Mathura (Uttar Pradesh, India)। मथुरा, वृन्दावन। किसी भी आन्दोलन में चाहे वो आजादी के पहले का आन्दोलन ही क्यों न हो, एक गरम दल और दूसरा नरम दल के सहारे ही सफल हो पाया है। नरम दल अपना वर्चश्व किसी न किसी रूप में कायम करने में सफल हो ही जाता है। मगर गरम दल के नेतृत्व को या उसके योगदान को कोई जगह कभी मिल ही नहीं पाती है, ऐसा ही कुछ श्रीरामजन्म भूमि आन्दोलन में हुआ एक दल, जो किसी भी तरह से विवादित ढांचे को वहां से हटा कर मंदिर का निर्माण किया जाना सम्भव मानता था। वहीं एक खेमा इसे भी हमेशा जन मानस में बनाये रखने के लिए ढांचे के बगल में मंदिर निर्माण का सपना देख रहा था। मगर यह किसी योजना की तरह ही हो पाया और विवादित ढांचे को ढहाने के काम में हजारों कारसेवकों ने यह काम किया था। मगर वृन्दावन के सुरेश बघेल ने सबसे पहले ढांचे को हटाने के लिए प्रयास किया था। मगर वह इसमें सफल नहीं हो सका। 28 डायनामाइट की छड़ों के साथ अयोध्या के विवादित ढांचे में पकडे़ भी गया।
वृंदावन के हिंदूवादी नेता सुरेश बघेल का नाम शायद ही आज किसी को याद हो
राम मंदिर आंदोलन में शामिल कई लोगों को पद मिले, प्रतिष्ठा मिली और उन्होंने सत्ता का सुख भोगा, लेकिन इसके सच्चे हीरो सुरेश बघेल आज भी एक ठेकेदार के नीचे निजी कंपनी में 6000 रुपये महीने में सीवेज पम्प ऑपरेटर का काम करके मुफलिसी का जीवन जीने को मजबूर हैं। 30 साल पहले 1990 में राम मंदिर आंदोलन में शामिल होकर बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को गिराने की पहली और मजबूत कोशिश करने वाले वृंदावन के हिंदूवादी नेता सुरेश बघेल का नाम शायद ही आज किसी को याद हो। राम मंदिर आंदोलन के ये वही हीरो हैं जिन्होंने आंदोलन की चोट अपने माथे पर ली। इतना ही नहीं उस चोट का दर्द भी पिछले 30 साल से कोर्ट-कचहरी, गिरफ्तारियां, जेल, धमकियां, मुफलिसी और परिवार से दूरी के साथ झेला है। सुरेश बघेल ने सुनील शर्मा को अपनी आप बीती बताते हुए बड़ी बबाकी से प्रश्नों के उत्तर दिये।
सुरेश चन्द बघेल आप डायनामाइट की छड़ों के साथ अयोध्या में गिरफ्तार हुए थे। आप 28 छड़ों के साथ आपको गिरफ्तार किया गया था। इसमें कोई सच्चाई है ?
हाँ सच्चाई तो है ही, गिरफ्तार तो मैं हुआ ही था और सजा भी काटी है। मैंने करीब चार बार में पांच साल की सजा और पांच हजार रुपया जुर्माना भी हुआ था। 18 साल मुकदमा चला है मुझ पर, एक ही मुकदमे में चार हार जेल गया हूँ। मुकदमा अभी हाईकोर्ट में चल रहा है, अपील पर हूँ।
क्या आप पर एनएसए भी लगी थी?
एनएसए लगी थी। एनएसए जब समाप्त हुई तो टाडा लगा दी गई।
आपने कहां तक पढ़ाई की है?
मैं 10 वीं फेल हूँ।
आपके परिवार में कौन कौन हैं ?
परिवार पहले तो बड़ा था। माता पिता सब थे। मेरे परिवार में एक लड़की तथा दो लड़के हैं।
आपके माता-पिता या पत्नी ने कभी रोका नहीं आपको?
