Durga shankar mishra ias

यूपी के मुख्य सचिव दुर्गाशंकर मिश्र ने कहा- मैं कभी रिटायर नहीं होऊँगा, नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ के बारे में बड़ी बात, कबीरदास का दोहा और गांधी जी का ताबीज रखते हैं साथ, सोशल मीडिया संवाद का टूल, युवाओं के लिए संदेश

साक्षात्कार

डॉ. भानु प्रताप सिंह

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देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव दुर्गाशंकर मिश्र की कार्यशैली सबसे अलग है। वे जहां भी जाते हैं, अपने काम से अलग स्थान और पहचान बना लेते हैं। अपने कार्यालय में एक साक्षात्कार में उन्होंने अपने मन की बातें कहीं। साफ तौर पर कहा कि मैं कभी रिटायर नहीं होऊँगा। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बारे में कहा कि उन्हें ईश्वरीय शक्तियां प्राप्त हैं। सोशल मीडिया के बारे में कहा कि यह स्वयं को प्रमोट करने का नहीं बल्कि संवाद का टूल है। बदलते भारत में युवाओं के लिए विशेष संदेश दिया। आईआईटियंश को उनकी विशेष भूमिका से अवगत कराया। यह भी कहा कि हर काम को भगवान की आराधना की तरह करो तो कोई समस्या नहीं आएगी। देश सेवा के उद्देश्य से अमेरिका जाना छोड़कर सिविल सेवा को चुना। उन्हें आगरा आज भी याद है। मुख्य सचिव को पढ़ना, लिखना और पर्यटन का शौक है। कबीर का दोहा और गांधी जी का ताबीज उनके साथ चलता है।

 

सवालः आईआईटी कानपुर के बच्चे आपसे बहुत प्रभावित रहे हैं। आप स्वयं को पावरफुल या रेस्पॉंसिबल महसूस करते हैं?

दुर्गाशंकर मिश्रः पॉवर से अधिक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। मुख्य सचिव का पद सिविल सर्वेसेज में सर्वोपरित होता है। यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। पॉवर तो स्वतः मिलता है, इसके साथ जो जिम्मेदारी है, वह महत्वपूर्ण है।

Durga shankar mishra chief secretary UP
Durga shankar mishra chief secretary UP

सवालः जब आप आईआईटी कानपुर के छात्र थे तो आपके पास करियर के कई ऑप्शन थे, आप विदेश जा सकते थे, कोई और नौकरी कर सकते थे, आपने आईएएस को ही क्यों चुना?

