Dadaji maharaj

पटियाला में दादाजी महाराज ने कहा- किसी भी सूरत में व्यास वाले राधास्वामी मत के अनुयायी नहीं हो सकते

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा राधास्वामी (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य (Radhasoami guru Dadaji maharaj) और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं जो आगरा विश्वविद्यालय (Agra university) के दो बार कुलपति (Vice chancellor of Agra university)  रहे हैं। हजूरी भवन (Hazuri Bhawan, Peepal Mandi, Agra) में हर वक्त राधास्वामी (Radha Soami)  नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत (RadhaSomai faith) के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 8 अप्रैल 2000 को ऋषि आश्रम परिसर, पटियाला (पंजाब, भारत) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज (Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने कहा – व्यास का सत्संग काफी समय तक ‘डेरा बाबा जयमल सिंह’ के नाम से प्रचलित था। फिर कैसे यह नाम – राधास्वामी आया। इसलिए किसी भी सूरत में व्यास वाले राधास्वामी मत के अनुयायी नहीं हो सकते। अधिक से अधिक वे सत्तनाम पंथी कहे जा सकते हैं।

स्वामी जी महाराज के आखिरी चनों का वह बचन
स्वामी जी महाराज के आखिरी बचनों का वह बचन भी अब हमको मिल गया है और हमने ‘हजूरी दया की झलकियां’ नामक पुस्तक में छाप दिया है, जिसमें लाला प्रताप सिंह सेठ उर्फ चाचा जी साहब की ओर इशारा करते हुए स्वामी जी महाराज ने फरमाया-

‘मेरा मत तो सत्तनाम और अनामी का था और राधास्वामी मत खास सालिगराम (हजूर महाराज) का चला हुआ है तो उसको ही चलने देना और सतसंग जारी रहे और सत्संग आगे से बढ़कर होगा’।

 अब देखो ‘भी’ और ‘ही’ में कितना अंतर हो गया।

व्यास सत्संग के संस्थापक के नाम का जिक्र नहीं

आखिरी बचन स्वामी जी महाराज में उन सभी उच्च कोर्ट के अभ्यासियों का जिक्र आया है जो स्वामी जी महाराज के सतसंग में स्थान रखते थे। चाचा जी साहब ने भी ‘जीवन चरित्र स्वामी जी महाराज’ में स्वामी जी महाराज के समय के प्रेमियों का हाल लिखा है लेकिन बहुत गौर और छानबीन से देखने के बाद भी व्यास सत्संग के संस्थापक के नाम का जिक्र न तो आखिरी बचनों में मिलता है न ही जीवन चरित्र में और न ही सार बचन छंद बंद में। एक विशेष बात यह है कि व्यास का सत्संग काफी समय तक ‘डेरा बाबा जयमल सिंह’ के नाम से प्रचलित था। फिर कैसे यह नाम – राधास्वामी आया। इसलिए किसी भी सूरत में व्यास वाले राधास्वामी मत के अनुयायी नहीं हो सकते। अधिक से अधिक वे सत्तनाम पंथी कहे जा सकते हैं।

बड़ाई राधास्वामी नाम की

हर तरह से बड़ाई राधास्वामी नाम की, मत की और हजूर महाराज की है क्योंकि इसमें कोई शक नहीं कि प्रगट कराने वाले, प्रगट करने वाले, उद्धारक और इस मत के दर्शन को व्यवस्थित करने वाले परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज राधास्वामी दयाल (राय सालिगराम साहब) बहादुर ही हैं। अतः जो हजूर महाराज को कुल मालिक नहीं मानते वह राधास्वामी मत के अनुयायी नहीं हो सकते।

मैं हजूर के चरण पकड़वाने आया हूं

इसलिए मैं हजूर के चरण पकड़वाने आया हूं। तुम पकड़ो। जो उनका निजमुसाहिब है, उत्तराधिकारी है, जिसमें वह आप आकर विराजे हैं, वही उनकी निज धार है। जगत के उद्धार का सिलसिला हजूर महाराज ने जारी किया। अगर जगत उद्धार होगा तो वक्त गुरु की जरूरत पड़ेगी। लिहाजा अगर हजूरी चरन पकड़ने हैं तो उन्हें ढूंढो। उनके सच्चे उत्तराधिकारी के चरन पकड़ लो तब हजूरी चरन मिल सकते हैं, इससे पहले नहीं।