आपदाओं की सदी बदली, पर हमने सीखने की जरूरत नहीं समझी
संक्रामक रोग अस्पताल को पुनर्जीवित करने और प्रशिक्षण की जरूरत
बहुत से इतिहासकारों ने कहा है और मैने भी सुना है “जो इतिहास नहीं जानते वो अभिशापित हैं” अगर हम करोना महामारी, आपदा प्रबंधन और उस से उत्पन्न आगरा शहर की समस्यों का अध्ययन करें तो एक अलग ही अंदाज दिखता है। शायद यह भी सच है के “इतिहास अपने आप को दोहराता है”। हर सदी में आपदा आगरा में दस्तक देती रही है। अगर हम 19वीं सदी से 21वीं सदी का अध्ययन करें तो हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। बहुत कुछ बदला पर समय के साथ हम अपनी आपदाओं से लड़ने के हुनर को भूल गए और जिन्दगी की दौड़ में खो गए। अब शोर मचा रहे हैं।
1.“चौरान्वी” अकाल
1837-38 का साल “सूखे” पड़ने के कारण आगरा के 220 सालों का सब से भयावह समय था। सूखा जनमानस में “चौरान्वी” के नाम से जाना जाता था। इस नामकरण की वजह वर्ष 1838 के अनुरूप संवत कैलेंडर 1894 था। उस समय कि सूचना के अनुसार आठ लाख लोगों की जान गयी थी। साथ ही बहुत ज्यादा पशु मरने के कारण आकंडा रखना संभव नहीं था। आगरा उस समय “नार्थ वेस्ट प्रोविंस” की राजधानी था और बहुत बड़ा जिला भी. सूबे के अंग्रेज शासन और प्रशासन का बहुत अहम् शहर था। सूखा पड़ने से कॉलरा,फीवर और आमातिसार-संबंधी बीमारियों से भी आगरा जूझा था। उस समय समस्या यह नहीं थी के भोजन कैसे मिलेगा, अपितु खाने के लिए भूखे लोगों को कैसे भोजन तक लायें या सबसे सस्ते और सबसे अधिक संभव तरीके से उनके लिए भोजन उपलब्ध करवाया जाये। गेंहू महंगा हो गया था। सरकार ने राहत सिर्फ ह्रष्ट-पुष्ट और सक्षम को ही प्रदान की थी, जबकि अपाहिज, अक्षम और अनाथ को सार्वजनिक दान पर छोड़ दिया था। उस वक्त भी भुखमरी और उत्प्रवास के कारण लोगों ने पलायन किया था। यह आगरा के लिए दशक का गंभीर आर्थिक गिरावट वाला समय भी था। किसानों ने आगरा शहर में सराफा, पीतल के बर्तन, निम्न दर्जे के कपडे और शराब आदि खरीदना बंद कर दिया था।
शासन ने उठाये थे ये कदम
तब बहुत से कार्य आपदा को सँभालने के लिए किये गए। तब एक स्वैच्छिक संगठन “आगरा रिलीफ सोसाइटी” का गठन, अकाल राहत के लिए किया गया था। स्थानीय अनाज व्यापारी इसके महत्वपूर्ण सहभागी थे। दान के पैसे का सही उपयोग करने के लिए स्वैच्छिक संगठन की अनेक उपसमितियां बनायीं गयी थीं। अकाल पॉलिसी का उस समय के शासन ने पहली बार गठन किया था, जो पूरे देश और समय-समय पर उन्नयन के साथ बहुत लम्बे समय तक भारत सरकार की भी पॉलिसी रही।
आगरा में चैरिटी अस्पतालः उस समय के आगरा के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर चार्ल्स मेटकाल्फ ने अपने पैसे से नाई की मंडी में चैरिटी हॉस्पिटल स्थापित किया था। उसके पहले सिविल सर्जन डंकन थे और डॉ. गणेश लाल उनके सहायक के रूप में तैनात किए गए थे।