दुर्गाशंकर मिश्रः ये बहुत अच्छा सवाल है। मैं आईआईटी कानपुर का टॉपर था। इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग और बैच का टॉपर था। पूरे बैच का बेस्ट ऑल राउंडर था। हाल में कई बार आईआईटी गया हूँ। मैंने देखा कि बच्चों के सामने बहुत सारे ऑप्शन हैं। 1983 में जब पासआउट हुआ, उस समय लगता था कि हम लोगों के सामने विदेश जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। तृतीय वर्ष के बाद बहुत सारे एग्जाम पास कर लेते हैं। बहुत सारे बच्चे अपनी जुबान बदल लेते थे। ऐसा लगता था कि वे अमेरिकन हो गए हैं। हम लोग उनका बड़ा मजाक बनाते थे। ऐसी स्थिति मैं कई सारे प्रोफेसरों से मिला। जिससे मिलता था वे कहते थे कि तुम्हें क्या सोचना है, तुम्हें तो अमेरिका के बेस्ट कॉलेज में फैलोशिप के सात एडमिशन मिल जाएगी क्योंकि तुम्हारा परफारमेंस इतना अच्छा है। तुम्हें वहीं जाना चाहिए। तुम्हारे लिए वही फील्ड बहुत अच्छी है। मेरा मन नहीं भरा। फिर मुझे उत्तर मिला प्रोफेसर वी राजारमन से, जिन्हें देश में कंप्यूटर का जनक भी कहते हैं। उनके साथ मैंने प्रोजेक्ट किया था। 90 साल की उम्र में वे बेंगलुरू में प्रोफेसर एमरिटस हैं। बहुत सारी किताबें लिखी हैं। मैं बेंगलुरू कभी भी जाऊँ, उनके चरण छूने जरूर जाता हूँ। आंटी के भी चरण छूता हूँ। उनके साथ बहुत काम किया है। मेरे साथ जय भूषण पांडे भी थे, वे भारत सरकार से सेवानिवृत्त हुए हैं। हमने उनसे कहा कि कन्फ्यूज हैं क्या करें तो उन्होंने प्रतिप्रश्न किया कि तुम क्या चाहते हो? तो हमने कहा कि अपने देश और परिवार के लिए कुछ काम करें। हम साधारण परिवार से निकले हैं। अपने देश के लिए बहुत ज्यादा भक्ति थी। मैं गांव से  निकलकर सीधे रांची पहुंच गया। मुझे भारत सरकार ने पढ़ाया। अंग्रेजी भी सिखायी। स्कॉलरशिप मिली। प्रोफेसर राजारमन का उत्तर साधारण था। कहा कि तुम अमेरिका में एन प्लस 1 सिंड्रोम में फंस जाओगे। वहां नौकरी करना शुरू कर दोगे। विवाह के बाद बच्चे हो जाएंगे। फिर तुम कभी हिन्दुस्तान नहीं आओगे। देश और परिवार के लिए कुछ करना चाहते हो तो अपने ही देश में कुछ करो। फिर तुम्हें विदेष जाने के बहुत मौके मिलेंगे। यह बात 80 के दशक की है। तब लगता था कि अमेरिका ही धरती पर स्वर्ग है। फिर हम दोनों ने तय किया कि सिविल सर्विसेज जॉइन करेंगे। आईआईटी की शिक्षा ऑल राउंडर होती है, न कि सिर्फ इंजीनियरिंग। हम दोनों ने साथ-साथ परीक्षा दी। मैं मैथ में अच्छा था। सोच रहे थे कि मैथ से आईएएस करेंगे। जब हमने देखा कि जिनका मैथ बहुत अच्छा था, उनका चयन आईएएस में नहीं हुआ है तो मैथ की किताबें दुकान पर जाकर बेच दीं। यह चतुर्थ वर्ष की बात है। पांचवें वर्ष में आकर फिजिक्स से आईएएस करने की सोची और किताबें लेकर आए। हमने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग और इलेक्ट्रॉनिक्स, दोनों का फार्म भर दिया। परीक्षा दी। रिजल्ट आया तो इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में देश में प्रथम था। आईएएस में 19वीं पोजीशन थी। इंटरव्यू में नम्बर कम मिले।

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सवालः आजकल सिविल सर्वेंट सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय रहते हैं। युवाओं की नजरों में यह जॉब से बढ़कर हो चुका है, इस पर क्या कहना चाहेंगे?

दुर्गाशंकर मिश्रः सिविल सेवा में हम बहुत सारे काम करते हैं जो सीधा लोगों को प्रभावित करता है। जब हम एसडीएम, एडीएम, डीएम, कमिश्नर थे तब सीधा फील्ड में काम करते थे। जब हम सरकार में पहुंचते हैं तो योजनाओं को कैसे जनोपयोगी बनाया जाए, इस पर केंद्रित रहते हैं। हम हर समय जनता के साथ जुड़े रहते हैं। जनप्रतिनिधियों के साथ संपर्क रहता है। ऐसे में कोई योजना लागू करने में समस्या है तो सुधार कर सकते हैं। सोशल मीडिया संवाद का टूल है लेकिन सेल्फ प्रमोशन का टूल नहीं है। ब्यूरोक्रेसी में महत्वपूर्ण है ‘हम आगे नहीं हैं’ हम काम सारे कर रहे हैं लेकिन प्रजातांत्रिक व्यवस्था में जनप्रतिनिधि आगे हैं। सोशल मीडिया पर स्वयं को प्रमोट करना ठीक नहीं है लेकिन जनसंवाद करना, जनता से जानकारी लेने के लिए सोशल मीडिया स्ट्रॉंग टूल हो गया है।

 

सवालः मुख्य सचिव की पोस्ट 20-25 साल की सेवा के बाद दी जाती है। आपको नहीं लगता कि युवा आईएएस मुख्य सचिव बने या अनुभव बहुत जरूरी है मुख्य सचिव बनने के लिए?

