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हिन्दू धर्म के लिए बलिदान देने वाले गोकुला जाट की गाथा रोमांचित करने वाली, पढ़िए खबर विस्तार से

PRESS RELEASE

Agra, Uttar Pradesh, India. मुगल शासन के क्रूर शासकों से हिन्दू समाज, किसानों और महिलाओं की रक्षा करते हुए हंसते-हंसते अपने प्राणों का बलिदान करने वाले व आगरा (बृज क्षेत्र) की धरती पर जन्मे महान योद्धा वीर गोकुल सिंह जाट अब अनाम शहीद का दर्जा नहीं रहेंगे। उनके नाम से जल्द ही आगरा शहर में अष्ट धातु की एक विशाल प्रतिमा स्थापित की जाएगी। ये कहना है महापौर नवीन जैन का। नगर निगम आगरा के कार्यकारिणी कक्ष में प्रेस को संबोधित करते हुए महापौर नवीन जैन ने कहा कि भारत के इतिहास में ऐसे-ऐसे योद्धा हुए हैं, जिनकी वीरता पूरे देश के लिए आदर्श हो सकती है लेकिन बड़े दुर्भाग्य की बात है कि जानकारी के अभाव में, इतिहासकारों की अनदेखी या फिर तत्कालीन शासकों के स्वार्थवंश हम ऐसे वीर योद्धा को समय के साथ भूल जाते हैं या फिर उनकी गाथाओं के इतिहास को दरकिनार कर देते हैं। ऐसे ही एक महान योद्धा का नाम था गोकुल सिंह जाट। गोकुल सिंह कहीं ओर नहीं बल्कि बृज क्षेत्र की धरती पर ही 16वीं शताब्दी में पैदा हुए थे।

गोकुल सिंह मथुरा, वृन्दावन, गोवर्धन तथा हिंडौन और महावन की समस्त हिन्दू जनता, विशेषकर जाट समाज और किसान परिवारों के नेता थे। तिलपत की गढ़ी उसका केन्द्र थी। उस समय मुगल शासक ने लगभग पूरे देश पर अपना शासन कर लिया था लेकिन उत्तर प्रदेश का बृज क्षेत्र उन्हें हमेशा चुनौती देता रहा। उसकी एकमात्र वजह थी महान योद्धा गोकुल सिंह जाट। दिल्ली में बैठे मुगल शासकों ने कई बार युद्ध करके, छल-कपट का सहारा लेकर गोकुल सिंह जाट को हराने की कोशिश की लेकिन गोकुल सिंह जाट की वीरता के आगे उनकी एक न चली। जब कोई भी मुगल सेनापति उसे परास्त नहीं कर सका तो अंत में सम्राट औरंगजेब को स्वयं एक विशाल सेना लेकर युद्ध लड़ना पड़ा और गोकुल सिंह को सपरिवार बंदी बनाकर बृज क्षेत्र पर कब्जा किया। अगर आज मथुरा, वृन्दावन के मन्दिर और भारतीय संस्कृति की रक्षा का तथा तात्कालिक शोषण, अत्याचार और राजकीय मनमानी की दिशा मोड़ने का यदि किसी को श्रेय है तो वह केवल गोकुल सिंह जाट को है।

महापौर नवीन जैन ने बताया कि आगरे की कोतवाली के लंबे-चैड़े चबूतरे पर, हजारों लोगों की हाहाकार करती भीड़ के सामने, लोहे की जंजीरों में जकड़कर वीर गोकुला जाट को लाया गया और जनता का मनोबल तोड़ने के इरादे से बड़ी निर्दयता के साथ, उनके शरीर पर  कुल्हाड़ियों से वार किये गये जिससे उनके शरीर के विभिन्न हिस्सों से रक्त फुब्बारे के रुप में फूट पड़ा। गोकुल सिंह सिर्फ जाटों के लिए शहीद नहीं हुए थे। न उनका राज्य ही किसी ने छीना लिया था, न कोई पेंशन बंद कर दी थी, बल्कि उनके सामने तो अपूर्व शक्तिशाली मुगल-सत्ता, दीनतापूर्वक, संधि करने की तमन्ना लेकर गिड़-गिड़ाई थी।