पानी की कमी को दूर करने के लिए “कैनाल सिस्टम” बनाया जो आज तक मौजूद है। १९८० तक आगरा शहर में भी कैनाल को देखा जा सकता था, लेकिन विकास के नाम पर बहुत कुछ जायज और नाजायज़ बदलाव आगरा में हुए। यह कैनाल सिस्टम नेविगेशन और सिंचाई के लिए उपयोग में आता था। साथ ही सड़क बनाने का,टेलीग्राफ सिस्टम लागू किया गया,रेलवे का भी कार्य शुरू हुआ और बहुत से अन्या कार्य भी क्रियान्वित किये गए। उस समय दो समाज सुधार के महत्वपूर्ण कार्य हुए – सती प्रथा और कन्या भ्रूण हत्या को खत्म करने का कानून बना।
2.बूबोनिक प्लेग का काल 1826 -1921
इस काल में प्लेग से 12 मिलियन लोगों की जान गयीं। यह संक्रामक रोग था। जनता में न फैले इसके लिए एकांत और बाहरी संगरोध शिविर लगाये गये। प्लेग संक्रमित लोगों को खोजने के लिए प्रशासन और पुलिस को गाँव-गाँव में लगाया गया था। औचक निरीक्षण, रेलयात्रा पर बारीकी से निगरानी रखी गयी। संक्रमित मिलने पर अस्पताल में भर्ती कराकर इलाज करवाया गया।
महामारी आपदा अधिनियम 1897
इस दौरान सबसे पहले “महामारी आपदा अधिनियम 1897” लाया गया जो आज तक लागू है। इस एक्ट में सेक्शन 188 के तहत संक्रमण न फैलने में सरकार का सहयोग न करने पर लागू होता है। आज भी मुकदमे कायम किये गए हैं।
श्री क्षेत्र बजाजा कमेटी
1885 में आगरा में श्री क्षेत्र बजाजा कमेटी का गठन ” सर्व भूताहिते रताः ” को कर्म सूत्र बनाकर हुआ। कमेटी की स्थापना सर्वप्रथम असहाय एवं गरीब लोगों के लिए “भोजन सेवा” के साथ हुयी थी। समिति ने आयुर्वेदिक औषधालय की भी स्थापना की थी। लागत मूल्य पर दाह संस्कार सामग्री एक ही स्थान पर उपलब्ध कराने की सेवा से श्री क्षेत्र बजाजा कमेटी को एक विशिष्ट पहचान मिली। ऐसा माना जाता है के संक्रमण के दौरान अत्यधिक म्रत्यु होने से, प्रशासन ने नागरिक संगठनों से दाह संस्कार के लिये मदद मांगी थी। उस समय श्री क्षेत्र बजाजा कमेटी के योगदान की पूरी सम्भावना है। श्री क्षेत्र बजाजा कमेटी आज भी पूरी निष्ठा के साथ कार्यरत है।
संक्रामक रोग अस्पताल
संक्रामक रोग अस्पताल इस काल में इस हॉस्पिटल की स्थापना हुई जो कि जनस्वास्थ्य से संबधित एक महत्वपूर्ण अवस्थापना थी। यह शाहगंज में आज भी जर्जर अवस्था में ह।. इस का सञ्चालन म्युनिसिपल कारपोरेशन के पास था और आज भी है। इसमें एक डॉक्टर और कम्पाउण्डर और ३० बेड निशुल्क इलाज के लिए उपलब्ध थे।
अन्य स्वास्थ्य संस्थान
उस काल में स्थापित मानसिक आरोग्यशाला, गांधी कुष्ठ आश्रम, लेडी लायल हॉस्पिटल (महिला चिकिसलय) आदि वे पुराने स्वास्थ्य संबधी प्रतिष्ठान हैं, जिन्हें मौजूदा जनस्वास्थ्य सुविधाओं को उपलब्ध करवाने वाली सुविधाओं को संभव करवाने का ढांचागत आधार माना जा सकता है। लेकिन संक्रामक रोग अस्पताल को निष्क्रिय करने में किन-किन लोगों का योगदान है, इस पर आज चर्चा करना उपयुक्त नहीं होगा, पर आज के हालत देखकर, इस अस्पताल का फिर से शुरू होना बहुत ज़रूरी है। अब इस अस्पताल को बड़ा और संक्रामक रोग का इलाज करने वाले डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ और अन्य स्टाफ जो मेडिकल भाषा में एक्टिव और पैसिव हैं, उनके लिए उचित रहने का हॉस्टल भी बनाया जाये। जिस तरह से कोरोना संक्रमण फ़ैल रहा है और जब तक बचाव का टीका नहीं बनता, तब तक इस अस्पताल की जरूरत रहेगी। जिस तरह नए-नए संक्रामक रोगों के पनपने से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता, उसी तरह रिसर्च की भी जरूरत होगी। इस अस्पताल में संक्रामक रोगों का रिसर्च सेंटर भी प्रदेश और केंद्रीय सरकारों के सहयोग से स्थापित किया जाना चाहिए।