पिता ने कुछ नहीं बोला और 2000 में गुजर गए। मां जरूर कहती थी कि तू झोपड़ी को भी बिकवाएगा, माँ भी अब नहीं है। लेकिन मेरी पत्नी ने मुझे कभी नहीं रोका। ये जरूर बोलती थी अब बहुत हो गई सेवा, अब तो घर-परिवार देख लो। अब कभी-कभी मेरी बेटी साथ रहने आ जाती है तो खुशी मिलती है।
आपके बच्चे क्या पढ़ रहे हैं ?
लड़के अभी छोटे हैं। 2008 में सजा हुई थी उस समय लड़की हुई थी, एक लड़का 2010 में तथा दूसरा लड़का 2011 में हुआ था।
इस दौरान आपने बड़ा कष्ट झेला परिवार ने भी बहुत कष्ट झेला होगा?
कष्ट तो है ही मैंने तो जो झेला वह है ही, मगर परिवार ने भी कम कष्ट नहीं झेला है। मैंने मजदूरी की है।
आप जब जेल में तब परिवार का काम काज कैसे चलता था?
परिवार ने भी मजदूरी की किसी तरह से गुजर बसर किया था, कभी खेत पर काम किया कभी बेलदारी करके बच्चों को पाला पोसा है। मैंने रिक्शा भी चलाया। मजदूरी भी की है। साधु सेवा भी की है। गौशालाओं में काम किया है।
जिस दिन अयोध्या में यह काण्ड हुआ वह क्या था इस विषय में कुछ बतायें आपको कुछ याद है ?
मुझे बिलकुल याद है । फिल्म की तरह पूरी घटना मेरे सामने है। 1990 में विवादित परिसर में अपने चार पांच साथियों के साथ गया था।
उस समय हम शिव सेना के कार्यकर्ता थे, शिव सेना का कोई दायित्व है या पद कोई उस समय था आपके पास ?
मैं शिव सेना के कई पदों पर रह चुका हूँ। विशेष कर मैं शिव सेना के साथ जेल से छूटने के बाद ही पूरी तरह से जुड़ पाया था।
क्या किसी ने आपको कहा था कहां से प्रेरणा मिली कि ऐसा कुछ आप करो ?
उस समय मेरे मन में एक प्रश्न था कि राम पर, धर्म पर। वृन्दावन में रहते हैं। आस्था के साथ जीते हैं। हमारे अन्दर भी राम के प्रति व ईश्वर के प्रति आस्था है। उस समय राम जन्मभूमि आन्दोलन चल रहा था। हमारा एक मित्र मुसलमान था, एक जुलूस निकल रहा था। उस जुलूस में नारा लगाया जा रहा था देश धर्म का नाता है गऊ हमारी माता है। उसने टिप्पणी की थी कि गऊ यदि माता है तो बैल या सांड़ तुम्हारा कौन लगता है। हमने कहा कि वह हमारा बाप है, अब मशीनी युग आ गया है, जब खेती बाड़ी से लेकर आवागमन में इन्हीं का उपयोग होता था। यह अब काम हमें नहीं आते हैं, अनाज से लेकर सारी भूमिका यह बाप ही पूरी करता था।बाप है , पालनहार है। जिम्मेदारी उसी की होती है।
आपको ऐसा क्यों लगा कि आप अयोध्या जाऊं बाबरी मस्जिद में जाऊं और यह आपके मन में कैसे आया ?
वह बाबरी मस्जिद ही नहीं थी, वह महाजिद है। मस्जिद तो वह थी ही नहीं। कैसे उसे मस्जिद बोल सकते हैं, आप अयोध्या को खुर्द मक्का कैसे बता सकते हो।
आपके मन में कैसे आया कि आप वृन्दावन से इतनी दूर जायें और वहां घुसें, यह विचार मन में कैसे आया ?
यह सब उस समय स्थितियाँ और परिस्थियाँ जो उस समय बन रही थीं।
क्या आप अपने साथ कुछ ले गये थे ?
मैं अपने साथ कुछ नहीं ले गया था, मैंने तो प्रभु से प्रार्थना की थी कि प्रभु मुझे शक्ति प्रदान करना।
आपके पास वह जो छड़ें मिली थीं वह आपके पास कैसे मिली थीं कहां से आयीं थीं ?
वह निश्चित ही मुझसे पहले वहां पहुंची थीं। मैं तो कुछ लेकर गया ही नहीं था। वह छडे़ं तो मुझसे पहले से ही वहां मौजूद थीं।
आपने इतना बड़ा काम किया आपको इसका कोई लाभ मिला ?