सांसद राजकुमार चाहर ने गोकुल सिंह जाट की वीरता पर चर्चा करते हुए बताया कि जब मुगल बादशाह औरंगजेब के अत्याचारों से हिन्दू जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी। मंदिरों को तोड़ा जा रहा था, हिन्दू स्त्रियों की इज्जत लूटकर उन्हें मुस्लिम बनाया जा रहा था। किसानों से जबरदस्ती अनेक तरह के लगान व कर वसूले जा रहे थे तब किसान कुल में जन्में गोकुल सिंह जाट ही वो महान योद्धा थे जिन्होंने बड़े साम्राज्य के मुगल शासक को चुनौती दी। गोकुल सिंह ने आगरा से लेकर मथुरा तक किसान परिवारों और जाट समाज से उनके साथ खड़े होकर इन आत्याचारों के खिलाफ लड़ाई लडने की अपील की। तब अपने बीच ऐसे वीर नेता को देखकर न सिर्फ जाट समाज बल्कि राजपूत, गुर्जर, यादव, मेव, मीणा इत्यादि समस्त हिन्दू जातियों के परिवारों ने गोकुल सिंह को पूर्ण समर्थन दिया। बृज भूमि सभी जाति-पांति भूलकर उनके साथ हो गयी।

उन्होंने किसानों के हितों की सुरक्षा करने के लिए महान संघर्ष किया। जब किसानों को दबाने के लिए औरंगजेब ने अब्दुन्नवी नामक एक कट्टर मुसलमान को मथुरा का फौजदार नियुक्त किया। अब्दुन्नवी के सैनिकों का एक दस्ता मथुरा जनपद में चारों ओर लगान वसूली करने निकला। मथुरा के पास सिनसिनी गाँव के सरदार गोकुल सिंह के आह्वान पर किसानों ने लगान देने से इनकार कर दिया, परतन्त्र भारत के इतिहास में वह पहला असहयोग आन्दोलन था। तब अब्दुन्नवी ने सिहोरा गाँव पर हमला किया। उस समय वीर गोकुल सिंह गाँव में ही थे। भयंकर युद्ध हुआ लेकिन अब्दुन्नवी और उसकी सेना सिहोरा के वीर हिन्दुओं के सामने टिक ना पाई और सारे सैनिक गाजर-मूली की तरह काट दिए गए। इस विजय ने मृतप्राय हिन्दू समाज में नए प्राण फूँक दिए थे। निराश और मृतप्राय हिन्दुओं, जाट परिवारों, किसानों, महिलाओं-बच्चों में जीवन का नया संचार हुआ। उन्हें दिखाई दिया कि अपराजय मुगल-शक्ति के विष-दंत तोड़े जा सकते हैं। उन्हें दिखाई दिया अपनी भावी आशाओं का रखवाला – ‘गोकुल सिंह जाट’

