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राधास्वामी मत के गुरु दादाजी महाराज-5: कुलपति के दो कार्यकाल और वे ऐतिहासिक विदाई समारोह

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

आगरा विश्वविद्यालय के इतिहास में राधास्वामी मत के अधिष्ठाता दादाजी महाराज ही एकमात्र ऐसे शिक्षाविद हैं जिन्होंने इस उसी विश्वविद्यालय में दो बार कुलपति पद को संभाला। सन 1982 से 1985 तक तथा सन् 1988 से 1991 ईस्वी तक। सफलता के नवीन आयाम स्थापित किए। प्रतिबद्धता, अथक परिश्रम, समर्पण, निष्ठा, कर्तव्यपरायणता आदि गुणों से लबरेज दादा जी महाराज सर्वग्राह्य और गरीबों के मसीहा के रूप में अपने कुलपति कार्यकाल में प्रसिद्ध हुए। उन्होंने सैकड़ों लोगों को रोजगार दिया और छात्रों की समस्याओं को अपनी समस्या समझ कर उसका तुरंत निदान किया। दादाजी महाराज के कुलपतित्व के दोनों कार्यकाल स्वर्ण अक्षरों में लिखे जाएंगे। विश्वविद्यालय में उनके जैसा कुलपति पहले कभी नहीं हुआ।

 उनका एकमात्र ध्येय रॉबर्ट फ्रास्ट की इन पंक्तियों से प्रेरित था

द वुड्स आर लवली डार्क एंड डीप

बट आई हैव प्रोमाइजेज टु कीप

एंड माइल्स टो गो बिफोर आई स्लीप

एंड माइल्स टो गो बिफोर आई स्लीप

The woods are lovely dark and deep

But I Have Promises to Keep

And miles to go before I sleep

And miles to go before I sleep

उन दिनों वह हमेशा एक ही शेर दोहराया करते थे-

मेरी जिंदगी एक मुसलसल सफर है

कि मंजिल पर पहुंचा तो मंजिल बढ़ा दी..

दूसरे कार्यकाल के अंत में जो अभूतपूर्व विदाई उन्हें दी गई वह विश्वविद्यालय के इतिहास में चिर स्मरणीय रहेगी। कभी किसी कुलपति को इतनी शानदार एवं भावभीनी विदाई नहीं दी गई थी। विदाई समारोह दो हिस्सों में आयोजित हुआ। प्रथम समारोह के केएम मुंशी हिन्दी तथा भाषा विज्ञान विद्यापीठ में आयोजित किया गया, जहां आगरा विश्वविद्यालय के समस्त छात्र-छात्राओं ने दादा जी महाराज का अभिनंदन करते हुए उन्हें श्रेष्ठ शिक्षाविद तथा समाजसेवी के रूप में स्मरण किया और उनके कुलपति के दो कार्यकालों को सफलतापूर्वक पूरा करने को एक ऐतिहासिक उपलब्धि माना। सुलह-ए-कुल एवं नेहरू जन्म शताब्दी समारोह के आयोजन और राष्ट्रीय एकता और प्रगति को जन जन तक पहुंचाने के लिए उन्हें हार्दिक बधाई दी गई। उन्होंने दादा जी महाराज को आध्यात्मिक गुरु के रूप में ‘प्रेम और आस्था का संदेश दाता’ की उपाधि देकर उनका सम्मान किया।

समारोह का द्वितीय भाग 27 अप्रैल सन 1991 ईस्वी को विश्वविद्यालय के सीनेट हॉल में आयोजित किया गया, जिसमें तिल रखने को भी जगह नहीं थी। इस विदाई समारोह में विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेजों के प्राचार्य, शिक्षक, शिक्षक नेता, छात्र, विश्वविद्यालय कर्मचारी इत्यादि भारी संख्या में मौजूद थे। यह वह ऐतिहासिक क्षण थे जब विश्वविद्यालय अपने गौरवशाली कुलपति को दूसरी बार विदाई दे रहा था। आगरा विश्वविद्यालय के इतिहास में इस तरह का विदाई समारोह अपने आप में अनूठा था, अजूबा था।