर्वाचित होते हैं, मनोनीत नहीं। सभी साथियों को आशा है कि ताज प्रेस क्लब बुलेट ट्रेन की गति से काम करे, जो नहीं हो पा रहा है। इसी कारण ताज प्रेस क्लब के पदाधिकारी निशाने पर होते हैं। ताज प्रेस क्लब के चुनाव 12 साल बाद हुए हैं। कई पूर्व पदाधिकारी भी चुने गए हैं। अब दो वर्ष का भी सब्र नहीं कर रहे हैं।

 

Dr. Bhanu Pratap Singh