गुजरात कांग्रेस के पूर्व नेता हार्दिक पटेल भाजपा में शामिल हो गए हैं। गुजरात भाजपा अध्यक्ष सीआर पाटिल ने गांधीनगर में हार्दिक को पार्टी जॉइन कराई। उन्होंने 18 मई को ही कांग्रेस से इस्तीफा दिया था। साल के अंत में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले हार्दिक का यह कदम कांग्रेस के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन में अल्पेश ठाकोर, जिग्नेश मेवाणी और पटेल अमानत आंदोलन का चेहरा रहे हार्दिक पटेल की बड़ी भूमिका मानी जाती थी। अल्पेश ठाकोर पहले ही भाजपा में शामिल हो चुके हैं। अब हार्दिक पटेल का भाजपा में आना कांग्रेस को आगामी चुनाव में बड़ा नुकसान पहुंचा सकता है।
पाटीदार क्यों अहम?
कहा जाता है कि गुजरात की कुल 182 विधानसभा सीटों में से लगभग 70 सीटों पर पटेल वोटर निर्णायक हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को पाटीदार आंदोलन की वजह से सीटों का नुकसान हुआ था। पार्टी 100 सीटों का आंकड़ा भी नहीं पार कर पाई थी। उसे सिर्फ 99 और कांग्रेस को 82 सीटें मिली थीं। सबसे ज्यादा नुकसान सौराष्ट्र क्षेत्र में हुआ था, जहां की 56 सीटों में से 32 पर कांग्रेस को जीत मिली थी। भाजपा को महज 22 सीटों से संतोष करना पड़ा था।
2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के 36 विधायक पाटीदार समाज से थे वहीं, 2017 के इनकी संख्या घटकर 28 हो गई थी जबकि कांग्रेस के 20 पाटीदार विधायक जीते थे। गुजरात में फिलहाल बीजेपी के 44 विधायक, 6 सांसद और राज्यसभा में तीन सांसद पाटीदार समुदाय से हैं।
हार्दिक के भाजपा में जाने से किसे फायदा?
गुजरात की राजनीति को समझने वाले बताते हैं कि हार्दिक के इस फैसले का भाजपा से ज्यादा हार्दिक को फायदा होगा। गुजरात का पाटीदार समुदाय लंबे समय से भाजपा के साथ है। 80-85% पाटीदार-पटेल के वोट भाजपा को मिलते रहे हैं। 2017 के चुनाव में अमानत आंदोलन और पाटीदरों पर लाठीचार्ज से नाराजगी के बाद भी पाटीदार वोटर पूरी तरह से भाजपा से अलग नहीं हुआ था। हालांकि, कुछ हिस्सों में उसकी नाराजगी का भाजपा को नुकसान जरूर हुआ। हार्दिक के आने से भाजपा को पटेल-पाटीदार समाज में पुराना जनाधार वापस लौटने की उम्मीद है।
हालांकि, हार्दिक को जिस तरह कांग्रेस में आते ही कार्यकारी अध्यक्ष जैसा पद मिल गया था वैसा अहम पद उन्हें भाजपा में मिलने की संभावना कम है। ऐसा कुछ होने पर भाजपा के पुराने पाटीदार नेता नाराज हो सकते हैं। जो भाजपा नहीं चाहेगी। हार्दिक को भाजपा में आने से अपने खिलाफ चल रहे कानूनी मामलों में राहत जरूर मिल सकती है। इसमें उनके खिलाफ चल रहा राजद्रोह का मामला भी शामिल है।
और किन पाटीदार चेहरों पर दांव लगा रही है भाजपा?
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात दौरे पर आए थे। इस दौरान उन्होंने राजकोट जिले के अतकोट में पाटीदार समूह के अस्पताल का उद्घाटन किया था। इस दौरान खोडलधाम संस्थान के प्रमुख रहे परेश गजेरा को पार्टी ने काफी अहमियत दी। भाजपा की रणनीति यह है कि अगर नरेश पटेल कांग्रेस में जाते हैं तो परेश गजेरा के जरिए पाटीदार वोटर्स को रोका जा सके क्योंकि दोनों लेउवा पटेल हैं। हार्दिक के आने से कड़वा पटेल समुदाय में भी पार्टी की पैठ बढ़ेगी। इतना ही नहीं, राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव से 15 महीने पहले पार्टी ने मुख्यमंत्री का चेहरा भी बदल दिया। विजय रुपाणी की जगह पाटीदार समुदाय से आने वाले भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया।
किन इलाकों में पाटीदार वोटरों का प्रभाव?
गुजरात में करीब 12 फीसदी पाटीदार वोटर हैं। राज्य में पाटीदार-पटेल समुदाय दो वर्णों में बंटा हुआ है। कड़वा पटेल और लेउवा पटेल। हार्दिक पटेल कड़वा पटेल हैं। वहीं, नरेश पटेल और परेश गजेरा लेउवा पटेल हैं। नरेश पटेल श्री खोडलधाम ट्रस्ट (एसकेटी) के अध्यक्ष हैं। खोडलधाम ट्रस्ट लेउवा पटेलों की कुल देवी खोडियार माता के नाम पर बना है। पाटीदार वोटरों में कड़वा पटेल 60% और लेउवा पटेल 40% हैं। लेउवा पटेलों की ज्यादातर आबादी सौराष्ट्र-कच्छ इलाके के राजकोट, जामनगर, भावनगर, अमरेली, जूनागढ़, पोरबंदर, सुरेंद्रनगर, कच्छ जिलों में रहती है। वहीं, कड़वा पटेल समुदाय के लोग उत्तर गुजरात के मेहसाणा, अहमदाबाद, कड़ी-कलोल, विसनगर इलाके में बहुलता से हैं।
-एजेंसियां
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