Swami Ji Maharaj dadaji maharaj

राधास्वामी गुरु दादाजी महाराज के अनमोल बचन -66: सतसंगी का सतसंगी के प्रति कैसा व्यवहार हो

PRESS RELEASE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radha Soami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur former Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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सतसंगियों में जाती प्रेम होना चाहिए और वह कैसे होगा? मालिक दया करेंगे लेकिन उन्होंने दया पाने का तरीका बताया है कि आप अभ्यास के वक्त उस दया को परख सकते हैं, आप सुमिरन के वक्त परख सकते हैं, आप सेवा के वक्त परख सकते हैं। न आप सेवा करते हैं, न भजन करते हैं, न ध्यान करते हैं और अपना मान चाहते हैं, यह सतसंगी के लिए शोभा नहीं देता। सतसंगी के हृदय में दुनियादारों के प्रति तो लगाव है लेकिन सतसंगी के प्रति नहीं। दुनियादारों से इस कदर बात करते हैं कि मन भर जाता है और सतसंगी के दर्द तथा तकलीफ की तरफ ध्यान भी नहीं देते हैं। प्रेम पत्र में हिदायत साफ-साफ लिखी हुई है- हमको हरेक के दर्द को महसूस करना होगा और खासकर सतसंगी भाई-बहन के दर्द और तकलीफ में साथ देना होगा। वास्तविक दिलासा देने वाले, सम्हाल करने, वाले रक्षा करने वाले, पहुंचाने वाले राधास्वामी दयाल हैं।

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सुरत का प्रेम तो विशिष्ट है जो सिर्फ उनसे हो सकता है जिनका शब्द खुला हुआ है लेकिन सुरत और मन के मेल से भी प्रेम हो सकता है, वह किया जा सकता है। जो प्रयास कर रहे हैं वह भी सब भाई -भाई हो सकते हैं, बहन-भाई हो सकते हैं। जरा अपने अंतर में उन कमजोरियों को दूर करने की कोशिश कीजिए। बाहर का दिखावा मालिक नहीं चाहता। जो सुरतवंत होता है उसके अंदर सुरत की शक्ति होती है, जिसके अंदर शब्द की शक्ति होती है उसका मन उस पर सवार नहीं हो सकता। बुद्धि-विवेक दिखाने के लिए बहुत से प्लेटफार्म है, वहां पर दिखाई भी जाती है लेकिन सत्संग में झुक कर चलना है। प्रीत-प्रतीत कुल मालिक राधास्वामी दयाल के चरनों में इतनी गहरी और मजबूत करनी चाहिए कि हम निंदकों से भी बचें, कपटियों से भी बचें। बहुत बचाव करना है और यह आसान नहीं है-

बहुत कठिन है डगर पनघट की

लेकिन देखो जब कोई होशियार संगी यानी सच्चे गुरु मिल जाते हैं तो कठिन से कठिन डगर को सहज और सरल बना देते हैं। तो घबराइए नहीं। वह सब दया और मेहर करेंगे। सबके कसूरों को माफ करेंगे लेकिन उनको ऊपर के तौर पर नहीं बल्कि अंतर से अंतर के तौर पर मानना होगा। जो यह कर लेगा उसका जन्म सफल हो जाएगा।