वैराग्य निधि महाराज

गर्भ संस्कार पर जैन साध्वी वैराग्य निधि का जबर्दस्त व्याख्यान, आपको चौंका सकता है उनका ज्ञान

REGIONAL RELIGION/ CULTURE

Dr Bhanu Pratap Singh

Agra, Uttar Pradesh, India. आगरा के प्रताप नगर में वैदिक गर्भाधान संस्कार एवं मैटरिनटी होम प्रकल्प का निर्माण किया जा रहा है। यहां गर्भ संस्कार दिया जाएगा। इस तरह का यह विश्व का पहला प्रकल्प है। इसके निर्माणाधीन भवन में आगरा विकास मंच और जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्रीसंघ ने गर्भ संस्कार विषय पर जैन साध्वी वैराग्य निधि महाराज का प्रवचन कम व्याख्यान रखा था। इसका आमंत्रण आया तो मैं चौंक गया। मैं सोचने लगा कि जिस जैन साध्वी का कभी वैवाहिक जीवन से कोई नाता नहीं रहा है, वह भला गर्भ संस्कार जैसे विषय पर क्या बोल सकती हैं? हालांकि हमें साधुओं के ज्ञान पर कई शंका नहीं करनी चाहिए लेकिन पत्रकार होने के नाते शंका करना स्वाभाविक है। बस इसी का समाधान करने के निमित्त भीषण उमस के बीच स्कूटी से पहुंच गया। हाथों में दस्ताने पहन रखे थे ताकि हाथ और काले न पड़ जाएं।

 

परमवदुषी जैन साध्वी वैराग्य निधि महाराज बाल्यकाल से ही धार्मिक वृत्ति की हैं। इसलिए अत्यधिक कठिन साधु जीवन अपना लिया। वे नंगे पांव ही चलती हैं। किसी वाहन का प्रयोग वर्जित है। कुछ भी संग्रह नहीं। जप, तप, ध्यान, धारणा में रत रहती हैं। श्वेत वस्त्र धारण करती हैं। हस्त, मुख और पाद ही परिलक्षित होते हैं। एक छड़ी साथ में रखती हैं। वे समाज को संस्कारित कर रही हैं। लोगों में धर्म की प्रवाहना कर रही हैं। मैंने उनके प्रवचन गतवर्ष भी सुने थे। जब वे बोलती हैं मंत्रमुग्ध कर देती हैं। लेकिन मन में सवाल यही था कि गर्भ संस्कार पर व्याख्यान कैसे दे सकती हैं?

 

वैराग्य निधि महाराज साहब का नियत समय पर उनका आगमन हुआ। श्रद्धालुओं ने जयकारा लगाया। सब उनके सम्मान में झुक गए। उन्होंने सबका सम्मान सहजता के साथ स्वीकार किया। वे कुर्सी पर नहीं बैठती हैं। उनके लिए तख्त का इंतजाम किया गया था। तख्त पर भी कई बिछावन नहीं होती है। उन्होंने तख्त पर ही छड़ी रखी और विराज गईं।

राजकुमार जैन
जैन साध्वी का परिचय कराते आगरा विकास मंच के अध्यक्ष राजकुमार जैन।

सबसे पहले अपना कारोबार छोड़कर धर्मसेवा में लीन और जाने-माने समाजसेवी आगरा विकास मंच के अध्यक्ष राजकुमार जैन ने वैराग्य निधि महाराज का जयकारा लगवाया और कहा- ‘यहां गर्भ संस्कार की व्यवस्था की गई है। इस प्रकल्प के लिए अशोक गोयल का आगरा ऋणी है।’ वैराग्य निधि का परिचय में बोलना शुरू किया- ‘जैन संत परिचय के मोहताज नहीं होते हैं।’ बीच में ही जैन साध्वी ने टोका कि परिचय की आवश्यकता नहीं है। फिर भी राजुकमार जैन नहीं माने। कहा- ‘आपने आर्कीटेक्चर समेत कई डिप्लोमा किए। मोहभरे जीवन में मन नहीं लगा। वैराग्य की इच्छा हुई लेकिन जैन धर्म में परिवार की आज्ञा के बिना साधु नहीं बन सकते हैं। जब परिजनों का ममत्व कम हुआ और लगा कि गृहस्थ जीवन में नहीं रहेंगी तो परिवार ने आज्ञा दी। सांसारिक पिता आज ही प्रातः रायपुर से पधारे हैं।’ पिता ने खड़े होकर अभिवादन किया। राजकुमार जैन ने उनसे कहा- ‘मैं बारम्बार नमन करता हूँ कि आपने वैराग्य निधि महाराज जैसी विभूति भारतवर्ष को दी है।’

