Dadaji maharaj agra

राधास्वामी मत गुरु Dadaji Maharaj के अनमोल बचन -86: वक्त का सतगुरु कौन?

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radha Soami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur former Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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हमको इरादा मजबूत इस बात का रखना है कि एक दिन राधास्वामी धाम मालिक कुल के चरनों में पहुंचा जाए और उसके लिए हमको सतगुरु की खोज करनी है। इसीलिए वक्त के सतगुरु की बात कही गई है। वक्त के सतगुरु से प्रीत होगी तो वक्त का सद्गुरु वही होगा और वही हो सकता है जो पहले आपकी प्रीत और प्रतीत राधास्वामी दयाल के चरनों में दृढ़ करवावे। जो राधास्वामी दयाल के चरनों में आपकी प्रीत और प्रतीत दृढ़ नहीं करवाता, जो अपने गुरु की महिमा नहीं गाता, क्या वह गुरु पदवी के लायक हो सकता है? जो अपने बलबूते चलेगा वह मारा जाएगा। सच्ची दीनता रखनी पड़ेगी। गुरु से प्रेम रखना पड़ेगा। प्रीत और प्रतीत पूरी और पक्की नहीं होगी तब तक काम नहीं चलेगा।

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हर बच्चे को हजूर महाराज को अपना माता-पिता-पितामह समझना होगा और अपनी मां और पिता का कहना मानना पड़ेगा। जो ऐसा नहीं करेगा वह मालिक को अप्रसन्न करेगा और मालिक की प्रसन्नता बहुत ही जरूरी है। यह समय कहते हैं कि प्रगतिशील है, प्रगति हो रही है लेकिन मैं यह देखता हूँ कि प्रगति की जगह पर अवनति हो रही है। संपूर्ण विश्व इस समय खतरे से खाली नहीं है और उस खतरे से आप भी सुरक्षित एक ही तरीके से हैं कि अगर आप राधास्वामी दयाल की सच्ची सरन कबूल करते हैं और कोई काम ऐसा कभी करने के लिए तैयार नहीं है जो उनको नापसंद हो। उनकी पसंद और नापसंदगी सिर्फ इशारों में मिलती है। आपको भजन के वक्त, सुमिरन के वक्त, ध्यान के वक्त यहां तक कि पोथी पढ़ने के वक्त भी बार-बार इंगित कर दी जाती है।