इन चार कारणों से बिगड़ी प्रशांत किशोर और कांग्रेस की बात…

इन चार कारणों से बिगड़ी प्रशांत किशोर और कांग्रेस की बात…

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कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व के साथ एक के बाद एक ताबड़तोड़ बैठकें, राष्ट्रीय स्तर पर ग्रैंड ओल्ड पार्टी का खोया रुतबा वापस दिलाने के लिए 600 स्लाइड्स का ‘ब्लूप्रिंट’, दल का हिस्सा बनने की साफ बेचैनी और उसका बेहिचक इजहार…प्रशांत किशोर की इस बार कांग्रेस में एंट्री तकरीबन तय मानी जा रही थी। किसे पता था कि एंटीक्लाइमैक्स दिखेगा। पीके ने पार्टी का ऑफर ठुकरा दिया। कांग्रेस ने भी पार्टी के लिए उनकी चिंताओं, सुझावों और कोशिशों के खातिर शुक्रिया कह अपने ‘शुभचिंतक’ से दूरी बना ली। लेकिन अंदरखाने आखिर ऐसा क्या हुआ जो पीके और कांग्रेस की बात बनते-बनते रह गई?
आइए जानते हैं इसकी इनसाइड स्टोरी
प्रशांत किशोर कांग्रेस में खुद के लिए जो भूमिका चाह रहे थे, पार्टी उसके लिए तैयार नहीं थी। पीके कुछ ऐसा चाह रहे थे जो कांग्रेस के लिए पचा पाना मुश्किल हो रहा था। उनके और कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के बीच कई दौर की बातचीत हुई और कोई बीच का रास्ता निकालने की भी कोशिश हुई लेकिन बात नहीं बन पाई। अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में उन 4 पॉइंट्स के बारे में बताया है जिन पर पीके और कांग्रेस में बात नहीं बन पाई और एक बार फिर पेशेवर चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की ग्रैंड ओल्ड पार्टी में एक समय तय दिख रही एंट्री पर बैरिकेड लग गया।
1- पार्टी में खुद के लिए नंबर दो का रुतबा चाहते थे पीके
एचटी की रिपोर्ट के मुताबिक प्रशांत किशोर चाहते थे कि वह सीधे पार्टी अध्यक्ष को रिपोर्ट करें। जबकि कांग्रेस चाहती थी वह ‘मिशन 2024’ के लिए बनने वाले पार्टी के एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप का हिस्सा बनें। पीके खुली छूट चाह रहे थे जो एम्पावर्ड ग्रुप के सदस्य के तौर पर तो मुमकिन नहीं था। इसमें तो उनकी भूमिका महज एक सलाहकार तक सीमित हो जाती जबकि वह अहम मसलों पर फैसले लेने की ताकत चाहते थे। कांग्रेस को ये मंजूर नहीं था।
2- कम्युनिकेशन पर पूरा कंट्रोल, टिकट वितरण में भूमिका
प्रशांत किशोर पार्टी के पूरे कम्युनिकेशन सिस्टम पर अपना कंट्रोल चाहते थे। वह उन डेटा तक अपनी पहुंच चाहते थे जिनके आधार पर पार्टी अहम फैसले लेती है। इतना ही नहीं, वह टिकट वितरण और उम्मीदवार तय करने की रणनीति में भी एक तरह से खुद के लिए वीटो पावर चाहते थे। दूसरी तरफ कांग्रेस का रुख ये था कि अगर पीके को पूरे कम्युनिकेशन सिस्टम और टिकट वितरण का अधिकार दे दिया गया तो ये पार्टी में दूसरों की भूमिका का अतिक्रमण होगा। इस तरह तो केंद्रीय चुनाव समिति और प्रदेश कांग्रेस समितियां तक अप्रासंगिक हो जाएंगी।
3. सहयोगी दल तक खुद तय करना चाहते थे पीके
प्रशांत किशोर चाहते थे कि कांग्रेस अलग-अलग राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन करे। महाराष्ट्र, बिहार जैसे राज्यों में पुराने सहयोगियों से तौबा करे। एचटी ने अपनी न्यूज़ रिपोर्ट में बताया है कि पीके चाहते थे कि कांग्रेस के. चंद्रशेखर राव, जगन मोहन रेड्डी और ममता बनर्जी के साथ गठबंधन करे और इसके लिए वह खुद बातचीत का नेतृत्व करना चाहते थे। पीके के मुताबिक नरेंद्र मोदी को हराने के लिए ये जरूरी है। कांग्रेस इसके लिए तैयार नहीं हुई। उसका रुख ये रहा कि इस तरह के गठबंधन से तमाम राज्यों में पार्टी को फिर से अपनी जड़ें मजबूत करने की संभावनाओं को झटका लगेगा।
4. पीके का फोकस सिर्फ 2024 लोकसभा चुनाव पर था, राज्यों के चुनाव पर नहीं
प्रशांत किशोर चाहते थे कि सारा फोकस 2024 के लोकसभा चुनाव पर हो जबकि कांग्रेस चाहती थी कि फोकस 2024 के पहले इस साल और अगले साल होने वाले गुजरात, हिमाचल जैसे राज्यों के विधानसभा चुनावों पर भी हो। कांग्रेस का मानना था कि राज्यों के चुनाव में सफलता मिलने से लोकसभा चुनाव से पहले कार्यकर्ताओं का भी हौसला बढ़ेगा लिहाजा स्टेट इलेक्शंस को नजरअंदाज करना ठीक नहीं।
इन्हीं 4 पॉइंट्स पर बात अटक गई। रही सही कसर पीके की केसीआर से मुलाकात और IPAC-TRS के बीच हुई डील ने पूरी कर दी। टीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष और तेलंगाना के मंत्री केटी रामा राव ने तो हाल ही में कहा था कि कांग्रेस बेकार की संस्था रह गई है। तेलंगाना में फिर से अपनी बुनियाद मजबूत करने के लिए हाथ-पैर मार रही कांग्रेस को पीके और टीआरएस की डील नागवार तो गुजरनी ही थी।
-एजेंसियां