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छह दिसम्बर 1992 के बारे में जाने बिना राम मंदिर शिलान्यास की बात अधूरी है पढ़िए आँखों देखा हाल

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जन-जन के आराध्य भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण होने जा रहा है। पांच अगस्त, 2020 को भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शिलान्यास करेंगे। इसके लिए पूरे देश के धर्मस्थलों की रज और पवित्र नदियों का जल अयोध्या लाया गया है। मुस्लिम भी भागीदारी निभा रहे हैं। एक बार फिर देशभर में मंदिर को लेकर उल्लास है। 1990 में सरयू का जल रामभक्तों के रक्त से लाल हुआ था। 1992 में सरयू जल रामभक्तों के स्वागत के तत्पर था। 2020 में सरयू का जल श्रीराम के चरण पखारने के लिए आतुर दिखाई दे रहा है। 1992 में मंदिर और कथित बाबरी मस्जिद के प्रति नकारात्मक भाव था। 2020 में सकारात्मक भाव है। 1992 में संघर्ष ही मुख्य ध्येय था। 2020 में सहभाव है। 1992 में विध्वंश की बात थी और आज निर्माण है। लगभग 28 बरस के अंतराल में भारत की जनता का मानस बदला है। अब मंदिर और मस्जिद को लेकर कोई विरोधी स्वर नहीं है। इसे भारत के सर्वोच्च न्यायालय के प्रति आस्था कहें या यह बात चरितार्थ हो रहा है कि समय बड़े से बड़ा घाव भर देता है।

1990 की कारसेवा का लाभ

विश्व हिन्दू परिषद ने काशी, मथुरा और अयोध्या को मुक्त कराने का आंदोलन 1984 में शुरू किया था। बाद में यह आंदोलन अयोध्या तक सीमित कर दिया गया। इस आंदोलन के चलते हिन्दू संगठित होने लगे। असली प्रेरणा तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की थी। फिर भारतीय जनता पार्टी ने सक्रिय भूमिका निभाई तो यह जनांदोलन बन गया। अयोध्या में 30 अक्टूबर और दो नवम्बर, 1990 को कारसेवा हुई थी। तब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। उन्होंने कहा कि अयोध्या में  परिन्दा भी पर नहीं मार सकता। इसे चुनौती के रूप में लिया गया। कारसेवक कई दिन की पैदल यात्रा करके अयोध्या पहुंचे। सारे सुरक्षा इंतजाम धरे रह गए। सरकार ने कारसेवकों पर गोली चलवा दी। कई कारसेवकों की मौत हुई। बाबरी मस्जिद (जिसे विवादित ढांचा भी कहा जाता था) सुरक्षित रही। कारसेवा का लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिला। उत्तर प्रदेश में भाजपा ने कल्याण सिंह के नेतृत्व में सरकार बनाई।

1992 आया

इस दौरान राम मंदिर के लिए भी आंदोलन चलता रहा। संतों की बैठकें होती रहीं। धर्म संसद में प्रस्ताव पारित होते रहे। फिर छह दिसम्बर, 1992 को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए कारसेवा का निर्णय किया गया। पूरे देश के कारसेवकों को अयोध्या बुलाने का आह्वान किया गया। इसमें रत्ती भर भी संदेह नहीं है कि अयोध्या में जुटे कारसेवकों में 80 फीसदी लोग भाजपा से जुड़े थे। सभी नेताओं को कारसेवक ले जाने का लक्ष्य दिया गया था। देश क्या, पूरी दुनिया की निगाह अयोध्या की ओर लग गई। अखबारों के लोग नवम्बर से ही अयोध्या में जुटने लगे।