 

फिर आईं डॉ. सुनीता गर्ग। उन्होंने आशा भरी बात कही– भौतिकता की दौड़ के कारण मध्यकाल में गर्भ संस्कार की विधि विलुप्त हो गई। पैसा और डिग्री होना ही सफलता है, ऐसा लोग मानने लगे लेकिन यह सही नहीं है। संसार भौतिकता को छोड़ रहा है और आध्यात्मिक संसार की स्थापना होनी शुरू हो गई है, जिसमें हर व्यक्ति सचेत रहेगा। जिसकी आध्यात्मिक शक्तियां उन्नत हैं, वही समृद्ध है। इसमें पूरे विश्व को भारत नेतृत्व देगा। सबको सिखाना होगा। पाश्चात्य के लोग ड्रग्स लेकर स्वयं को बर्बाद कर रहे हैं। लोग भारत की ओर देख रहे हैं कि मार्ग दिखाए। ऐसी आध्यात्मिक आत्माएं हैं जो भारत भूमि पर जन्म लेने के लिए ताक रही हैं ताकि विश्व को रास्ता दिखाएं। उन्हें ऐसे गर्भ की जरूरत है जो धारण कर सकें। आहार, योग, ध्यान, बिना दवा के समस्याएं दूर करना, सामान्य प्रसव की सलाह यहां दी जाएगी। इमरजेंसी की सुविधा भी यहां उपलब्ध होगी। गर्भ में संस्कार दे दिए तो वह जहां भी जाएगा प्रेम और आनंद को बरसाए। वह वास्तव में कुलदीपक होगा।

 

फिर ध्वनिवर्धक लेकर आए इस प्रकल्प के कर्ताधर्ता अशोक गोयल। उन्होंने कहा- गर्भ संस्कार से जो बच्चा संसार में आया है, उसका परिवार भी हमारे बीच आया है। मां ने शिशु को महाराज साहब के समक्ष रखा और आशीर्वाद दिलाया। आशीर्वाद देते समय क्या कहा, यह मैं सुन नहीं पाया। केशवकुंज, प्रतापनगर निवासी दीपक कपूर ने अवगत कराया कि बच्चा गर्भ में उल्टा था। मीता जैन ने कुछ मंत्र बताए जिनका उच्चारण किया। 15 दिन में ही बच्चा सीधा हो गया। तीन दिन में हॉस्पिटल से छुट्टी हो गई। दीपक कपूर पहली बार मीता जैन से मिले। अशोक गोयल ने बताया कि आईएएस अधिकारी डॉ. राजेन्द्र पैंसिया ने गर्भ संस्कार पर पुस्तक लिखी है। लव कुश का जन्म गर्भ संस्कार से हुआ था।

 

वैराग्य निधि महाराज ने 26 मिनट तक गर्भ संस्कार विषय पर व्याख्यान दिया। मैं चौंक गया। इतना विशद ज्ञान तो सनातन धर्म के जानकारों को भी नहीं होगा। जैन धर्म के बारे में ज्ञान होना स्वाभाविक है क्योंकि वे जैन साध्वी हैं लेकिन सनातन धर्म के तमाम उदाहरण देकर बताया कि गर्भ संस्कार से किस तरह से समाज में बदलाव आता है। वैराग्य निधि महाराज का वैवाहिक जीवन से कोई नाता नहीं रहा है। इसके बाद भी वैवाहिक जीवन का गूढ़ से गूढ़ रहस्य भी उन्हें ज्ञात है, जो किसी अचम्भे से कम नहीं है। उन्होंने जो बातें कहीं वे इस प्रकार हैं-

 

भारत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व को इस प्रकल्प की अत्यंत आवश्यकता है। यह सच है कि अमेरिका की जीडीपी ज्यादा है लेकिन यह भी सच है कि क्राइम रेट भी ज्यादा है। आर्थिक रूप से, बाह्य दृष्टि से कितना भी विकास हो जाए, किन्तु इसकी नींव आत्मा है। जब एक आत्मा का गर्भ में पदार्पण होता है, तब शिकायत होती है कि बच्चा हमारी ग्रिप में नहीं है। हम यह भूल जाते हैं भूल हमारी थी कि जब उसे शिक्षित किया जाना था, तब हमने इग्नोर किया। माता ऐसी पाठशाला है जिससे शिशु 24 घंटे शिक्षा संस्कार, समृद्धि प्राप्त करता है। जितनी संवेदनशीलता अधिक होती है, घटना का प्रभाव उतना ही अधिक होता है। एक मां और शिशु की तुलना करें तो मां और शिशु के मन में बहुत सी भावनाएं होती हैं। गर्भ में शिशु को समझ तो होती है लेकिन प्रकट नहीं कर सकता। विश्व में शायद एक ही ऐसा उदाहरण है भगवान महावीर का जिन्होंने गर्भ में मां त्रिशला की वेदना का विचार किया।