दुर्गाशंकर मिश्रः सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ने की बात है। हर स्तर पर अलग-अलग स्तर की जिम्मेदारी होती है। ज्ञान और अनुभव के आधार पर विशेषज्ञता हासिल होती है। हम संविधान से मिली शक्तियों के आधार पर काम कर रहे हैं। अनुभव बहुत मायने रखता है। यंग आदमी बहुत उत्साही होता है। अनुभव बहुत आवश्यक है। मैं सोनभद्र में जिलाधिकरी था। वहां की समस्याएं अलग है। मैं पैदल और साइकिल से जाता था। अलग अनुभव था। जब मैं आगरा पहुंचा तो वहां अलग। वहां देशभर के लोग आते हैं। अलग-अलग विभागों में काम किया। अनुभव बढ़ते चले जाते हैं जो महत्वपूर्ण हैं। जब भारत सरकार में सचिव बना तो देश में स्वच्छ भारत मिशन, जो मा. प्रधानमंत्री जी का विजन है, इन चीजों को कैसे आगे बढ़ाया, यह अनुभव किया। कानपुर में विकास प्राधिकरण का उपाध्यक्ष का अनुभव काम आया। प्रधानमंत्री आवास योजना में सवा करोड़ मकान बनाए हैं। हर मकान में सारी सुविधा हैं। स्मार्ट सिटी मिशन का अनुभव है। मेट्रो का अनुभव। कानपुर में मेट्रो स्वीकृत कराने का गौरव मिला मुझे। इन अनुभवों से और आगे बढ़ने की ताकत मिलती है। मुख्य सचिव के रूप में इतने सारे विभागों को देखता हूँ। अनुभव है सो गाइडेंस भी दे सकता हूँ, सुपरवाइज कर सकता हूँ, पॉलिसी पर भी काम कर सकता हूँ।

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सवालः  आप कार्यालय में सुबह नौ बजे आते हैं, रात्रि नौ बजे जाते हैं। इस उम्र में भी इतना काम करते हैं। इसके लिए परिवार का सहयोग आवश्यक है। वह मिलता है क्या?

दुर्गाशंकर मिश्रः आपके मन में किसी प्रकार के दुर्विचार न हों, शुद्ध और स्वच्छ मन से काम करें, पूरा कमिटमेंट हो तो हर स्तर से सहयोग मिलता है। साढ़े सात साल भारत सरकार में काम करने का अवसर मिला, आज पूरे प्रदेश में मा. मुख्यमंत्री के निर्देश में काम करने का अवसर मिला है। यह भगवान का दिया हुआ अवसर है। गांव से निकला बच्चा प्राइमरी या इंटर कॉलेज का मास्टर बन जाता है लेकिन भगवान ने मुझे यह मौका दिया है। आप में सेवा करने की भावना हो, जो पब्लिक सर्वेंट में होनी चाहिए, तो मुझे लगता है कि आपको कभी थकान नहीं होगी। थकान तब होती है जब आप सोचते कुछ हैं और करते कुछ हैं। काम को भगवान की आराधना के रूप में करते हैं तो कोई थकान नहीं होती है। मैं कुछ भी काम करता हूँ तो ईश्वर को समर्पित करके करता हूँ। जहां तक परिवार की बात है तो मेरी पत्नी है, एक बेटा है, एक बेटी है, उनके प्रति भी पूरी जिम्मेदारी है। वह भी ईश्वरीय व्यवस्था है। मन पवित्र है तो कोई उम्र बाधा नहीं है। प्रधानमंत्री जी की उम्र 70 से अधिक है। आप कभी सोच ही नहीं सकते हैं कि वे कब सोते हैं कि हर समय तरोताजा रहते हैं। हमारे मा. मुख्यमंत्री जी को देखिए, सवेरे से लेकर रात तक लगे रहते हैं। मैंने कभी उनके चेहरे पर शिकन नहीं देखी। यह तब होता है जब आप काम को पूजा मानकर करते हैं।

 

सवालः क्या आपके करियर में ऐसा हुआ है कि रूल कुछ कह रहे हैं लेकिन मन कह रहा है कि ऐसा करना चाहिए?