महापौर नवीन जैन ने कहा कि किसान – जाट समाज अन्दर से मजबूत, सशक्त किंतु बाहर से भोला होता है। यही कारण है कि अक्सर विरोधी ताकतें उन्हें या तो अपने झूठे-मूठे जाल में फंसाने की कोशिश करती हैं या फिर उन पर आत्याचार किया जाता है लेकिन जब तक गोकुल सिंह जाट जैसे महान योद्धा बृज भूमि जैसी पावन धरती पर जन्म लेते रहेंगे तब तक उनका जाट-किसानों का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। आज भी कुछ मुद्दों पर हमारे किसान भाइयों और भोले भाले हिन्दू समाज को बरगलाने का काम किया जा रहा है। आज जब देश के प्रधानमंत्री किसानों का हित करने चले हैं तो कुछ विरोधी ताकतें उन्हें भटकाने का काम कर रही हैं। जबकि उन्हीं की सरकारों में किसान और गरीब हिन्दू समाज हमेशा से ही विकास और आर्थिक उन्नति के लिए तरसता रहा। आज जब मोदी सरकार के कार्यकाल में गांव में चहुंओर तरक्की के रास्ते खुलने लगे हैं, किसान भाइयों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने का काम किया जा रहा है तो विरोधी ताकतें उन्हें आपस में लड़ाने और किसान बिल के नाम पर झूठा प्रचार करने में जुटे हैं ताकि किसान वर्ग और हिन्दू समाज आपस में बंट जाये। इनकी शक्ति कम हो जाये ताकि वे इन्हीं भोले भाले लोगों का प्रयोग कर अपनी राजनीति महत्वाकांक्षाओं को पूरा कर सके लेकिन ये लोग यह नहीं जानते कि इन्हीं किसान परिवारों और हिन्दू समाज में गोकुल सिंह जाट जैसे महापुरूष पैदा होते हैं और देश को तोड़ने वाली ताकतों के खिलाफ समाज को एकजुट कर उनके खिलाफ संघर्ष करने का काम करते हैं।

महापौर नवीन जैन और सांसद राजकुमार चाहर ने जानकारी दी कि जब मुगलों नें गोकुल सिंह को बंदी बना लिया गया था और निर्दयी शासक ने आगरा कोतवाली पर सभी लोगों के सामने वीर गोकुल जाट को कुल्हाड़ी से काटकर मारने का फरमान सुनाया गया तब भी गोकुल सिंह जाट शेर की भांति अपने मुख पर मुस्कान लिए खड़े थे। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि जब उनके शरीर पर कुल्हाड़ी से प्रहार किया गया तब उनके शरीर से रक्त फौव्वारे की तरफ फूटा जिसके चलते शहर के उस क्षेत्र को आज फौव्वारा चैक के नाम से जाना जाता है।

गोकुल सिंह जाट और औरंगजेब शासक के बीच हुए विशाल युद्ध के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि गोकुल सिंह ने मुगल की शाही सेनाओं का सामना किया। जाटों ने मुगल सेना पर एक दृढ़ निश्चय और भयंकर क्रोध से आक्रमण किया। भारत के इतिहास में ऐसे युद्ध कम हुए हैं जहाँ कई प्रकार से बाधित और कमजोर पक्ष, इतने शांत निश्चय और अडिग धैर्य के साथ लड़ा हो। हल्दी घाटी के युद्ध का निर्णय कुछ ही घंटों में हो गया था। पानीपत के तीनों युद्ध एक-एक दिन में ही समाप्त हो गए थे, परन्तु वीरवर गोकुलसिंह का युद्ध 6 दिन तक चला।

तिलपत के पतन के बाद गोकुलसिंह और उनके ताऊ उदयसिंह को सपरिवार बंदी बना लिया गया। उनके सात हजार साथी भी बंदी हुए। इन सबको आगरा लाया गया। औरंगजेब पहले ही आ चुका था। सभी बंदियों को उसके सामने पेश किया गया। औरंगजेब ने कहा –

जान की खैर चाहते हो तो इस्लाम कबूल कर लो। रसूल के बताये रास्ते पर चलो. बोलो क्या कहते हो इस्लाम या मौत?

अधिसंख्य जाटों ने कहा – बादशाह, अगर तेरे खुदा और रसूल का का रास्ता वही है जिस पर तू चल रहा है तो हमें तेरे रास्ते पर नहीं चलना.

अगले दिन गोकुलसिंह और उदयसिंह को आगरा कोतवाली पर लाया गया। उसी तरह बंधे हाथ, गले से पैर तक लोहे में जकड़ा शरीर. गोकुलसिंह की सुडौल भुजा पर जल्लाद का पहला कुल्हाड़ा चला, तो हजारों का जनसमूह हाहाकार कर उठा. कुल्हाड़ी से छिटकी हुई उनकी दायीं भुजा चबूतरे पर गिरकर फड़कने लगी। परन्तु उस वीर का मुख ही नहीं शरीर भी निष्कंप था। जल्लाद की कुल्हाड़ी वीर गोकुल सिंह जाट की शरीर पर चलती रही। वीर गोकुला का रक्त फौव्वारे के रूप में चारों तरफ उनकी जांबाजी का पैगाम दे रहा था। जिसकी वीरता को सम्मानित करते हुए शहादत स्थल के निवासियों ने उस स्थल का नाम फौव्वारा रख दिया।

