राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य और अधिष्ठाता दादाजी महाराज का जयपुर सतसंग
हजूरी भवन, पीपलमंडी, आगरा राधास्वामी मत का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं, जो आगरा विश्वविद्यालय के दो बार कुलपति रहे हैं। हजूरी भवन में हर वक्त राधास्वामी नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 20 अक्टूबर, 1999 को ग्राम दातागढ़, जयपुर (राजस्थान) में सतसंग के दौरान उन्होंने बताया कि कुलमालिक ने शेखावटी इलाके पर किस तरह से दया की है।
शेखावटी के इलाके पर भी हजूरी दया बहुत हुई है क्योंकि ऊपर की जमीन में रेत है तो क्या, अंदर तो प्रेम का भंडार है। परम पुरुष पूरन धनी लालाजी महाराज ने विशेष दया राजस्थान पर की है। परम पुरुष पूरन धनी कुंवर जी महाराज ने भी बहुत दया की और राजस्थान के अधिकांश इलाकों जैसे जयपुर, बीकानेर, सुजानगढ़, सरदार शहर, सीकर और रामगढ़ आदि का ऐसा कोई इलाका नहीं छोड़ा जहां से जीवों को न खींचा हो। उन्हीं की दया का यह प्रताप है कि इस मरुभूमि में प्रेम की फुलवारी खिल रही है। बड़े भाग हैं राजस्थान के सतसंगियों के जिन्होंने एक मजबूती के साथ प्रीत और प्रतीत हजूर महाराज के चरनों में बांधी है। वो पीढ़ी दर पीढ़ी वैसी की वैसी आज भी दिखाई देती है। साहेब की टेक पकड़ना, हजूर महाराज की टेक पकड़ना है। जहां धार का प्रवाह है, वहां रुकावट नहीं हो सकती है।
आप सबने हिल-मिल और रल-मिल कर कुलमालिक राधस्वामी दयाल का गुणगान किया, जिनकी दया व मेहर से आप पर दुनिया की आफतें नहीं गुजर रही हैं यानी रक्षा हो रही है। गुणानुवाद इस बात का कि आजकल के जमाने की तपन से उन्होंने सतसंगियों को अपनी छत्रछाया में रखकर अत्यंत शालीनता, सुख और आनंद दिया है। शुक्र इस बात का है कि चाहे कोई कितना ही दूर बसे लेकिन जब मालिक खींचता चाहता है तो खींच लेता है, बुला लेता है व चरनों में लगा लेता है और ज्यादा प्यार करता है तो गोद में ले लेता है और अपना धाम बख्श देता है।
कभी-कभी ऐसा होता है कि प्यास लगती है और प्यास को बुझाने के लिए किसी कुएं, बावड़ी या दरिया के पास जाना पड़ता है। कभी-कभी दरिया में ऐसा सैलाब आता है कि वह खुद-ब-खुद प्यासे के पास आ जाता है। इसी प्रकार कुल मालिक राधास्वामी दयाल निज अवतार धारण करके स्वामी जी महाराज और हजूर महाराज के देह रूप में जीवों की प्यास बुझाने के लिए अमृतरूपी बचन सुनाकर तृप्ति देने के लिए तशरीफ लाए हैं। आप तो उनका शुकराना भी अदा नहीं कर सकते क्योंकि आप छिन-छिन भूलनहार हैं। आपकी भूल में कमी नहीं, उनकी दया में कमी नहीं। आपके अवगुणों में कमी नहीं, उनकी आपको अपनाने में कमी नहीं। आप दिन-प्रतिदिन पाप पर पाप करते चले जाते हैं, वह क्षमा करते जाते हैं। आप दूर भागते हैं, वह खींचकर अपने बास बुलाते हैं। तो यह आकर्षण है जो मालिक ने यहां पर स्थापित किया है।
(अमृत बचन राधास्वामी तीसरा भाग से साभार)
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