लंबे संघर्षों के बाद आखिरकार कामगारों के 8 घंटा काम के जिस अधिकार को ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’ (आईएलओ०) ने 1919 में मान्यता दी थी, ठीक एक सदी बाद क्या इस तरह अपनी आंखों के सामने उन्हें ‘उड़नछू’ हो जाते वह देखता रहेगा ? भारतीय ट्रेड यूनियन परिसंघ (कन्फडरेशन) के सूत्रों की मानें तो आईएलओ० बहुत जल्द भारत को ‘कारण बताओ नोटिस’ जारी करने जा रहा है। अपने सख्त एतराज़ में ‘कन्फडरेशन’ ने श्रमिकों के ‘अंतर्राष्ट्रीय संगठन’ से इस मामले में कार्रवाई की मांग की है। “वे (आईएलओ०) भारत पर प्रतिबन्ध भी लगा सकते हैं।“ अभी तक इस मामले में भले ही 6 राज्य सरकारों ने अपनी ‘स्मार्टनेस’ दिखाई हो लेकिन कन्फडरेशन को शुबहा है कि जल्द ही ये ‘महामारी’ अन्य राज्यों में भी फैलने वाली है। यही वजह है कि वे इस पर तुरंत रोकथाम चाहते हैं। देशव्यापी तालाबंदी की अनेक “विपरीत परिस्थितियों” के बावजूद कन्फडरेशन बुद्धवार 13 मई को देशव्यापी विरोध प्रदर्शनों का आयोजन कर रहा है।
कोरोना को ब्रह्मास्त्र बनाकर जिस तरह 6 राज्य सरकारों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत कामगारों के ट्रेड यूनियन अधिकारों को गड़प कर लिया उसकी प्रतिक्रिया भारत में तो क्या अच्छी होती, विदेशों में भी उसे ‘तिरछी’ नज़रों से देखा जा रहा है। चीन, ईरान और यूरोपीय देशों सहित अमेरिका तक में कोविड 19 की प्रचंड आंधी और लोकडाउन के बावजूद श्रमिकों के प्रति सरकारों का रवैया हमदर्दी भरा रहा है। इस मामले में भारत अकेला अपवाद है। इस अपवाद के पीछे जो वजह बतायी गई है वह भी कम बेतुकी नहीं। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि मज़दूरों के इन अधिकारों को रद्द किये जाने का सबसे बड़ा फायदा इसी कामगार तबके को मिलेगा। “जो प्रवासी श्रमिक उप्र० के अपने गांव और मोहल्लों में लौट रहे है, उन्हें तत्काल रोज़गार मिलेगा।” मप्र० के मुख्यमंत्री का बयान भी ऐसा ही अजब-गजब है। उन्हें प्रदेश में “रोजगार का नया सूरज” उगता दिख रहा है ।
दरअसल अप्रैल के दूसरे हफ्ते से ही देश के मीडिया के बड़े हिस्से में यह हवा फैलाई जाने लगी कि चीन से विस्थापित होकर अन्यत्र बस जाने का ठिकाना ढूंढने वाली ढेर सी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियां भारत में बेताबी के साथ अपनी सरज़मीं तलाश रही हैं। एक के बाद एक कई छुटभैये ‘नामचीन उद्योगपतियों’ के हवाले से भी इस बात का प्रचार शुरू किया गया। भाजपा के कतिपय ऐसे नेता, जो कभी भी, कहीं भी, कुछ भी कह देने के लिए अमादा रहते हैं, ‘भर दो झोली मेरी या मोहम्मद’ का राग अलापते रहे। ‘राग मोहम्मदी’ में इस बात का भी ताबड़तोड़ ज्ञान परोसा गया कि आईटी और ऑटोमोबाइल क्षेत्र में कार्यरत ऐसी अंतर्राष्ट्रीय कम्पनियाँ (जिन पर छोटे कलपुर्ज़ों की खातिर भारतीय निर्माताओं की निर्भरता रही है) यदि चीन से उठकर भारत में स्थापित होती हैं तो इससे न सिर्फ़ लागत मूल्यों में कमी आएगी बल्कि अंतर्राष्ट्रीय निर्यात बाज़ार में उनकी आमदनी में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा होगा जिससे भारतीय युवाओं के लिए नए रोज़गारों का सृजन होगा!