जैन महिला
जैन साध्वी वैराग्य निधि का व्याख्यान सुनती महिलाएं

बहुत प्रसिद्ध उदाहरण है अभिमन्यु का। दुर्योधन और उसके 100 भाई आसुरी प्रवृत्ति दुनिया में फैला रहे थे। देवताओं ने चंद्रमा से आग्रह किया। विश्व कल्याण के आग्रह के चलते चन्द्रमा ने अपने पुत्र वर्चा को अभिमन्यु के रूप में पृथ्वी पर भेजा। वे जब मां के गर्भ में थे, चक्रव्यूह तोड़ने की कला सीख ली। मां सुभद्रा को नींद आ गई और निकलना जान न पाए। एक समय था जब मुगल भारत आए, औरंगजेब आदि हिन्दुओं को बलात मुस्लिम धर्म में परिवर्तित कर रहे थे। उस समय माता जीजाबाई ने गर्भ में रामायण का नियमित पारायण किया तो शिवाजी आए। मां जीजाबाई के मन में रामायण के चित्र अंकित होते चले गए। 16 वर्ष की उम्र में शिवाजी ने औरंगजेब के आतंक से मुक्ति दिलाई, उसका श्रेय जीजाबाई को जाता है।

 

जब शिशु गर्भ में होता है तो तभी उसकी शिक्षा शुरू हो जाती है। गर्भ में दिए गए संस्कार सदा-सदा के लिए होते हैं। गर्भवती महिलाएं मोबाइल फोन से दूर रहें। मोबाइल से नुकसानदायक तरंगे निकलती हैं। मोबाइल से कान के पर्दे खराब हो जाते हैं। जिस मां की आँखें घंटों स्क्रीन पर हों, उसके शिशु पर प्रभाव ठीक नहीं होगा। प्रातःकाल सूर्य का दर्शन करते समय ऑक्सीजन अधिक होती है। नेचुरल चीजें करें तो सप्लीमेंट लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। 10 वर्षों से सीजिरियन डिलीवरी अधिक होने लगी है, कारण यह है कि मां की आरामतलबी। घर का काम स्वयं करें।

 

राम राज्याभिषेक के समय हँसते-हँसते वन में चले गए। यह संस्कार कहां से आते हैं? मां ही इस तरह के संस्कार दोती है। बैलूर मठ का उदाहरण है कि विदेशी जोड़े के सामने ही स्वामी विवेकानंद ने एनसाइक्लोपीडिया कंठस्थ कर लिया। स्वामीजी ने पेज नम्बर के साथ पूरी बात बता दी। स्वामी जी ने कहा- यदि आज मैं कुछ भी हूँ तो उसका श्रेय मेरी मां को जाता है। मेरी मां ने एक वर्ष तक भगवान शंकर की आराधना की। अंतःप्राणों से प्रार्थना करती थीं। गर्भ संस्कार से बदसूरत महिला भी सुंदर पुत्र को जन्म दे सकती है। ऐसा हुआ है। विश्वास डिगना नहीं चाहिए। ज्वलंत इच्छा है तो कुछ भी प्राप्त कर सकते हैं। जैसे हम देखते हैं वैसा प्रिंट हमारे मनोमस्तिष्क में बनता है। जैसा हम सोचते हैं, उसी के अनुसार केमिकल रिएक्शन हमारे बॉडी में होते हैं। घर का शुद्ध सात्विक आहार की बहुत बड़ी भूमिका है।

 

अंतिम संस्कार से पूर्व संन्यास संस्कार भी है, जिसे हम भूल गए हैं। ‘करूंगा’ ध्यान है, ‘मरूंगा’ भूल गया है व्यक्ति। संन्यास से पूर्व वानप्रस्थ होता है। मेरी सांसारिक माता ने बचपन से ही संस्कार दिए। कक्षा पांच तक धार्मिक कक्षाएं लीं। ऐसा कोई काम नहीं सिखाया जिसमें प्रोडक्टिव एनर्जी न हो। याद नहीं है कि मंदिर दर्शन के बिना कभी मुंह में पानी लिया हो। बचपन से धर्म के संस्कारों को इनबिल्ट कर दिया। ये संस्कार देने वाली मां होती है।

