dadaji maharaj

संत का निंदक राज से हीन, संत का निंदक दुखिया और दीनः दादाजी

NATIONAL REGIONAL RELIGION/ CULTURE

हजूरी भवन, पीपलमंडी, आगरा राधास्वामी मत का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं, जो आगरा विश्वविद्यालय के दो बार कुलपति रहे हैं। हजूरी भवन में हर वक्त राधास्वामी नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण 19 अक्टूबर, 1999 को बी-77, राजेन्द्र मार्ग, बापूनगर, जयपुर (राजस्थान) में सतसंग के दौरान उन्होंने बताई गुरु की महिमा।

हजूर महाराज ने अपनी बचन बानी में बार-बार एक बात कही है कि कि सतसंगी का बरताव दीनता और अधीनता का होना चाहिए। आप लोगों का जो रिश्ता है वह प्रेम का है और जो  राज्य है वह प्रेम का  राज्य है। उसमें आपाधापी और अवसरवाद नहीं है। कर्तव्य विशेष है, अधिकार नहीं। आप अपना कर्तव्य देखें, दूसरों से क्यों आशा करते हैं। अगर वास्तव में परमपुरुष पूरन धनी हजूर राधास्वामी दयाल को तुम सच्चे दिल से मानते हो तो तुम्हारे अंदर आप से आप दीनता आनी चाहिए। दीनता की पहचान यह है कि अगर किसी ने क्रोध की बात कह दी तो उसको बर्दाश्त करें, क्रोध को न भड़काएं नुक्ता-चीनी न करें और किसी की बात को न फैलाएं यानी दीनता का मतलब है नम्र होकर चलना। लेकिन नम्र कहां होना है- संत सतगुरु के सामने। जब उनके सामने तुम दीन होगे तब वह दयालु होंगे, इसीलिए उनका नाम दीनदयाल है। जितने दीन होते जाओगे, उतनी ही दया के हकदार होते चले जाओगे। जब वह दया मिलेगी तो अपने आप ही शील आएगा यानी अपनी सुरत की अस्मिता को सुरक्षित रखोगे।

इस समय काल ने सुरत के साथ दुर्व्यवहार, अत्याचार और अन्याय कर रखा है। उससे हटाकर मालिक तुमको अपनी ओट में लाना चाहता है। इसलिए एक मिनट के लिए भी तुम्हारी आस्था कुलमालिक राधास्वामी दयाल के चरनों से नहीं हटनी चाहिए। अगर तुमको वक्त का गुरु मिल गया है और उनमें निश्चय और भाव पूरा आ गया है तो किसी आलोचना और निंदा के लिए कान ही नहीं देना चाहिए क्योंकि-

गुरु की निंदा नानका जन्म जन्म उत्पात।

संत की निंदक महा अतिताई

संत का निंदक टिकन न पाई।

संत का निंदक महा हत्यारा

संत का निंदक परमेश्वर मारा।

संत का निंदक राज से हीन

संत का निंदक दुखिया और दीन।

जो गुरु की निंदा करता है या सुन भी लेता है, तो वह कम अपराधी नहीं है।

(अमृत बचन राधास्वामी तीसरा भाग से साभार)