वुहान (चीन) में शांति स्थापित होने, जनजीवन लौटने और उद्योगधंधों के दोबारा रफ़्तार पकड़ लेने के बाद कंपनियों के विस्थापन की ज़्यादातर चर्चाएं ठंडी हो गयीं लेकिन भारत के मीडिया में कोरोना वरदान स्वरूप चीन से टूट कर गिरने वाले इस छींके (!) का पुरज़ोर प्रचार चालू रहा। किसी के पास इस बात की दमदार दलील नहीं थी कि आख़िर कौन-कौन सी कंपनियां चीन से अपना बोरिया बिस्तर बाँध रही हैं और अगर बाँध रही हैं तो वियतनाम और ताइवान जाने की उनकी ‘आसान राह’ में कौन रोडे अटका लेगा? बहरहाल भाजपा के चिरपरिचित मीडिया अभियान ने पूरे अप्रैल माह में जब चीन से मिलने वाले इस कोरोना गिफ़्ट का शंखनाद कर लिया तो अप्रैल के पहले हफ्ते में ही श्रमिक क़ानूनों पर गड़ासे चलने शुरू हो गए। वस्तुस्थिति यह है चीन में 80 से 90 प्रतिशत उद्योगों की बहाली हो गई है। चीन से बेदखल होकर अन्यत्र बसने वाली कंपनियों की वजह भी कोरोना वायरस नहीं था जैसा कि हमारे यहां प्रचारित किया गया। ये दरअसल वे कंपनियां थीं, जो ट्रम्प प्रशासन द्वारा आयातित सामानों पर बढ़ाये जाने वाले टैक्स से आक्रांत थीं। 10 से 20 प्रतिशत विस्थापित हुईं कंपनियों में 13 फीसदी वियतनाम पहुंच गईं और बाकी का बड़ा हिस्सा ताइवान में अपनी जड़ें तलाशने में जुट गया। वहां उद्योग ‘फ्रेंडली’ क़ानून इसकी अकेली वजह हों ऐसी बात नहीं है । सरकारी मशीनरी का अड़ंगे न डालने का रवैया भी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों को बेहद आकर्षित करता है।
तब क्या भारतीय मीडिया इन सारे तथ्यों से अनिभिज्ञ था? क्या छुटभैये पूंजीपति अज्ञानतावश ‘भेड़िया आया भेड़िया आया’ की पुकार लगा रहे थे? वे सब दरअसल एक सुविचारित रणनीति के तहत थोथा पहाड़ खड़ा कर रहे थे जिस पर चढ़ा कर उस भारतीय कामगार को हलाल किया जा सके जो पहले ही हाथ-पैर से लुंज-पुंज है। इस सारे खेल से पीएमओ० अनजान रहा होगा, ऐसा मानने का कोई औचित्य नहीं। 6 मई को प्रमुख ट्रेड युनियन नेताओं के साथ अपनी वीडियो कॉन्फ्रेंस में केंद्रीय श्रम एवं रोज़गार मंत्री संतोष गंगवार ने आश्वासन दिया था कि ‘अध्यादेश’ के जरिये किसी प्रकार के श्रमिक क़ानूनों में सुधार का प्रस्ताव नहीं लाया जायेगा। केंद्रीय मंत्री के बयान से एक दिन पहले मध्य प्रदेश अपना खेल खेल चुका था और उनके बयान के एक दिन बाद यूपी० ने अपने गेंद डाल दी। दो दिन बाद नूराकुश्ती को बाकी 4 राज्य भी अखाड़े में उतर आये। अलबत्ता एक बात ज़रूर लोगों के गले नहीं उतर रही है। उड़ीसा की नवीन सरकार को भले ही बीजेपी की ‘बी’ टीम मान लिया जाय, लेकिन इस क़साईबाड़े में ख़ंजर लेकर महाराष्ट्र कैसे कूद गया, इसका जवाब न सोनिया गांधी के पास है न राहुल गांधी के पास। सत्ता पक्ष और विपक्ष, श्रमिक विरोध की तलवार भांजने में सबका एका है ? क्या मां-बेटे की कथित ‘नाराज़गी’ की रौशनी में इन चर्चाओं को दमदार मान लिया जाय कि जल्द ही महाराष्ट्र ख़ुद को इस घिनौने खेल से अलग कर लेगा या शरद पवार ‘वही होता है जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है’ की भूमिका में महफूज़ रहेंगे?
