25 जून, 1975 को लगाई गई थी इमरजेंसी, आगरा से 1100 लोग ठूंसे गए थे जेल में
सबसे कम उम्र के 12 वर्षीय संजय गोयल और 14 वर्षीय पुरुषोत्तम खंडेलवाल भी जेल गए थे
डॉ. भानु प्रताप सिंह
Agra, Uttar Pradesh, India. 25 जून, 1975 की रात्रि में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल घोषित कर दिया। अखबारों ने संपादकीय खाली छोड़ कर इमरजेंसी का विरोध किया। पूरे देश की तरह आगरा में भी विरोध हुआ। इमरजेंसी के विरोध का आगरा में अनजाने में ही एक रिकॉर्ड बन गया था। कम उम्र के दो बालक भी जेल गए। इनमें से एक का नाम है संजय गोयल (स्पीड कलर लैब) और दूसरा नाम है पुरुषोत्तम खंडेलवाल (अब विधायक)। आगरा में 150 लोकतंत्र सेनानी हैं। सरकार इन्हें 20 हजार रुपये मासिक पेंशन दे रही है।
पहले संजय गोयल की बात
पहले बात करते हैं संजय गोयल की। इमरजेंसी के खिलाफ जेल भरो अभियान नवम्बर, 1975 से शुरू हुआ था। तय हुआ था कि पांच लोग रोज जेल जाएंगे। 1976 के जनवरी में सरस्वती विद्या मंदिर के छात्रों ने इमरजेंसी के विरोध में परीक्षा का वॉकआउट किया तो पुलिस आ गई। इंटर के 14 विद्यार्थी और तीन शिक्षक पकड़ लिए गए। इनमें शामिल थे कक्षा सात के छात्र संजय गोयल। वे विद्या मंदिर के छात्र नहीं थे, लेकिन जेल जाने के लिए आए थे। उनकी जन्म तिथि है सात दिसम्बर, 1963। इस तरह उनकी उम्र उस समय 12 साल थी। देश में सबसे कम उम्र के छात्र द्वारा इमरजेंसी के विरोध का रिकॉर्ड उन्हीं के नाम है। उनके भाई विजय गोयल भी जेल में थे। मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश यादव ने होटल जेपी पैलेस में उन्हें सबसे कम उम्र का लोकतंत्र रक्षक सेनानी होने का प्रमाणपत्र दिया।

मुलायम सिंह को दिया धन्यवाद तो मिला ये जवाब
संजय गोयल कहते हैं- मैंने डॉ. आरएस पारीक के निवास पर मुलायम सिंह यादव को इस बात के लिए धन्यवाद दिया कि इमरजेंसी का विरोध करने वालों को पहचान और सम्मान दिया। इस पर श्री यादव ने कहा था- मुझे मालूम है कि जेल जाने वाले सभी आरएसएस के लोग थे लेकिन इमरजेंसी बहुत खराब थी। श्री गोयल ने कहा कि लोकतंत्र रक्षक सेनानियों द्वारा सुविधाओं की मांग करने पर ऐतराज जताया है।
पुरुषोत्तम खंडेलवाल के हाथ में नहीं आई हथकड़ी
दूसरे नम्बर पर आते हैं पुरुषोत्तम खंडेलवाल। उनकी जन्मतिथि है 16 सितम्बर, 1961। इमरजेंसी के विरोध में जेल जाते समय उनकी उम्र थी 14 साल। वे आरएसएस के इशारे पर अखबार का वितरण करते थे। उन्हें एक दर्जन परिचितों के साथ लोहामंडी इलाके से गिरफ्तार कर लिया गया। हाथ में हथकड़ी नहीं आई तो रस्सी से हाथ बांध दिए। जेल में लेने से मना कर दिया तो जेल में बंद साथियों ने हंगामा किया। इसके बाद अंदर लिया गया।
जेल में मिली यातना
श्री खंडेलवाल बताते हैं- जेल में खाना इतना मिलता था कि जीवित रह सकें। सूखी चपाती मिलती थी। पानी तक की किल्लत थी। जेल में बिना ध्वज की शाखा लगती थी। इमरजेंसी के दौरान कांग्रेसियों की गुंडागर्दी चरम पर थी। नेताओं को कोतवाली से कलक्ट्रेट तक पैदल हथकड़ी लगाकर ले जाया जाता था। एमएलसी होने के बाद भी राजकुमार सामा के साथ भी यही किया। आगरा से सत्यप्रकाश विकल, भगवान शंकर रावत, रमेशकांत लवानिया, हरद्वार दुबे समेत करीब 1100 लोग जेल में रहे।