हानि, लाभ, यश, अपयश, जीवन, मरण यह सब उपर वाले के हाथ में है।
शिव सेना और भाजपा ने आपको माना हो कुछ समझा हो ?
शिव सेना का उत्तर प्रदेश में कोई वर्चश्व कभी बन ही नहीं पाया है। महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी के साथ शिव सेना रही है। शिव सेना से महाराष्ट्र में तो समझौता किया था, सरकार भी बनाई थी, मगर उत्तर प्रदेश में तो कभी कोई समझोता किया ही नहीं गया था। राजनैतिक लाभ राममंदिर आन्दोलन से लोगों ने लिया ही है। राजनैतिक लाभ के लिए ही इस आन्दोलन को उठाया था।
आपके मन में कभी विचार नहीं आया कि मुझे भी इसका श्रेय मिलना चाहिए कि मैंने कुछ किया है ?
अगर मैंने कुछ किया है तो लोग समझेंगे विचार करेंगे। मेरा मानना है कि मैं इस देश, इस हिन्दू धर्म के लिए परिवार के लिए क्या कर सकता हूँ। यही मन में विचार शुरू से था।
अब 5 अगस्त को जब राममंदिर के लिए शिला पूजन व भूमिपूजन शिलान्यास होगा देश के प्रधानमंत्री वहां पहुंचेंगे वह शिलान्यास करेंगे, आपके मन में नहीं होता कि मुझे भी वहां होना चाहिए ?
अगर मैं सोच लूँ कि मुझे प्रधानमंत्री के सानिध्य में वहां होना चाहिए तो मैं इस बात को फील करूं कि मुझे वहां होना चाहिए या नहीं होना चाहिए। जहां तक शिलान्यास का प्रश्न है तो जब 1992 में प्रतीकात्मक कारसेवा का आयोजन उस समय कल्याण सिंह सरकार के समय आव्हान किया गया था, विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा रामजन्म भूमि न्यास द्वारा तो उस समय यह योजना बनी थी कि सरयू से बालू और जल लायेंगे और शिलाओं के साथ शिलान्यास स्थल पर ले जाकर डालेंगे। एक बार और शिलादान का आयोजन किया गया था, बाबा रामचन्द्र परमहंस जी द्वारा 1986 में एक गड्डा खुदा था जहां कीर्तन चलता था। तो अब कौन सा शिलान्यास है। अयोध्या में मैं भी बहुत रहा हूँ एक-एक आयोजन का हिस्सा रहा हूँ।
आप इतने समय तक जेल में रहे। आपने संघर्ष किया जेल गये। जेल में रहने के वाद आने पर किसी संत या किसी महन्त, धर्माचार्य ने आपको पूछा या आपका हाल चाल जाना या आपको आशीर्वाद दिया था ?
धर्माचार्यों में वामदेव जी महाराज जी के पास में पकड़े जाने से पहले भी और बाद में भी जाता रहता था क्योंकि मैं भी उसी अखण्डानन्द महाराज के आश्रम में ही रहता था वहीं काम करता था, वहीं वामदेव जी भी रहा करते थे। सानिध्य तो इन सभी संत महात्माओं का आशीर्वाद भी था। उधर बाबा रामचन्द्र परमहंस भी थे ।मैं दिगम्बर अखाडे़ में भी आता जाता था। अब वह बाबा भी नहीं रहे और यह बाबा भी नहीं हैं तो मेरा आना जाना भी नहीं होता है।
अब आपको कितनी खुशी है राममंदिर निमार्ण का प्रथम चरण तो कोर्ट ने पूरा कर दिया, दूसरा चरण प्रधानमंत्री करने जा रहे हैं तो आपके मन में कितनी खुशी है ?