दुर्गाशंकर मिश्रः ऐसा कई बार आता है। ऐसी स्थिति में हमें अपने उत्तरदायित्व को समझना चाहिए। हम अपने मन से काम नहीं करते हैं। हमें व्यवस्था के तहत काम करना होता है। जब अंतः विचार करते हैं तो दुविधा का जवाब स्वतः मिल जाता है। 1984 में जब भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन हुआ तब मैंने सोचा कि मेरे जीवन का कुछ न कुछ ध्रुवतारा होना चाहिए। वह मुझे नजर आया कबीरदास के दोहे में। वह है-

कबिरा खड़ा बजार में मांगे सबकी खैर।

ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।।

हमें किसी के कुछ नहीं चाहिए। सबकुछ मैरिट पर हो। जो सही है वही करना है। हमारा दर्शन भी होना चाहिए और वह गांधी जी का ताबीज है, जो कहता है- जब कभी मन में दुविधा आए तो जो सबसे गरीब आदमी है, उसका चेहरा सामने लाइए और अपने आप से पूछिए कि जो मैं कर रहा हूँ कि वह इसके काम आएगी। फिर आप स्वतः हर प्रकार की दुविधा से निकल जाएंगे। गांधी जी की तस्वीर हमेशा मेरे साथ चलती है क्योंकि उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा है।

 

सवालः जब आप काम नहीं कर रहे होते हैं तो क्या करते हैं?

दुर्गाशंकर मिश्रः मैं पढ़ाई करता हूँ, लिखता हूँ। मुख्य सचिव के रूप में बहुत कम लिख पाया हूँ। भारत सरकार में रहा तो 20 पेपर इंटरनेशनल और नेशनल जर्नल में प्रकाशित हुए। तमाम पुस्तकों के चैप्टर लिखे। पढ़ाने का शौक है। पर्यटन का शौक है। सरकारी काम से भी गया तो समय निकालकर जाता हूँ और सीखता हूँ। आईआईटी कानपुर में था। कानपुर से लखनऊ की दौड़ हुई। मैं दौड़कर आ गया लखनऊ। केवल तीन लोग दौड़े थे, जिनमें मैं भी एक था। साइकिल से खजुराहो चले गए। स्कूल धर्मशाला में ठहरे ताकि पैसा कम से कम खर्च हो। एनसीसी के माध्यम से हर साल ट्रिप करते थे। सरकार में आया तो पूरी दुनिया में गया हूँ। देश के सभी राज्यों में गया हूँ। जहां भी गया, वहां कुछ न कुछ सीखा है।

सवालः सरकार बदलती है तो काम करने का अंदाज बदलता है। क्या कभी राजनीतिक दबाव की स्थिति आती है?

दुर्गाशंकर मिश्रः 40 साल की सेवा में मुझे कभी भी राजनीतिक दबाव का सामना नहीं करना पड़ा। हां, आप कई बार सोचते हैं कि ऐसा न किया तो हटा देंगे तो हम एक जगह से दूसरी जगह काम करेंगे। हमने कोई एग्रीमेंट नहीं कर रखा है कि एक ही जगह परमानेंट सेवा करनी है। ऐसे तकलीफ के वक्त मेरी सेवा में कई बार आए। जैसे मैं आगरा में बहुत अच्छा काम कर रहा था लेकिन अचानक हटा दिया गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री मा. कल्याण सिंह ने मुझे कानपुर विकास प्राधिकरण का उपाध्यक्ष बना दिया जो कमिश्नर स्तर के अधिकारी बनते थे। मैं तो कमिश्नर बना भी नहीं था। मैं सोनभद्र में बहुत अच्छा काम कर रहा था, अचानक वहां से हटा दिया गया। मैं सचिवालय में आकर अच्छा काम करने लगा। मेरा कोई लगाव नहीं था। बहुत सारे लोग सोचते हैं कि बड़ी मलाईदार पोस्टिंग है। मैं अपनी पोस्टिंग के लिए किसी के पास गया ही नहीं। जहां पोस्टिंग कर दो, वहीं अपना बेस्ट करूंगा। मन में देशभक्ति हो, पूजा भाव से काम करने की भावना हो तो किसी पोस्टिंग से कोई फर्क नहीं पड़ता है। हां, अचानक ट्रांसफर से बच्चों को तकलीफ होती है। बाद में बच्चों और पत्नी को भी आदत पड़ जाती है। नई जगह पर नई ऊर्जा के साथ काम करना चालू कर देता हूँ। पॉलिटिकल सिस्टम को भी हर एक के बारे में मालूम होता है।

 

सवालः  मुख्यमंत्री जी ऑन द स्पॉट फैसले लेते हैं, इसकी बैकग्राउंड में कितनी तैयारी होती है?