संक्रामक रोग अस्पताल पुनर्जीवित हो
अब आगरा किसी भी प्रोविंस की राजधानी नहीं है,पर राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय महत्त्व का ऐतिहासिक शहर है। यहां पर्यटन और पर्यटन सम्बंधित प्रमुख उद्योग हैं। छवि सुधारने के लिए समग्र प्रयास करने होंगे। हमारे पास इतिहास और सरकारी दस्तावेजों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। ऊपर दिए गए विवरण में बहुत कुछ है जो आज के अनुभव के अनुरूप है। संक्रामक रोग अस्पताल को दुबारा शुरू करना चाहिए। आगरा में कुष्ठ, टीबी और मानसिक रोगों के राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय स्तर के प्रतिष्ठान हैं।
कैनाल सिस्टम
कैनाल सिस्टम को पुख्ता कर पर्यावरण को मजबूती देनी चाहिए। आगरा में टूरिज्म इंडस्ट्री महत्वपूर्ण है, टूरिस्ट को आकर्षित करने के लिए कैनाल में नेविगेशन के लिए फिर से अन्वेषण करना चाहिए. कैनाल पर नौका विहार उन पर्यटकों के लिए अवसर होगा जो वेनिस का सस्ते में आनंद लेने के लिए आगरा आयें।
सूरत से सीखें
प्रशासन, पुलिस और आम जनता के बीच तालमेल बैठाने के लिए कारगर कदम उठाने पड़ेंगे। आम नागरिक अपराधी नहीं है और आपदा के समय लाठी समस्या का समाधान नहीं है। प्रशासन और पुलिस को आम नागरिक को साथ लाने का प्रयास करना होगा। देश में ऐसा उदहारण सूरत शहर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दिशा-निर्देश पर उस समय के पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना, आईपीएस ने कायम किया था जो आज भी है। उन्होंने सिविल सोसाइटी के साथ मिल कर CCTV निगरानी के साथ “hawak eye” और ट्रैफिक मैनेजमेंट का सिस्टम खड़ा किया था। उत्तर प्रदेश पुलिस, आगरा (या प्रदेश के कवल शहरों ) को समझते हुए सूरत मॉडल पर आगरा मॉडल पर कार्य करे। मेरा मानना है के प्रशासनिक और पुलिस ट्रेनिंग में आपदा और सामाजिक संगठनों के साथ समन्वय पर व्यापक प्रशिक्षण शुरू से ही देना होगा।
सामाजिक संगठनों को प्रशिक्षण दिया जाए
आपदा प्रबंधन एक्ट २००५ को पूर्ण रूप से लागू कर “डिस्ट्रिक्ट आपदा प्रबंधन प्राधिकरण” को एक्टिव रोल में लाना होगा। नगर निगम और जनता द्वारा चुने हुए पार्षदों को आपदा प्रबंधन एक्ट २००५ के अनुरूप समय-समय पर उचित प्रशिक्षण दे कर तैयार करना होगा। इस एक्ट के अनुसार सिविल सोसाइटी और विभिन्न सामाजिक संगठनों को भी उचित प्रशिक्षण देने का प्रावधान है। कोरोना आपदा में सामाजिक संगठनों ने भरपूर कार्य कर प्रशासन को वाहवाही लेने का पूरा पूरा मौका दिया है। समय की सब से अच्छी बात है कि कैसा भी हो बीत जाता है, पर समझदार सीख कर आगे आने वाली आपदा के लिए आज से तैयारी शुरू कर देते हैं।
प्रस्तुतिः अनिल शर्मा, सचिव, सिविल सोसाइटी आगरा
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