अमर उजाला ने भेजा अयोध्या

मैं उन भाग्यशाली रिपोर्टर्स में से हूं, जिसने छह दिसम्बर, 1992 का घटनाक्रम कवर किया है। मैं तब अमर उजाला के आगरा संस्करण में प्रशिक्षु रिपोर्टर था। अयोध्या का घटनाक्रम कवर करने के लिए मेरा चयन किया गया। मैं हिन्दू-मुस्लिम बीट देखता था, इस कारण संपर्क सूत्र प्रगाढ़ थे। अमर उजाला ने अयोध्या में पांच रिपोर्टर्स का दल तैनात किया था ताकि वास्तविकता सामने आ गए। आगरा से मैं (भानु प्रताप सिंह), दिल्ली से अरविन्द कुमार सिंह, बरेली से आशीष अग्रवाल, मेरठ से सुनील छइयां और कानपुर से ओंकार सिंह। इसका कारण यह था कि 1990 की कारसेवा में अमर उजाला ने तटस्थ रुख अपनाया था। आज अखबार ने पहले पेज पर प्रमुखता से समाचार प्रकाशित किए थे। तब आज के संपादक श्री शशि शेखर (वर्तमान में प्रधान संपादक, हिन्दुस्तान समूह) थे। इसके चलते आज अखबार का प्रसार अमर उजाला से अधिक हो गया था। अमर उजाला 1992 में इसकी भरपाई कर लेना चाहता था।

ट्रेन में संघ की शाखा

अयोध्या में अगर आज श्रीराम मंदिर बनने जा रहा है तो उसके मूल में छह दिसम्बर, 1992 की घटना है। इसलिए बिना उस घटना का जिक्र किए राम मंदिर की बात अधूरी है। छह दिसम्बर के घटनाक्रम पर कई किताबें लिखी जा चुकी हूं। मैं भी लम्बा आलेख लिख सकता हूं लेकिन यहां संक्षेप में बात कहने की बाध्यता है। मैं ओवरकोट पहनकर ट्रेन से रवाना हुआ। अयोध्या की ओर जा रही सभी ट्रेनें राममय थीं। पल-पल पर जय श्रीराम की गूंज होती रहती थी। ट्रेन के अंदर और रेलवे स्टेशन पर संघ की शाखाएं लगाई जा रही थीं। हमारे दो कार्यालय थे- एक अयोध्या में और दूसरा फैजाबाद में। तब टेलीफोन और फैक्स सेवा ही थी। आज की तरह मोबाइल नहीं थे। फोन भी बड़ी मुश्किल से लगते थे।

मस्जिद का मलबा भी नहीं बचा

असल में कारसेवकों को मंदिर निर्माण में कारसेवा के लिए बुलाया गया था। पांच दिसम्बर, 1992 को अचानक यह घोषणा कर दी गई कि सरयू की रेत और जल के साथ कारसेवा होगी। विवादित ढांचा के सामने बनाए गए गड्ढे में सरयू की रेत और जल डाला जाएगा। इसके बाद तो कारसेवकपुरम का माहौल अनुशासित नहीं रहा था। कारसेवक खुलकर कह रहे थे कि हम यहां पौंछा लगाने और धुलाई करने नहीं आए हैं। हम कारसेवा करने आए हैं। यह तभी संभव है जब बाबरी मस्जिद को गिरा दिया जाए। नेताओं को लग रहा था कि सभी कारसेवक संतों की बात मानेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। जब कारसेवक गुंबद पर चढ़ गए और भगवा फहरा दिया तब भी कहा गया कि अब वापस आ जाएं। आचार्य धर्मेन्द्र ने आग में घी डालने वाली बात कही कि कलंक को मिटा दो। इससे कारसेवक और जोश में आ गए। मेरी आँखों के सामने देखते ही देखते करीब 500 साल पुराना ढांचा जड़ समूल गायब हो गया। कारसेवक निशानी के बतौर एक-एक ईंट उठा ले गए। मलबा भी नहीं बचा था।