मेरे मन में खुशी है कि भारतीय जनता पार्टी, आरएसएस या अन्य संगठन उन्होंने मामले को उठाया कि ‘‘रामलला हम आयेगें मंदिर वहीं बनायेंगे’’। तब मैं भी इसी नारे को सुन कर वहां गया था और मैंने देखा कि वहां पर एक ढांचा खड़ा है। मैंने सोचा कि इसके रहते तो यहां मंदिर का निर्माण ही संभव नहीं है। यह तो इनकी एक दुकान है, जैसे कृष्ण जन्मभूमि में मस्जिद के बराबर से मंदिर का निमार्ण हो गया, इन्होंने यही सोचा था कि यह विवादित ढांचा यूं ही खड़ा रहेगा और पास में मंदिर का निमार्ण हो जायेगा। मगर यहां भव्य मंदिर निमार्ण के लिए ढांचे को हटाया जाना बहुत जरूरी था। इसी लिए मेरा यह प्रयास पहला प्रयास था। प्रथम चरण में उस ढांचे को वहां से हटाना था, यही मेरा सपना था।
मगर आप तो उसमें सफल नहीं हो सके ?
मेरा प्रयास रहा मैं उसमें सफल नहीं हो सका, मगर मेरे सपने को 1992 में पूरा कर दिया गया। अब मंदिर की बात है ठाकुर जी की पूजा सेवा तो वहां बराबर होती रही है, अब उस स्थान को भव्यता देने की बात है तो वह अब देश के प्रधानमंत्री के हाथों शिलान्यास हो रहा है।
आपके मन में सन्तोष तो है कि एक भव्य राममंदिर का शिलान्यास होने जा रहा है ?
मुझे सन्तोष ही नहीं बेहद खुशी है कि वहां विशाल और भव्य मंदिर वन रहा है, खुशी की बात है।
आपके मन में कभी यह विचार आता है कि मोदी जी आपको बुलायें, मोदी जी के पास जाने की आपकी कोई इच्छा है ?
नहीं मेरी ऐसी कोई भावना नहीं है कि मोदी जी मुझको बुलायें या मैं उनको सलाम ठोकूं या मैं उनको लम्बा दण्डवत प्रणाम करूं, ऐसी मेरी कोई भावना नहीं है।
वर्तमान प्रदेश व केन्द्र में भाजपा सरकार है हिन्दुत्व की सरकार है, उसमे आपको क्या लगता है कि उनसे कोई अपेक्षा है ?
मुझे कोई अपेक्षा नहीं है। मैं इनको सबसे गडबड़ सरकार मानता हूँ भगवान सब जगह हैं। वृन्दावन में भी भगवान हैं और अयोध्या में भी भगवान हैं ,जो महत्व रामचन्द्र जी का है, वहीं महत्व कृष्ण का भी है। वृन्दावन में मंदिर तोडे जा रहे हैं उसकी एफआईआर मैंने की, उसकी शिकायत मेंने की उसकी कोई सुनवाई नहीं हुई। वृन्दावन के अत्यन्त प्राचीन 300 साल पुराना मंदिर तोड़ दिया गया। मेंने एक विवादित ढांचा तोड़ने का प्रयास किया मेरे को पांच साल की सजा, पांच हजार का जुर्माना, 18 साल मुकदमा, टाडा, रासुका जैसे मुकदमें मेरे उपर कार्यवाही हुई। अभी वृन्दावन में मंदिर गिराया गया, उलटा मेरे उपर ही कार्यवाही हुई कि मेंने आवाज क्यों उठाई, शान्ति व्यवस्था भंग करने के आरोप में मुझे पाबंद किया गया है। मैं इस सरकार से और क्या उम्मीद कर सकता हूँ। यह हिन्दूवादी सरकार खुद को मानती रहे मगर मैं इसे हिन्दूवादी सरकार नहीं मानता, कभी नहीं मानता हूँ।
आपने जो किया, जो आप अयोध्या में करके आये थे, आप पकड़े गये थे गम्भीर आरोप आप पर लगे थे। उसका आपके मन में कोई अफसोस है ?
अफसोस का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता है अफसोस उसका होता है जो कोई गलती हो जाती है।
आप इसे क्या मानते हैं ?
मैं तो इसे सही मान रहा हूँ तब भी मंदिर मानता था, आज भी मंदिर मानता हूँ और कल भी मंदिर ही मानूंगा। मानता रहा हूँ, मानता रहूंगा।
भव्य मंदिर बन जाने पर आपको खुशी होगी ?
मुझे निश्चित ही खुशी होगी।
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