दुर्गाशंकर मिश्रः मा. मुख्यमंत्री जी के पास इतनी सारी जानकारी है कि वे तो इनसाइक्लोपीडिया हैं। मैं तो देखकर दंग रह जाता हूँ। वे जमीन के नेता हैं। ऐसे ही मैं मा. प्रधानमंत्री जी को देखता था। वे इतना ज्यादा जमीन से जुड़े हुए हैं कि बहुत सारी जानकारी रखते हैं। हमारे ऐसे राजनेता दुर्लभ हैं। ईश्वरीय शक्तियां उनके पास हैं। मा. मुख्यमंत्री जी के आदेश का अनुपालन करने के लिए हमें चीजें व्यवस्थित करनी होती हैं। ग्लोबल इनवेस्टर्स समिट में मुख्यमंत्री जी ने 10 लाख करोड़ रुपये के पूंजीनिवेश का लक्ष्य रखा। हम लोग आपस में कहते थे कि इतना कैसे हो जाएगा। हुआ 35.5 लाख करोड़ रुपये का। मा. मुख्यमंत्री को अपनी ताकत का पता था। ऐसे ही मा. प्रधानमंत्री जी ने कहा कि सबको मकान चाहिए। इससे पहले 12 साल में 8.5 लाख मकान बने थे। इनमें से भी आधे से अधिक खाली पड़े हुए थे। जब काम करना शुरू किया तो सवा करोड़ मकान बन गए। उनके पास ऐसी ताकत है कि वे आगे देख सकते हैं। ऐसे लीडर के साथ काम करने का गौरव मिला है जो दूरदर्शी हैं और पूरी तरह से कमिटेड हैं देश और प्रदेश के प्रति।

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सवालः रिटायरमेंट के बाद क्या आईआईटी में प्रोफेसर बनना पसंद करेंगे?

दुर्गाशंकर मिश्रः मैं देश के लिए सबुकछ करूंगा, इसलिए रिटायर तो होने वाला नहीं हूँ। रिटायर तो वो होता है, जिसके पास कुछ करने को न हो। मैंने देश से ही सबकुछ पाया है। अभी मेरे अंदर बहुत क्षमताएं हैं, अनुभव है। यह देश को आत्मनिर्भर और विकसित बनाने का अमृत काल है। ऐसे में तो हर एक की जिम्मेदारी बनती है। हमारे जैसे लोग तो बहुत कुछ दे सकते हैं।

 

सवालः आजकल के युवा के लिए क्या संदेश है?

दुर्गाशंकर मिश्रः आज देश आगे बढ़ रहा है, नौ साल में हर क्षेत्र में परिवर्तन की लहर आई है, युवा अपने आप को इतना सक्षम बनाओ कि देश के लिए कुछ कर सको। देश प्रथम की भावना के साथ काम करो। देश तो विकसित होना ही है क्योंकि मा. प्रधानमंत्री जी ने जो संकल्प किया वह सिद्ध हुआ है। 25 साल बाद आप देखोगे कि हमारा देश अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, साउथ कोरिया, सिंगापुर की श्रेणी में आ गया है तो आपको यह भी सोचना चाहिए कि इसके लिए हमने क्या किया। जब आप सोचेंगे कि हमने ये काम किया जिससे देश आगे बढ़ा तो गर्व की अनुभूति होगी। अभी अवसर है हर क्षेत्र में। ईज ऑफ लिविंग बिजनेस करो। बदलते हुए देश की विकास धारा में प्रत्येक को जोड़ना है। मा. प्रधानमंत्री ने ‘पंच प्राण’ की बात की है, इसमें हर एक को कर्तव्य भावना से जोड़ें। आईआईटी में पहुँचने वालों की जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ जाती है।

मूल रूप से यह साक्षात्कार आईआईटी कानपुर के छात्र अंकित ने लिया है। इसका वीडियो यहां क्लिक करके देख सकते हैं।

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Dr. Bhanu Pratap Singh