कब लगी थी इमरजेंसी
25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था। तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी। … आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई।
1975
12 जून 1975 को इंदिरा गांधी को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दोषी पाया और छह साल के लिए पद से बेदखल कर दिया। इंदिरा गांधी पर वोटरों को घूस देना, सरकारी मशीनरी का गलत इस्तेमाल, सरकारी संसाधनों का गलत इस्तेमाल जैसे 14 आरोप सिद्ध हुए लेकिन आदतन श्रीमती गांधी ने उन्हें स्वीकार न करके न्यायपालिका का उपहास किया। राज नारायण ने 1971 में रायबरेली, उत्तर प्रदेश में इंदिरा गांधी के हाथों हारने के बाद मामला दाखिल कराया था। न्यायाधीश जगमोहनलाल सिन्हा ने यह फैसला सुनाया था।
24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश बरकरार रखा, लेकिन इंदिरा को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बने रहने की इजाजत दी जो कि होना भी जरुरी था क्योकि राजतन्त्र में ऐसा ही होता है।
25 जून 1975 को जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा के न चाहते हुए भी इस्तीफा देने तक देश भर में रोज प्रदर्शन करने का आह्वाहन किया।
25 जून 1975 को राष्ट्रपति के अध्यादेश पास करने के बाद सरकार ने आपातकाल लागू कर दिया।
1976
सितम्बर 1976 – संजय गाँधी ने देश भर में अनिवार्य पुरुष नसंबदी का आदेश दिया। इसके पीछे सरकार की मंशा देश की आबादी को नियंत्रित करना था। इसके अंतर्गत लोगों की इच्छा के विरुद्ध नसबंदी कराई गयी। कार्यक्रम के कार्यान्वयन में संजय गांधी की भूमिका की सटीक सीमा विवादित है, कुछ लेखकों ने गांधी को उनके आधिकारिकता के लिए सीधे जिम्मेदार ठहराया है, और अन्य लेखकों ने उन अधिकारियों को दोषी ठहराते हुए जिन्होंने स्वयं गांधी के बजाय कार्यक्रम को लागू किया था। रुखसाना एक समाजवादी थीं जो संजय गांधी के करीबी सहयोगियों में से एक होने के लिए जानी जाती थीं। उन्हें पुरानी दिल्ली के मुस्लिम क्षेत्रों में संजय गांधी के नसबंदी अभियान के नेतृत्व में बहुत कुख्यातता मिली थी
1977
18 जनवरी – इन्दिरा गांधी ने लोकसभा भंग करते हुए घोषणा की कि मार्च मे लोकसभा के लिए आम चुनाव होंगे। सभी राजनैतिक बन्दियों को रिहा कर दिया गया।
23 मार्च – आपातकाल समाप्त
16-20 मार्च – छठवें लोकसभा के चुनाव सम्पन्न। जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई। संसद में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 350 से घटकर 153 पर सिमट गई और 30 वर्षों के बाद केंद्र में किसी गैर-कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ। स्वयं इंदिरा गांधी और संजय गांधी चुनाव हार गए। मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। कांग्रेस को उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में एक भी सीट नहीं मिली।
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