महापौर नवीन जैन ने घोषणा की कि वीर गोकुल सिंह जाट की शहादत स्थल फौव्वारा चैराहे का नाम वीर गोकुला जाट के नाम पर रखा जायेगा। महापौर ने प्रतिनिधि मंडल को आश्वस्त किया कि नगर निगम सदन में यह प्रस्ताव लाया जायेगा और फौव्वारा चैक को वीर गोकुला जाट चैक के नाम से जाना जाएगा। महापौर की घोषणा होते ही पूरा कक्ष हर्ष ध्वनि से गूंज उठा।

सांसद राजकुमार चाहर ने महापौर नवीन जैन को धन्यवाद देते हुए कहा कि समाज की मांग पर महापौर ने गोकुल सिंह जाट की स्मृति में उनके शहादत स्थल का नाम परिवर्तन व भव्य प्रतिमा स्थापित करने की जो घोषणा की है। वह केवल जाट समाज ही नहीं बल्कि समस्त हिन्दू समाज, किसान भाईयों के लिए गर्व की बात है। निश्चित ही जब यह घोषणांए मूर्त रूप लेंगी तो आगरा शहर के इतिहास में ही नहीं बल्कि संपूर्ण भारतवर्ष में एक नया अध्याय जुड़ेगा और पर्यटन नगरी आगरा में आने वाले देश-विदेश का प्रत्येक पर्यटक महान योद्धा गोकुल सिंह जाट की गाथा को भली भांति जान सकेगा।

अंत में महापौर नवीन जैन ने कहा कि बृज भूमि के समस्त हिन्दू समाज, किसान-जाट परिवारों के प्रेरणा स्त्रोत  वीर गोकुल सिंह जाट की अष्टधातु की प्रतिमा स्थापित करने के लिए जल्द ही आगरा कोतवाली के पास स्थल का दौरा किया जायेगा और विधिवत रूप से पूरे मान-सम्मान के साथ उनकी भव्य व विशाल प्रतिमा लगाई जायेगी। प्रतिमा स्थल पर ही गोकुल सिंह जाट के इतिहास की गाथा भी लिखी जायेगी ताकि आज की पीढ़ी बृज भूमि से जुड़े ऐसे महान योद्धा के बारे में जान सके।

 इस अवसर पर विधायक राम प्रताप सिंह चैहान, भाजपा नेता अनिल चौधरी, कुँवर शैलराज सिंह एडवोकेट, जेएस फौजदार, दुर्ग विजय सिंह भैया, कमल चौधरी, हरिओम जुरैल, कोमल सिंह, कप्तान सिंह चाहर, पार्षदगण कर्मवीर सिंह, बच्चू सिंह, राजेश्वरी देवी, हरी कुमारी एवं राहुल चैधरी इत्यादि उपस्थित रहे।

इस संबंध में भाजपा के महानगर महामंत्री और अग्रवाल महासभा के सदस्य मनोज गर्ग ने कहा है कि फुव्वारा चौराहे पर प्राचीन मूर्ति भगवान महाराजा अग्रसेन जी की लगी हुई है। उससे कोई छेड़छाड़ होगी। उसे पूर्व की भांति महाराजा अग्रसेन चौक के नाम से जाना जाता रहेगा। आगरा महापौर नवीन जैन ने जो गोकुल सिंह जी की प्रतिमा कोतवाली पर लगवाने की बात की है। कोतवाली रोड का नाम भी गोकुल सिंह के नाम से करने की कही। यह खबर बिलकुल भ्रामक है कि हमारे अराध्य महाराजा अग्रसेन जी के मूर्ति व चौक का नाम बदलने की कोशिश की जा रही है‌।