Dadaji maharaj agra

राधास्वामी मत के गुरु दादाजी महाराज ने बताई पंजाब की खासियत

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

यहां के निवासियों ने अनेक कष्ट भोगे हैं फिर भी उन्होंने मैदान से पीछे हटना नहीं सीखा

हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा राधास्वामी (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य (Radhasoami guru Dadaji maharaj) और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं जो आगरा विश्वविद्यालय (Agra university) के दो बार कुलपति (Vice chancellor of Agra university)  रहे हैं। हजूरी भवन (Hazuri Bhawan, Peepal Mandi, Agra) में हर वक्त राधास्वामी (Radha Soami)  नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत (RadhaSomai faith) के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 5 अप्रैल 2000 को रेड रोड,रिजोर्ट्स, आसमखास बाग, सरहिन्द, जिला फतेहगढ़ साहिब (पंजाब, भारत) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज (Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने कहा- यहां पर यवनों अथवा अन्य विदेशियों के आक्रमण समय-समय पर खैबर और बोल दर्रों के रास्ते से होते रहे तब भी यहां के लोगों ने अपने धर्म, संस्कृति, मान्यताओं और परंपराओं को सुरक्षित रखा।


जीवन और मृत्यु के रहस्य की जानकारी

सिंधु घाटी की सभ्यता व प्राचीनतम सभ्यता है जहां का मानव सर्वप्रथम सभ्य और निपुण हुआ। उन अवशेषों को देखने से मालूम होता है कि हजारों वर्षों पूर्व से यहां पर खेती और कुटीर धंधे विकसित होते रहे। यहां के लोगों में ठोस रचनात्मक कार्य करने की शक्ति थी जो अपने आप में एक विशेषता थी। यहां की वाणी में माधुर्य और खिंचाव था। उसी सभ्यता ने देश को एक सूत्र में बांधा था। यहीं पर जती, तपी, संन्यासी, योगी और ज्ञानी पैदा होते रहे जिन्होंने तब से आज तक न जाने कितने प्रयोग जीवन और मृत्यु के रहस्य की जानकारी के लिए किए हैं।

भक्ति और प्रेम की भूमि भी

दरअसल यह खोज की स्थली है। इस साधना और खोज स्थली- पंजाब को आप भूल गए हैं। यहां के निवासियों ने अनेक कष्ट भोगे हैं फिर भी उन्होंने मैदान से पीछे हटना नहीं सीखा। यह शूरवीरों और कर्मवीरों की भूमि है। यदि ज्ञान की भूमि है तो भक्ति और प्रेम की भूमि भी है। यहां की पांचों नदियों की धाराओं में छिपी हुई जो तरंग है उसमें बड़े-बड़े उछाल लिए हैं और उमंग भरी बातें कही हैं। निराशा के स्थान पर आशा का संचार किया है और सब से प्रेम करना सिखाया है। इंसानियत के बीज कहीं से पैदा हुए तो इसी धरती से हुए हैं।

पंजाब की भूमि में भारतीयकरण करने की एक अद्भुत शक्ति

यहां पर यवनों अथवा अन्य विदेशियों के आक्रमण समय-समय पर खैबर और बोल दर्रों के रास्ते से होते रहे तब भी यहां के लोगों ने अपने धर्म, संस्कृति, मान्यताओं और परंपराओं को सुरक्षित रखा। बाहर से जो आया वह पहले पंजाब में आया। उसके बाद भारत के अन्य हिस्सों में गया। हूण, कुषाण, शक और ग्रीक आदि आए। इन सबका निरंतर भारतीयकरण होता गया क्योंकि पंजाब की भूमि में भारतीयकरण करने की एक अद्भुत शक्ति है। इस भूमि में अपनाने की ताकत थी और जो मूल्य इस सभ्यता ने उजागर किए, उनसे कभी समझौता नहीं किया। (क्रमशः)