Dadaji maharaj agra

राधास्वामी गुरु दादाजी महाराज के अनमोल बचन -30: अंधविश्वास नहीं करना चाहिए

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radhasoami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur foemer Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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यह पहचान होनी चाहिए कि हमारा हितेषी है और यह हमारा हितेषी नहीं है। बातें बनाने वालों की बातों में नहीं आना चाहिए और न ही अंधविश्वास करना चाहिए। देखो, परखो, पहचानो, खूब परखो, तौलो तब मानो, न कोई जोर है, न जबरदस्ती है और न किसी के ऊपर कोई दबाव है। सीधी सी बात कही है कि जिस किसी को अपने जीव का कल्याण कराना है और उसको अपने निज घर में पहुंचना है तो राधास्वामी दयाल की चरन सरन में आए। तो इतने जमाने से हमारे मूल्य निर्धारित हो चुके हैं राधास्वामी मत के, उन मूल्यों का पालन करना चाहिए। जो दूर हैं उनके लिए हजूर महाराज ने कहा है-

सुरतिया दूर बसे हरदम गुरु चरन निहार।

यानी उनको वह अपने दर्शन देते रहते हैं और गुप्त रूप से तुम्हारे साथ रहते हैं तो उनको नहीं देख सकते क्योंकि तुम्हारी दृष्टि दूर तक नहीं है। कोई आदमी कितनी दूर तक देख सकता है? कोई सूरज की थाह आ सकता है देखकर? जितनी दूर जाता है, उतना वह और सरकता जाता है लेकिन वही सूरज की किरण गर्मी में नहीं भाती, लेकिन जाड़े में वही सूरज की किरण आराम देती है। यह सब किसने रचे हैं, मालिक न रचे हैं, तुम्हारे लाभ के लिए रचे हैं, लेकिन तुम उनका नाजायज फायदा नहीं उठा सकते।

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हर व्यक्ति को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसके अंदर तामसी अंग न पैदा होने पावें, राधास्वामी  मत में गोश्त खाने की और शराब पीने की मनाही इसलिए है क्योंकि वह फितूर पैदा करते हैं और इनसे अकाज हो सकता है, सोहबत बुरी पड़ सकती है और बिगाड़ हो सकता है और इनसे उद्धार में विघ्न हो सकता है। हिंसा और अहिंसा की बात तो बहुत लोग करते हैं। फरमाया है कि किसी पशु को बिना बात क्यों मारना, उसके अंदर भी जान है, उसके अंदर भी अंश है मालिक का, तो तुम कौन होते हो उसको काटने जा मारने वाले। यह भी कहा है कि अगर अच्छी चीज खाओगे तो वृत्ति अच्छी होगी तो गोश्त तो बहुत गंदी चीज हुई, किसी मरे हुए जीव का, बकरे का, सुअर का मांस खाना, वैसे परहेज करते हैं, यानी किसी की मुर्दनी में भी जाते हैं तो आकर नहाते हैं लेकिन मृत जीव को खाने में कोई परहेज नहीं करते हैं। इसी तरह से शराब, भांग और नशे की चीजों का असर क्या होता है- इनसे भी दिमाग में फितूर पैदा होता है, वहो तुमको अभ्यास के काबिल नहीं रखेगा, वो तुमको भोगों की तरह खींचेगा। जब अवगुणहारी विषयभोगी और जानवर वृत्ति के लोग अधिक पैदा हो जाते हैं तो वह वातावरण को अशुद्ध कर देते हैं। पशु भी, जो कि खूंखार जानवर है, वह भी आप पर आक्रमण नहीं करता जब तक कि वह भूखा न हो या आप उस को छेड़ें नहीं, लेकिन यह कैसे मनुष्य, याह तो पशु है जिनको किसी की हत्या करने में भी परहेज नहीं है। मालिक की दया ऐसे जीव से हट जाती है और फिर उसका रक्षक कोई नहीं होता। इसलिए ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए और सतगुरु को प्रसन्न रखना चाहिए, उनकी प्रसन्नता से हमें फायदा है और उनकी अप्रसन्नता से भारी नुकसान है। इस बात में वो राजी हैं उसको करने में तुम्हारा कोई बिगाड़ नहीं हो सकता है।