संघ की प्रार्थना सुनाकर बचा

छह दिसम्बर, 1992 को जैसे ही ढांचा गिराया गया, तो मैं अयोध्या में रामचन्द्र दास परमहंस के आश्रम के सामने स्थित अपने कार्यालय की ओर भागा। अयोध्या के रहने वाले कारसेवक भी लौट रहे थे और कुदालें लेकर जा रहे थे। मैंने देखा कि गली में विनय कटियार थे। वे ढांचे के बारे में पूछताछ कर रहे थे। खैर, मैंने कार्यालय में जैसे ही फोन पर हाथ रखा, एक सरदार जी ने मेरा हाथ पकड़ लिया। मैंने कहा कि मैं पत्रकार हूं। आगरा खबर देनी है। सरदार जी ने कहा कि जब तक बाबरी मस्जिद पूरी नहीं गिर जाती, तब तक कोई सूचना अयोध्या से बाहर नहीं जाएगी। जब मैंने कहा कि मैं तो संघ का स्वयंसेवक हूं। सरदार जी ने संघ की प्रार्थना सुनाने को कहा। मैंने प्रार्थना सुनाई तो वे चले गए। मैंने अमर उजाला कार्यालय में फोन करके श्री अम्बरीश गौड़ को बाबरी मस्जिद गिराये जाने की सूचना दी। अमर उजाला ने विशेष संस्करण निकाला। अखबार की पूर्ति नहीं हो पाई। हमारे छायाकार सुनील छइयां को कारसेवकों ने बंधक बना लिया था। उनका कैमरा भी क्षतिग्रस्त कर दिया था। अन्य रिपोर्टर भी फँस गए थे। रामजी की कृपा से मैं बच गया था। इसी कारण सबसे पहले सूचना देने में सफल रहा।

चौधरी उदयभान सिंह ने कराया भोजन
यहां मैं भाजपा के तत्कालीन जिलाध्यक्ष चौधरी उदयभान सिंह (अब एमएसएमई राज्यमंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार) की मदद को भी नहीं भूल सकता हूँ। अयोध्या में कर्फ्यू लागू हो गया था। दुकानें बंद थीं। भोजन के लाले थे। इत्तिफाक से चौधरी उदयभान सिंह से भेंट हो गई। मैंने उन्हें समस्या बताई। वे कारसेवकपुरम से हमारे लिए भोजन लेकर आए। उदयभान सिंह ने कारसेवा के लिए खासा शक्ति प्रदर्शन किया था। बड़ी संख्या में लोगों को लेकर गए थे। इतने अधिक उत्साहित थे कि कारसेवा के दौरान घायल हो गए थे। हमारा कार्यालय एक साधु के घर में था। उसने भी हमें आड़े वक्त में भोजन कराया।

चम्पत राय से संबंध होने का लाभ

मैं सबसे पहले सूचनाएं पाने में सफल क्यों होता था, इसका भेद आज खोल रहा हूं। कारसेवा की तैयारियां श्री चंपत राय देख रहे थे। वे उस समय विश्व हिन्दू परिषद बृज प्रांत के संगठन मंत्री थे। इस समय वे राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट के महासचिव और विश्व हिन्दू परिषद के अन्तर्राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। मुझे बहुत मानते थे। कार सेवा के निमित्त होने वाली बैठकों में मैं भी उपस्थित रहता था। इस कारण सबसे पहले सूचनाएं मेरे पास होती थीं।

भीड़ को रोक रहे थे स्वयंसेवक

विवादित ढांचा ढहाने से रोकने की तैयारी का समाचार भी सर्वप्रथम दिया था। सैकड़ों स्वयंसेवकों को रस्सा डालकर भीड़ को नियंत्रित करने का प्रशिक्षण दिया जा रहा था। यह बात अलग है कि लाखों कारसेवकों के आगे स्वयंसेवक पस्त हो गए थे। रोकने वालों को कारसेवकों ने उठा-उठाकर फेंक दिया था। फिर स्थिति ऐसी बनी कि कारेसवकों को कोई रोकने वाला नहीं था।

अपने भाग्य की सराहना

आलेख का समापन अपने भाग्य को सहराते हुए करना चाहता हूं। मैंने पत्रकार के रूप में बाबरी मस्जिद को गिरते हुए देखा और अब उसी स्थान पर राम मंदिर बनते हुए देख रहा हूं। 1992 की तरह न कोई दंगा, न सरकारों की बर्खास्तगी। सर्वत्र शांति है। राम मंदिर आंदोलन के पुरोधा कहते थे कि राम मंदिर बनेगा तो शांति होगी, रोजी और रोटी की समस्या भी हल हो जाएगी। मंदिर निर्माण के समय शांति दिखाई दे रही है। सबसे बड़ा सवाल है कि क्या रोजी-रोटी की समस्या भी हल हो जाएगी?

डॉ. भानु प्रताप सिंह

(छह दिसम्बर, 1992 का अमर उजाला के लिए अयोध्या का घटनाक्रम कवर करने वाले)