बहरहाल अब गेंद जिसके भी हाथ में हो, रेफ़री की भूमिका में आईएलओ० को उतरना पड़ेगा। भारत सन 1922 से इसकी ‘स्थायी गवर्निंग बॉडी’ का सदस्य है। भारतीय संसद उसके जिन अहम श्रेणी में आने वाले ‘संधिपत्रों’ (कन्वेंशन) का सत्यापन (रेटीफाई) कर चुकी है उनमें 8 घंटे के काम का अधिकार और औद्योगिक विवाद को त्रिपक्षीय वार्ता के जरिये हल करने जैसे संधिपत्र भी शामिल है। मौजूदा हमले में ये 6 राज्य इन दोनों ही ‘कन्वेंशन’ को घोंटा बनाकर पी गए हैं। 8 घंटे का काम का अधिकार आईएलओ० के मूल संधिपत्र है।
सारी दुनिया के लाखों मज़दूरों के गाढ़े ख़ून में रंगा है यूरोप में औद्योगिक क्रांति के बाद के डेड़ सौ वर्षों का इतिहास। किसने कल्पना की होगी कि 1856 में ऑस्ट्रेलिया के नए-नए ‘तेजस्वी मेलबॉर्न’ शहर के निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले मज़दूरों के रक्तरंजित संघर्ष आगे चलकर अपने विजय ध्वज की धमक से सारी दुनिया के कामगारों के लिए काम के 48 घंटे के (छ दिवसीय) सप्ताह के दरवाज़े खोलेंगे। अपने लहू में समूचे शिकागो की धरती को डुबा देने वाले श्रमिकों के लिए कल्पनातीत था यह मानना कि उसके रक्त की धार अगले 5 वर्ष में संपूर्ण अमेरिका के मज़दूरों को ऐसा गोलबंद करेगी कि राष्ट्रपति यूलिसिस ग्रांट को ‘8 घंटे की कामगारी’ की घोषणा को मजबूर होना पड़ेगा। इंग्लैण्ड, स्पेन, फ़्रांस, बेल्जियम, उरुग्वे, कनाडा, न्यूज़ीलैंड ….. मज़दूरों के लहू से रंगी पड़ी है उन्नीसवीं सदी और इसी लहू के दरिया में डूबते-उतराते उसने हासिल किये हैं 8 घंटे की कामगारी के शानदार तमगे, अगली सदी में (अपनी स्थापना के साथ) आईएलओ० ने जिस पर पुख्तगी की अपनी मुहर चस्पां की थी । आज जब भारत की 6 रियासतों के बेपरवाह बादशाह उसी मुहर को खरोंच डालना चाहते हैं तो जेनेवा ज़रूर उलट कर पूछेगा- कामगारों के आठ घंटे के अधिकार के रक्त में तो नहीं सने हैं श्रीमान आपके हाथ?
जेनेवा की बात तो दूर की कौड़ी है, अभी तो दिल्ली ही जवाबदेह है। पेश किये जाने पर राष्ट्रपति के लिए भी यह सवाल ‘लाख टके’ का बना रहेगा कि आईएलओ० ‘कन्वेंशन’ के पार्लियामेंट द्वारा ‘रेटीफाई’ किये गए क़ानूनों को राज्य सरकारों के ‘अध्यादेश’ के माध्यम से निरस्त करना, क़ानून सम्मत हो सकता है या नहीं ?

अनिल शुक्ल
17/232 छिली ईंट रोड
आगरा-282003
फोन एवं व्हाट्सएप्प : 9412895544
- विश्व साहित्य सेवा ट्रस्ट की राष्ट्रीय संगोष्ठी, कवि सम्मेलन और 148 साहित्यकारों का सम्मान 16 को - April 15, 2023
- ‘हिन्दी से न्याय अभियान’ का असरः इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला हिन्दी में आया - March 29, 2023
- द सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार आगरा के डॉ. मुनीश्वर गुप्ता, चन्द्रशेखर उपाध्याय, डॉ. भानु प्रताप सिंह हिन्दी में प्रथम, देखें 59 हिन्दी वीरों की सूची - February 23, 2023
order cialis 40mg tadalafil online buy ed pills sale
buy duricef tablets epivir cheap finasteride online
buy estradiol 2mg lamotrigine 200mg oral order minipress 1mg
fluconazole pills diflucan 200mg usa buy cipro 1000mg for sale
nolvadex canada buy nolvadex tablets where to buy ceftin without a prescription
order amoxicillin 250mg buy anastrozole medication buy biaxin 500mg for sale
bimatoprost order buy robaxin order desyrel 100mg online
order catapres 0.1mg pill order catapres online buy generic spiriva
order suhagra for sale cost sildalis viagra sildenafil 150mg
minocycline online order purchase minomycin without prescription buy pioglitazone 30mg online cheap
buy leflunomide 20mg online cheap buy arava 10mg sale azulfidine 500 mg cheap
tadalafil us oral viagra 50mg tadalafil 40mg brand
ivermectin india how to buy prednisone brand prednisone 10mg
asacol 400mg sale mesalamine over the counter buy irbesartan without prescription
buy diamox 250mg pills imuran canada brand imuran 50mg
cost lanoxin lanoxin 250 mg pills molnupiravir 200 mg for sale
naproxen online order prevacid 30mg price lansoprazole price