दुनिया का पहला अल्फाज है मां

सृष्टि की सबसे सुंदर कृति होती है मां

मां तूने तीर्थकरों को जना है,

ये सारा संसार तेरे ही दम से बना है

तू पूजा है मन्नत है मेरी

तेरे ही चरणों में जन्नत है मेरी

 

आज भी भारतीय संस्कृति का महत्व इसलिए है कि यहां श्रवण कुमार जैसे पुत्र आज भी हैं, जो अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं। अंतिम समय तक उनकी सेवा करते हैं और भार नहीं मानते हैं। ऐसे संस्कारों की नींव मां से मिलती है। माता मदालसा का उदाहरण है। (मदालसा विश्वावसु गन्धर्वराज की पुत्री तथा ऋतध्वज की पटरानी थी। इनका ब्रह्मज्ञान जगद्विख्यात है। पुत्रों को पालने में झुलाते-झुलाते इन्होंने ब्रह्मज्ञान का उपदेश दिया था। वे अनासक्त होकर अपने कर्तव्य का पालन करती जिसके फलस्वरुप उनके पुत्र बचपन से ही ब्रह्मज्ञानी हुए।) माता मदालसा ने अपने पुत्रों को संन्यासी बनाया और पति के आग्रह पर एक पुत्र को गर्भ संस्कार करके राजा के रूप में पैदा किया। मोदी जी (प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी) के कारण आज भारत का नाम विश्व में है। दुनिया जो भी कहे, जैसा भी कहे लेकिन सही नेता होता है तो देश की प्रगति होती ही है। सही नेता है तो देश का संचालन सही तरीके से होता है। धर्म केवल आत्मा के लिए नहीं होता है। सबसे पहले परिवार धर्म होता है, राष्ट्रधर्म होता है, देश के प्रति समर्पण होता है, तब जाकर आप आत्मा के लिए अर्ह होते हैं।

 

मां अगर नौ महीने बिस्तर पर रहेगी तो शिशु सीजेरियन होगा। कई बार मन के भय के कारण भी ऐसी घटना हो जाती है, जो नहीं होनी चाहिए। कुरुप महिला भी स्ट्रांग विल पॉवर, संगीत, कला, साधना, मंत्र से सुंदर शिशु जन सकती है। मां जैसा सोचेगी, शिशु वैसा ही बनेगा। यह इच्छा शक्ति का चमत्कार हता है। हिरण्यकश्यप के आंतक का खात्मा करने के लिए मां ने नारद जी के आश्रम में युग नायक प्रह्लाद को तैयार किया। जिस प्रकार शारीरिक विकास पर फोकस किया जाता है, उसी तरह से मस्तिष्क को सकारात्मक आहार देना चाहिए। हम आशावादी बनें। सुंदर सृष्टि की रचना अवश्य होगी।

 

ज्योतिषवेत्ता शिल्पा जैन ने कहा- अगर मां का शुभ संकल्प, शुभ विचार है तो वह युगपुरुष को जन्म देने की क्षमता रखती है। हमने एक कोर्स का नाम रखा है- डिजाइन योर चाइल्ड अकॉर्डिंग योर विश। मां मोदी और मदर टरेसा बना सकती है। नौ माह में हर माह किसी न किसी प्लेनेट से संचालित होता है। बच्चा जब गर्भ में आता है तो पहला माह शुक्र ग्रह से संचालित होता है। पहले महीने में लक्ष्मी की आराधना करें तो बच्चे में शुक्र ग्रह बलशाली होगा ही। अगर आप चाहते हैं कि बच्चा सरकारी क्षेत्र में जाए तो पांचवें महीने में सूर्य भगवान की आराधना करते हैं तो बच्चे में लीडरशिप क्वालिटी आएगी ही। आठवां माह संवेदनशील होता है। मां की लग्न और राशि से आठवां माह संचालित होता है। इसी कारण इसे संवेदनशील माना जाता है। राहु का प्रभाव होता है। बच्चे राजनीतिज्ञ और आईएएस बनाना है तो संबंधित ग्रह के अनुसार दान करना होगा। यह मेरा 20 वर्ष का अनुभव है। खुशी है कि आगरा में विश्व का पहला गर्भाधान संस्कार केन्द्र बन रहा है।

 

इस मौके पर वंदना, राजीव अग्रवाल, सुरभि,कल्पना अग्रवाल, शालिनी अग्रवाल, संगनी, विनय वागचर, संदेश जैन, ममता जैन, शालू जैन, संगीता सकलेचा, अंकिता चपलावत, विजय गोयल आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

Dr. Bhanu Pratap Singh