dadaji satsang

राधास्वामी गुरु दादाजी महाराज ने बताया कि ध्यान कैसे करें

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

एक निश्चित आसन पर बैठना पड़ता है और वह धुन आपसे आप सुनाई देती है

हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा राधास्वामी (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य (Radhasoami guru Dadaji maharaj) और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं जो आगरा विश्वविद्यालय (Agra university) के दो बार कुलपति (Vice chancellor of Agra university)  रहे हैं। हजूरी भवन (Hazuri Bhawan, Peepal Mandi, Agra) में हर वक्त राधास्वामी (Radha Soami)  नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत (RadhaSomai faith) के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 5 अप्रैल 2000 को रेड रोड,रिजोर्ट्स, आसमखास बाग, सरहिन्द, जिला फतेहगढ़ साहिब (पंजाब, भारत) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज (Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने कहा- अगर आप अपनी नर देही को सुफल करना चाहते हैं तो राधास्वामी दयाल को कुल मालिक और राधास्वामी नाम को सच्चा जाती नाम मानिए। यह तो वह नाम है जो अपवित्र से अपवित्र स्थान को भी पवित्र कर देगा।


दुनिया को निराश देखा तो मालिक खुद चले आए

राधास्वामी दयाल ने एक सहज युक्ति सुरत-शब्द-योग की जारी की, जिसे महिला, पुरुष, बूढ़ा, जवान और बच्चा कोई भी कमा सकता है। न रोजगार छोड़ना है और न गृहस्थी छोड़नी है। एक घंटा सुबह और एक घंटा शाम बंद कमरे में बैठकर अभ्यास करना है। मालिक ने छोड़ने पर नहीं जोड़ने पर जोर दिया है। तोड़ने पर नहीं फटे पैबंद को सीने पर जोर दिया है। जब सबके पैबंद फट गए तो मालिक को दया आई। जब तक उन्होंने जीवों को इतना दुखी नहीं देखा तब तक तवज्जह इतनी नहीं की लेकिन जब दुनिया को बहुत निराश देखा ऐसी तवज्जह की कि खुद चले आए।

राधा और स्वामी दोनों से काम पड़ेगा

स्वामी जी महाराज कुल मालिक के संपूर्ण अवतार थे। परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (राय सालिगराम साहब बहादुर) राधास्वामी दयाल के पूर्ण अवतार थे। हजूर महाराज मुजस्सिम राधा और स्वामी जी महाराज मुजस्सिम स्वामी है। तुम्हारा काम दोनों से पड़ेगा बल्कि पहले राधा से पड़ेगा तब स्वामी तक पहुंचेंगे।

ध्यान की बात

संतमत के अनुयायियों को चेतावनी दी जाती है कि जो बे-ठिकने इधर से उधर सुरत-शब्द-योग की तकनीक को सीख लेते हैं। अगर मैं उनसे पूछूं कि तुम किस जगह ध्यान लगाते हो तो इसका जवाब नहीं दे सकते। कोई कहेगा यहां करो, कोई कहेगा वहां करो। सुरत की बैठक इस देह में कहां है इसका निश्चित स्थान मालूम होना चाहिए। तीसरा तिल कहां है-  ध्यान वहीं लग सकता है, इधर-उधर नहीं। उस ध्यान को लगाने और शब्द को सुनने के लिए उसमें प्राण को रोकना नहीं पड़ता। एक निश्चित आसन पर बैठना पड़ता है और वह धुन आपसे आप सुनाई देती है लेकिन वह तब सुनाई देगी जब तुम्हारा अंतःकरण शुद्ध होगा। अंतःकरण चार  हैं- मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। जब तुम्हारा मन, बुद्धि और चित्त सही नहीं होगा और अपने अहंकार की कार्रवाई करते रहोगे तो मालिक का दीदार कैसे हासिल होगा। अंतःकरण की शुद्धि के लिए आला ध्वन्यात्मक नाम- राधास्वामी प्रकट किया गया। जिस सत्त नाम की बात कबीर साहब से लेकर सब संत कहते आए, वह राधास्वामी दयाल ने प्रकट किया। वही सच्चा सत्तनाम- राधास्वामी नाम है।

तब तक उद्धार नहीं हो सकता

जब तक राधास्वामी नाम का सुमिरन तीसरे तिल के स्थान पर मन और सुरत को जमाकर नहीं किया जाएगा तब तक उद्धार नहीं हो सकता। जब तक राधास्वामी दयाल को कुल मालिक नहीं माना जाएगा तब तक सच्चखंड को भी प्राप्ति नहीं हो सकती। दो बातें मैं आपको बताना चाहता हूं कि अगर आप अपनी नर देही को सुफल करना चाहते हैं तो राधास्वामी दयाल को कुल मालिक और राधास्वामी नाम को सच्चा जाती नाम मानिए। यह तो वह नाम है जो अपवित्र से अपवित्र स्थान को भी पवित्र कर देगा। (क्रमशः)